पंडित भोला नाथ प्रसन्ना ने बाँसुरी वादन को दिया नया आयाम

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वाराणसी – बाँसुरी ( FLUTE ) को एक उच्च शिखर पर ले जाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय बाँसुरी वादक पंडित भोलानाथ प्रसन्ना ( BHOLANATH PRASANNA ) ने बाँसुरी की शिक्षा को भी आपने नए आयाम तक पहुँचाया. अच्छा गुरु मिलना शिष्य के सौभाग्य की बात होती है. इसे चरितार्थ करते हुए उन्होंने शिष्य के रूप में विश्व और संगीत की दुनिया को दो महान नायाब हीरे भी दिए, जो अपनी अपनी सच्ची लगन, रियाज़ और गुरु भक्ति से आज पूरे विश्व में अपने गुरु का नाम कर रहे हैं. जी हां एक तरफ पद्म विभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी तो दूसरी तरफ ग्रैमी अवार्ड से अलंकृत पंडित अजय प्रसन्ना ने बॉसुरी वादन का जिंदा रखा.

प्रयागराज से शुरू हुई बांसुरी की शुरुआत

गुरुकुल की शुरुआत दशकों पहले प्रयागराज के उस घर से हुई जहाँ पंडित जी अपने सैकड़ों शिष्यों को बाँसुरी की बारीकियों से अवगत कराते थे. उस समय बाँसुरी की शिक्षा इतनी आसान नहीं थी और इसी कारण भारत वर्ष में गिने चुने ही बाँसुरी के उत्कृष्ट कलाकार थे, जिनमे पंडित भोलानाथ प्रसन्ना जी पहले संगीतकार थे. यही कारण था कि जब उनको लगा कि नहीं बांसुरी और भी लोगों को सीखनी चाहिए तो उन्होंने अपने उस प्रयागराज में छोटे से घर में ही गुरुकुल की व्यवस्था की और गुरु शिष्य परंपरा के तहत कई सारे सैकड़ो शिष्यों को बांसुरी की निशुल्क शिक्षा प्रदान करते थे. उस समय बांसुरी मिलना भी मुश्किल होता था, शिष्यों को रियाज करने के लिए पंडित जी खुद ही बाँसुरी बनाकर मुफ्त में देते थे. यह गुरु शिष्य परंपरा निरंतर आज तक उनके गुरुकुल के नाम से चली आ रही है.

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परंपरा का निर्वहन कर रहे शिष्यम

इस परंपरा का निर्वाहन अब उन्हीं के शिष्य विश्वसविख्यात बांसुरी वादक पंडित अजय प्रसन्ना कर रहे हैं. वे भी शिष्यों को निश्शु ल्कज बांसुरी की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. गुरुकुल में कई वर्षों से बांसुरी की बारीकियां सभी शिष्यों को बतायी जाती है. गुरुकुल में बांसुरी की शिक्षा स्वयं आप खुद देते हैं और यही कारण है कि कई सारे छात्र आपके पास जुड़े हैं और कई सारे छात्र आपसे जुड़ना चाहते हैं.

कौन थे पंडित भोला नाथ प्रसन्ना

बता दें कि, पंडित भोला नाथ प्रसन्ना को जन्म भोले की नगरी वाराणसी में हुआ था.भोलानाथ प्रसन्ना एक भारतीय बाँसुरी वादक थे. वह प्रसिद्ध बांसुरी वादक पं. के गुरु थे. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने पिता पं. गौरीशंकर (वाराणसी) और अपने भाई पं. रघुनाथ प्रसन्ना से ली थी.

इतना ही नहीं भोलानाथ प्रसन्ना को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1989) श्रेणी (शहनाई) सहित विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया. उन्होंने बांसुरी को कई शिष्यों तक फैलाया और सिखाया, उन्होंने पं. हरिप्रसाद चौरसिया, पं. राजेंद्र प्रसन्ना, पं. निरंजन प्रसाद और बेटे अजय शंकर प्रसन्ना को बांसुरी में निपुण्य किया .

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