अब नहीं मिलेगा निहालगढ़ का मशहूर समोसा ?

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”निहालगढ़ का समोसा 15 का दो- 15 का दो …” यह सुनते ही इसे खाने के लिए मचल जाने वाले लोगों को अब यह आवाजा उनके कानों में नहीं सुनाई नहीं पड़ेगी. क्योंकि, यूपी सरकार की नाम बदलने की कवायद अब शहरों से रेलवे स्टेशनों तक आ पहुंची है. इसके चलते आज 8 रेलवे स्टेशनों के नाम में बदलाव किया गया है. इन आठ रेलवे स्टेशनों में उस निहालगढ़ स्टेशन को भी शामिल किया गया है, जिसकी पहचान उसके नाम से ज्यादा वहां बिकने वाले समोसे हैं.

अगर आप भी सुल्तानपुर से लखनऊ तक की यात्रा ट्रेन से करते हैं या कभी किए हैं तो इन समोसों की दीवानगी से आप भी बखूबी वाकिफ होंगे. क्योंकि, इस स्टेशन के आने के पहले ही लोग समोसे खरीदने की तैयारी पहले से करने लग जाते हैं, क्योंकि इस स्टेशन पर ट्रेन पास देने भर के लिए कुछ ही समय रूकती . इस चंद देर के ठहराव में समोसे की जो लूट मचती है वह देखते ही बनती है. ऐसे में अब निहालगढ़ के समोसे से लोग क्यों वंचित रहेंगे और क्या इसका इतिहास है आइए जानते हैं….

सन 1958 से दुनिया भर में है मशहूर

ऐसे में बात करें निहालगढ़ के समोसे के इतिहास की तो पता चला कि 80 के दशक में पहली बार वाराणसी से लखनऊ रेल मार्ग पर वरूणा ट्रेन चलाई गयी थी. तब ट्रेनों को पास देने के लिए कुछ समय के लिए निहालगढ़ स्टेशन पर रोका जाता था. ऐसे में ट्रेन रूकने पर उस समय पर इस स्टेशन पर खाने पीने की फिलहाल कुछ खास व्यवस्था नहीं हुआ करती थी. ऐसे में पहली बार यहां पर समोसे की ब्रिकी की शुरूआत की गई. पहली बार में लोग भूख मिटाने के लिए इससे खरीदा करते थे, लेकिन उसके बाद इसका स्वाद आए दिन यात्रा करने वाले लोगों में दीवानगी का रूप लेता गया. आज आलम ये है कि केवल यूपी ही नहीं बल्कि दुनियाभर में यहां के समोसे मशहूर हो गए हैं.

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खास तरीके से बेचे जाते हैं निहालगढ़ के समोसे

निहालगढ़ के समोसे का स्वाद ही नहीं बल्कि इसकी बिक्री करने का तरीका भी अद्भुत है. जहां बाकी स्टेशनों पर समोसे आपको अखबार की रद्दी में लिपटे या किसी परात में रखें मिलते हैं वहीं निहालगढ़ के समोसे साफ गत्ते में भूरे रंग विशेष लिफाफे में लपेट कर बेचे जाते हैं. इसकी वजह से ये जहां गंदगी से बचते ही हैं वहीं खरीददार को भी इसे खाने में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती है.

साफ-सफाई का रखा जाता खास ख्याल

एक फूड ब्लाग को दिए गए इंटरव्यू में निहालगढ़ समोसे बनवाकर बिक्री कराने वाले ने बताया कि हमारे समोसों के स्वाद के अलावा एक खासियत यह भी है कि यह काफी साफ-सुथरे तरीके से तैयार किए जाते हैं. हम इसके लिए अच्छे तेल के साथ ही सफाई का पूरा ख्याल रखते हुए इसे बनाते हैं ताकि हम स्वाद के साथ साथ अपने ग्राहकों को स्वास्थ्य भी दे सके.

रोजाना तीन से चार हजार समोसों की होती है बिक्री

वहीं बात करें अगर समोसे की बिक्री की तो, निहालगढ़ स्टेशन पर रोजाना करीब तीन से चार हजार समोसों की बिक्री हो जाती है. इन समोसों को बनाने की फैक्ट्री यहां की एक प्रतिष्ठित फैमिली 80 के दशक से चलाती आ रही है. इस परिवार के एक सदस्य़ बताते हैं कि, इसकी शुरूआत उनके पूर्वजों ने की थी और इन समोसों की लोकप्रियता आज भी कायम है. वहीं उस समय से आज तक प्रोडक्शन यूनिट में आज भी क्वालिटी और हाइजीन बरकरार रखा जाता है. मजेदार बात यह भी है कि यूपी के यह एक मात्र ऐसे समोसे वाले हैं जो सिर्फ समोसे पर जीएसटी देते हैं.

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अब क्यों बंद हो जाएंगे निहालगढ़ के समोसे ?

 

वहीं अब बड़ा सवाल यह है कि, निहालगढ़ के समोसे क्यों बंद हो जाएंगे ? अगर इस शीर्षक ने आपको भी परेशान कर दिया है तो, परेशान होने की बात नहीं है क्योंकि, निहालगढ़ में समोसों की बिक्री आज भी हो रही है और आगे भी जारी रहेगी. बस नहीं बिकेगे तो निहालगढ़ के समोसे क्योंकि, यूपी की योगी सरकार ने उत्तर रेलवे में पड़ने वाले 8 रेलवे स्टेशन के नाम में बदलाव कर दिया है, जिसमें निहालगढ़ का नाम भी शामिल है. इसके साथ ही अब निहालगढ़ का नाम बदलकर ‘महाराजा बिजली पासी’ कर दिया गया है. ऐसे में अब ये समोसे निहालगढ़ के समोसे नहीं बल्कि ‘महाराजा बिजली पासी’ के समोसे के नाम से जाने जाएंगे.

इन स्टेशनों के बदले गए नाम

रेलवे द्वारा जिन आठ रेलवे स्टेशनों के नाम बदले गए हैं उसमें फुरसतगंज रेलवे स्टेशन अब ‘तपेश्वरनाथ धाम’ के नाम से जाना जाएगा. वहीं कासिमपुर हॉल्ट का नाम ‘जायस सिटी’ होगा. जायस रेलवे स्टेशन का नाम अब ‘गुरू गोरखनाथ धाम’ होगा. बनी रेलवे स्टेशन अब ‘स्वामी परमहंस’ होगा. वहीं मिसरौली अब ‘मां कालिकन धाम’से जाना जाएगा. निहालगढ़ का नाम ‘महाराजा बिजली पासी’ होगा. वारिसगंज का नाम ‘अमर शहीद भाले सुल्तान’ होगा और अकबरगंज का नाम ‘मां अहोरवा भवानी धाम’ होगा.

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