शत्रु संपत्ति के किरायेदार अब कर सकेंगे ऑनलाइन भुगतान
वाराणसी: शत्रु संपत्ति पर काबिज किरायेदारों के लिए सरकार ने नया नियम बनाया है. अब वे किरायेदारी का भुगतान ऑनलाइन करेंगे. मुख्य पर्येवक्षक, सीईपीआई कार्यालय, शत्रु सम्पत्ति, भारत सरकार, गृह मंत्रालय, भारत के शत्रु सम्पत्ति अभिरक्षक का कार्यालय, केन्द्रीय भवन अलीगंज, लखनऊ द्वारा शत्रु सम्पत्तियों पर रह रहे किराएदारों द्वारा किये जाने वाले किराए के भुगतान के लिए ऑनलाइन पोर्टल जारी किया गया है. इस क्रम में भारत के शत्रु सम्पत्ति अभिरक्षक ने यह निर्णय लिया है कि शत्रु सम्पत्तियों पर काबिज सभी किराएदारों व कब्जेदारों द्वारा किये जा रहे भुगतान को केवल ऑनलाइन पोर्टल (https://enemyproper ty.mha.gov.in/eprentals/login) के माध्यम से जमा किए गए किराए को ही मान्य किया जाएगा. इसके अलावा किसी अन्य माध्यम (कैश, बैंक ट्रान्सफर आदि) से भुगतान नहीं किया जाएगा.
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20-21 जून को कलेक्ट्रेट सभागार में कैंप
अपर जिलाधिकारी (वि./रा.) व प्रभारी अधिकारी शत्रु सम्पत्ति वंदना श्रीवास्तव द्वारा बताया गया कि यह निर्णय लिया गया है कि 20 व 21 जून को अपरान्ह 2 बजे वाराणसी जनपद के कलेक्ट्रेट स्थित जनपद सभागार में कैंप का आयोजन किया जा रहा है. इस संदर्भ में उन्होने वाराणसी जनपद की सभी शत्रु सम्पत्तियों पर काबिज किराएदारों व कब्जेदारों को निर्देशित किया है कि उक्त कैंप में आधार कार्ड (आवासित होने की स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों का आधार कार्ड), पैन कार्ड, शत्रु सम्पत्तियों से सम्बन्धित सभी प्रकार के दस्तावेज (कारनामा व कार्यालय आदेश, किराए की रसीद आदि) तथा पूर्ण रूप से भरा हुआ फार्म आदि अभिलेखों के साथ उपस्थित होकर कैंप में भाग लें. कैंप में उपस्थित न होने वाले सभी किराएदारों व कब्जेदारों को 28 जून तक उपरोक्त दस्तावेजों के साथ भारत के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक का कार्यालय लखनऊ शाखा में उपस्थित होना होगा. उक्त दिनांक तक उपस्थित न होने पर नियमानुसार वैधानिक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी.
क्या होती है शत्रु संपत्ति
शत्रु सम्पत्ति अधिनियम 1968 भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसके अनुसार शत्रु सम्पत्ति पर भारत सरकार का अधिकार होगा. पाकिस्तान से 1965 में हुए युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम पारित हुआ था. इस अधिनियम के अनुसार जो लोग बंटवारे या 1965 में और 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली थी, उनकी सारी अचल संपत्ति ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित कर दी गई. उसके बाद पहली बार उन भारतीय नागरिकों को संपत्ति के आधार पर ‘शत्रु’ की श्रेणी में रखा गया, जिनके पूर्वज किसी ‘शत्रु’ राष्ट्र के नागरिक रहे हों. यह कानून केवल उनकी संपत्ति को लेकर है और इससे उनकी भारतीय नागरिकता पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है.