अब शाही नहीं राजसी स्नान …अखाड़ा परिषद ने किया प्रस्ताव पारित

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Mahakumbh 2025: उतर प्रदेश के संगम नगरी प्रयागराज में साल 2025 में महाकुंभ है. इसको लेकर अभी से तैयारियां जोर शोर से चल रही है. पिछले हफ्ते सीएम योगी ने महाकुम्भ के लोगो और वेबसाइट के साथ मोबाइल एप्प को भी लांच कर दिया है. लेकिन इस बार कुम्भ के कई चीजों में बदलाव देखने को मिल सकता है. इसका कारण है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने महाकुंभ में शाही स्नान और पेशवाई जैसे शब्दों की जगह हिन्दी-संस्कृत के शब्दों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव पारित किया है.

शाही की जगह राजश्री होगा स्नान…

बता दें कि इस बार महाकुम्भ में स्नान “शाही” नहीं बल्कि “राजश्री” होगा. महाकुंभ स्नान को लेकर 8 अखाड़ों के संतों ने मिलकर स्नान को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ अहम फैसले लिए हैं. उन्होंने कहा कि अब महाकुंभ में शाही स्नान की जगह राजसी स्नान होगा.

अखाड़ों के संतों ने बदला शाही स्नान का नाम

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी की अध्यक्षता में प्रयागराज में निरंजनी अखाड़ा दारागंज के मुख्यालय में अहम बैठक हुई. इस दौरान परिषद के महामंत्री हरि गिरी महाराज के साथ 8 अखाड़ों के संत भी मौजूद रहें. बैठक में शाही स्नान के नाम बदलने के फैसले पर मुहर लगी. इसके साथ ही स्नान को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ अहम फैसले लिए गए.

कैसे पड़ा शाही स्नान का नाम…

अब मन में सवाल उठता है कि कुम्भ हो या महाकुम्भ स्नान को शाही स्नान क्यों कहा जाता है. तो आपको बता दें कि प्राचीन काल में अखाड़ों के साधु-संतों के लिए धर्म की रक्षा करते हुए हत्या करना अपरिहार्य था. चूंकि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं, इसलिए अखाड़ों के शस्त्रधारी साधु-संतों को राजयोगी स्नान (शाही स्नान) में प्राथमिकता दी गई. इसके बाद से इसे शाही स्नान का नाम दिया गया.

शाही स्नान का मतलब है संगम में साधुओं और भक्तों का स्नान, जिसके बाद भव्य परेड निकाली जाती है. भक्तों का मानना है कि इससे आत्मा के सभी पिछले पाप धुल जाते हैं और मोक्ष या जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है.

इन विकल्पों पर हुआ मंथन…

शाही स्नान: राजसी स्नान, अमृत स्नान, वैभव स्नान, देव स्नान, देवर्षि स्नान

पेशवाई: छावनी प्रवेश, संत प्रवेश, देवर्षि प्रवेश, देव प्रवेश, आराध्य पालकी प्रवेश

क्या है पेशवाई परंपरा…

कुंभ व महाकुंभ का वैभव अखाड़े होते हैं. 13 अखाड़ों की विशेष संस्कृति व परंपरा है. जिस शहर में कुंभ मेला लगता है, उसके क्षेत्र में अखाड़े ध्वज-पताका, बैंडबाजा के साथ आराध्य की पालकी लेकर प्रवेश करते हैं. इसे पेशवाई कहते हैं.

शाही स्नान परंपरा..

वहीं, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या व वसंत पंचमी के स्नान पर अखाड़े स्नान करते हैं, जिसे शाही स्नान कहा जाता है. इसमें अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, नागा संन्यासी सहित समस्त संत स्नान करते हैं.

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