विश्व पर्यावरण दिवस पर जानिए, Climate Change कैसे बना हीटवैव का कारण

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इंडिया में हीटवेव का दौर चल रहा है. दिल्ली से लेकर बनारस तक टेम्परेचर 50 डिग्री क्रॉस कर चुका है. दोपहर में धूप और लूँ के चलते लोगों को उनके आवागमन में असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है. हीटवेव कितनी खतरनाक है और हर साल गर्मी अपने चरम पर आकार रिकार्ड तोड़ रही है. पर्यावरण दिवस के मौके पर आज हम जानेंगे कि गर्मी हर साल क्यूँ अपने रेकॉर्ड तोड़ रही है.

 

चर्चा शुरू करने से पहले कुछ आकड़े की बात कर लेते है. गर्मी की वजह से देश के कोने-कोने में लोगों की मौत हुई है और आकड़ें कुछ ऐसे है…

  • उत्तर प्रदेश में 164
  • बिहार में 73
  • दिल्ली मेँ 1
  • राजस्थान मेँ 5
  • झारखंड में 7
  • ऑडिशा में 10
  • आंध्रप्रदेश में 2 और
  • महाराष्ट्र में 12 लोगों की मौत हुई है.

यह आकड़ें इस बात की गवाही दे रहे है कि इस बार कि गर्मी जानलेवा है. लेकिन हाल सिर्फ इंडिया का ही नहीं है बल्कि मेंक्सिको में भी हीटवेव के चलते करीब 60 लोगों की मौत हुई है. दिल्ली के मँगेशपुर इलाके ने 52.9 डिग्री का टेम्परेचर रेकॉर्ड हुआ है.

इस बार के हीटवेव और रेकॉर्ड तोड़ टेम्परेचर यह जाहिर कर रहे है कि देश के मौसम का ताना-बाना बिगड़ता जा रहा है. इस पैटर्न का कारण क्लाइमेंट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग है. मानवीय कारण यह बताते है कि लोगों को रहने के लिए घर चाहिए, चलने के बड़ी सड़कें  चाहिए लेकिन घर और सड़क बनाने के लिए जो पेड़ काटें जा रहे है उसपर किसी का ध्यान नहीं जाता है. आइए समझते है कि हीटवेव क्या होती है.

हीटवेव

धरती का सरफेस टेम्परेचर बीतें कुछ सालों से लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके कई कारण हो सकते है जैसे ग्लोबल वार्मिंग, पैटर्न ऑफ वेदर, और क्लाइमेंट चेंज का प्रभाव. हीटवेव को समझना जरूरी है, कब एक देश में हीटवेव डिक्लेयर करता और यह क्यूँ जानलेवा होता है.

सरल शब्दों में समझे तो हीटवेव तब होता है जब प्लेन्स में नॉर्मल टेम्परेचर बहुत तेजी से बढ़े और यानि जब टेम्परेचर 40 डिग्री सेल्सियस के पार जाता है तब हीटवेव डिक्लेयर जैसी परिस्थितियाँ बनती है. यह पैमाना इंडियन मेंट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट तय करती है. तीन रीजन बनाए गए है, जैसे प्लेन्स में जब टेम्परेचर 40 डिग्री के पार जाता है तब हीटवेव जैसी परिस्थितियाँ बनती है, वैसे ही पहाड़ों पर जब 30 डिग्री, और समुद्र के तट से सटे एरिया में जब 37 डिग्री के पार टेम्परेचर जाता है तब वहाँ पर हीटवेव घोषित किया जाता है. तो अगर आसानी से समझा जाए तो हीटवेव कुछ और नहीं बल्कि अर्थ सरफेस के बढ़ते टेम्परेचर को कहाँ जाता है. 2021, 2022, 2023 यह तीन साल लगातार बढ़ते टेम्परेचर ने रेकॉर्ड तोड़ है और उन तीनों साल से ज्यादा भीषण हीटवेव इस साल 2024 में पड़ी है जिसने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए. आसान शब्दों में समझें तो हीटवेव तब डिक्लेयर होती है जब धरती का सर्फेस टेम्परेचर अपने निर्धारित पैरामीटर से ज़्यादा बढ़ता है.

हीटवेव क्यों है खतरनाक

WHO के अनुसार 21वीं सदी की शुरुआत से दुनिया भर में ग्लोबल टेम्परेचर बढ़े है, जिसका सिर्फ एकमात्र कारण है क्लाइमेंट चेंज. WHO की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में हर साल 5-6 हीटवेव आते है और यह गर्मी के मई और जून महीने में समझ आते है. हीटवेव खतरनाक ही नहीं बल्कि जानलेवा भी होता है.

हीटवेव के चलने से लोगों को उनकी दिनचर्या में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. गर्मी के मौसम में दिन लंबे होते है और रात छोटी, वही दिन की झुलसती गर्मी में लोगों के लिए काम करना कठिन हो जाता है, यह एक कारण है जिससे लोगों का Physiological पैटर्न बदलता है. धरती का टेम्परेचर बढ़ने से लोगों को ज्यादा पानी की जरूरत होती है और पानी के ऊपर Vaporisation के इफेक्ट से पानी सूखता चला जाता है जिससे पानी नैचुरल वाटर बॉडी पर स्ट्रैन बढ़ता चला जाता है. गौर करने की बात यह है कि, एक आदमी का नॉर्मल टेम्परेचर 38 डिग्री सेल्सियस होता है, डॉक्टरों के अनुसार आदमी का सबसे ज्यादा टेम्परेचर 46 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है. तो कारण साफ है, एक आदमी जब अपने शरीर से ज्यादा टेम्परेचर के एक्सपोजर में आता है तब उसकी बॉडी से न्यूट्रिएंट ड्रैन होने शुरू हो जाते है, जिससे या तो आदमी मर सकता है या किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है.

अगर इसे बड़ी पिक्चर में हम देखे तो हीटवेव के इफेक्ट देश को भी नुकसान पहुंचाते है. गर्मी के समय एक आदमी धूप और लूँ के डायरेक्ट एक्सपोजर में आता है जिससे उसका एनर्जी लेवल कम होता है. वही ठंड के समय एक आदमी ज्यादा काम कर सकता है क्योंकि मौसम उसके शरीर से अनुकूल होता है. यानि हीटवेव के दौरान एक आदमी की लेबर प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है, जिससे देश की जीडीपी में भी नुकसान होता है.

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देश को हीट एक्शन प्लान की जरूरत

हीटवेव का दौर भारत में अप्रैल के महीने से ही शुरू हो गया था. या एक सिग्नल है कि आने वाले दिनों में टेम्परेचर औसत से ज्यादा बढ़ेंगे और हीटवेव अब कॉमन हो जाएगा. हीटवेव और बढ़ते टेम्परेचर से बढ़ने के लिए जरूरी है हीट एक्शन प्लान एक ऐसी प्रणाली जोकि लोगों कोई हीट एक्सपोजर से होने वाली कठिनाइयों से बचाए और ग्लोबल टेम्परेचर को कम करने में मदद करें.

2013 में Ahmedabad नगर निगम ने पहली बार हीट एक्शन प्लान अपनाया था जिसे पूरी विश्व में सराहा भी गया. उसकी बाद भारत सरकार ने 23 राज्यों के करीब 130 से ज्यादा शहरों के लिए हीट एक्शन प्लान बनाया. हालांकि इस सरकारी ढांचे के अथक प्रयास के बावजूद इसके पारदर्शिता, फंड और कानूनी आधार का आभाव है.

बढ़ती गर्मी देश ही नहीं बल्कि पूरी विश्व के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. हीट स्ट्रेस की वजह से अस्थमा, मेंटल हेल्थ, डाइअबीटीज़ जैसी बीमारियों से लोग ग्रस्त होते जा रहे है. देश के मॉर्टलिटी रेट भी घट रहे है और इन सब की वजह है क्लाइमेंट चेंज. 2000-2019 के बीच पूरे विश्व में हर साल करीब 4,89,000 लोगों की मौत हुई है, और यह उन कारणों से हुई है जो बीमारियाँ गर्मी की वजह से होती है. यह आकड़ें डराने वाले है, लेकिन साथ ही यह एक सिग्नल भी है हमारे फ्यूचर को सेक्युर करने के लिए.

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