बीएचयू में शोध से निकली नई दवा, मधुमेह रोगियों के घाव ठीक करने में बेहद कारगर
आईआईटी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) के स्कूल ऑफ मैटेरियल्स साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने नया शोध कर पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि ’पंचवल्कल’ के मिश्रण को विकसित कर नया रूप देने में सफलता प्राप्त कर ली है.
वाराणसी, आईआईटी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) के स्कूल ऑफ मैटेरियल्स साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने नया शोध कर पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि ’पंचवल्कल’ के मिश्रण को विकसित कर नया रूप देने में सफलता प्राप्त कर ली है. विज्ञानियों द्वारा बनाया गया स्थिर ’सॉल्यूशन’ और बॉयोडिग्रेडेबल ’पैच’ न सिर्फ किसी भी प्रकार के घाव, ऑपरेशन के बाद लगे चीरे में उपयोगी साबित होगा बल्कि मधुमेह रोगियों को होने वाले अल्सर या उनके घावों को ठीक करने में बेहद कारगार सिद्ध होगा. इस शोध को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के पूर्व डीन और प्रसिद्ध गुदा रोग विशेषज्ञ पद्मश्री प्रोफेसर मनोरंजन साहू के साथ मिलकर विकसित किया गया है, जिन्होंने नैदानिक परीक्षण और इन प्रयोगों की सफलता में योगदान दिया.
भारत सरकार से मिला पेटेंट
उक्त जानकारी स्कूल ऑफ मैटेरियल्स साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर प्रलय मैती ने दी. बताया कि पारंपरिक भारतीय औषधि ’पंचवल्कल’ को एक बायोकंपैटिबल स्टेबलाइजर का उपयोग करके फैलाव के माध्यम से तैयार किया गया. साथ ही नए तरह का बॉयो पॉलिमर उपयोग कर स्थिर ’सॉल्यूशन’ बनाया गया.
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इस प्रयोग की सफलता के बाद शोध टीम ने इसी स्थिर ’सॉल्यूशन’ को लैब में इलेक्ट्रोस्पिनिंग के माध्यम से एक अत्यधिक छिद्रयुक्त नैनोफाइबर बॉयोडिग्रेडेबल ’पैच’ का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर ली है. आईआईटी (बीएचयू) को दोनों शोधों के लिए पेटेंट कार्यालय, भारत सरकार द्वारा दो पेटेंट भी मिल चुका है.
चूहों के बाद इंसानों पर प्रयोग रहा सफल
प्रोफेसर ने बताया कि इन दोनों स्थिर ’घोल’ और ’पैच’ को चूहों के मॉडल पर परीक्षण करने के बाद इंसानों पर किया गया क्लीनिकल परीक्षण भी सफल रहा. इसमें बिना साइड इलेक्ट के घाव भरने और मधुमेह रोगियों के अल्सर को ठीक करना शामिल रहा है.
स्प्रे, पैच और जेल फार्म में बाजार में
प्रोफेसर प्रलय मैती ने बताया कि आईआईटी (बीएचयू) ने इन दवाओं के व्यवसायीकरण के लिए हरिद्वार स्थित आयुर्वेद कंपनी एम/एस मेरियन हेल्थ साइंस प्रा. लिमिटेड को प्रौद्योगिकी हंस्तांतरित किया है. इस दवा कंपनी ने इन शोधों को स्प्रे, पैच और जेल फार्म में बाजार में उतार दिया है.
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बता दें कि, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेदिक विभागों में आईआईटी (बीएचयू) में मरीजों पर इसका उपयोग भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है. यह दवाएं बाजार में पहले से उपलब्ध दवाओं से बेहतर, इकोफ्रेंडली, बॉयोडिग्रेडेबल और सस्ती भी है. डॉ प्रलय मैती के अग्रणी शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है और इसके कई वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित भी किया गया है.
क्या है ’पंचवल्कल’
पंचवल्कल पांच वृक्षों की छाल से बनी औषधियों का संयोजन है, जिसका उपयोग आयुर्वेद में विभिन्न चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए किया जाता हैः
वातः फ़िकस बंगालेंसिस एल.
उदुम्बराः फ़िकस ग्लोमेरेटा रोक्सब.
अश्वत्थः फ़िकस रिलिजिओसा एल.
परीशाः थेस्पेसिया पॉपुलानिया सोलैंड. पूर्व-कोरिया
प्लक्षः फ़िकस लैकोर बुच-हैम
पंचवल्कल में विभिन्न प्रकार के गुण हैं. इसमें घावों को साफ करने और उपचार करने, सूजन सही करने, रोगाणुरोधी, एंटीसेप्टिक, एंटीऑक्सीडेंट, दर्दनाशक के गुण होते हैं.
मानव जाति के लिए बेहद उपयोगी
निदेशक प्रोफेसर अमित पात्रा ने कहा कि प्रोफेसर प्रलय मैती और उनकी शोध टीम ने जो सफलता अर्जित की है वो पूरी मानव जाति के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा. वे इसके लिए बधाई के पात्र हैं. उन्होंने शोध टीम को हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया है.