‘दस साल की सजा…1 करोड़ तक जुर्माना’, प्रतियोगी परीक्षाओं में सेंधमारी रोकने के लिए नया कानून लागू

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देशभर में आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में सेंध लगाने वाले गिरोह पर शिकंजा कसने के लिए केंद्र सरकार ने कानून लागू कर दिया है. इस कानून के लागू होने के बाद अब अगर कोई भी एजेंसी, गिरोह, अधिकारी दूसरे की जगह पर परीक्षा देते हुए पाए गए तो उनके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है.

कानून के दायरे में कौन?

परीक्षा में पेपर लीक को रोकने के लिए लाए गए इस कानून के दायरे में केंद्रीय एजेंसियों संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड, आईबीपीएस और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा आयोजित परीक्षाओं के अलावा केंद्र सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग, और उनके अधीनस्थ या संबद्ध कार्यालयों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती के लिए आयोजित परीक्षाएं शामिल हैं.

21 जून को लागू हुआ कानून

बता दें कि कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय की शुक्रवार (21 जून) रात जारी अधिसूचना में कहा गया है कि लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) अधिनियम, 2024 को 21 जून 2024 से लागू कर दिया गया है. इससे संबंधित विधेयक इस साल 5 फरवरी को लोकसभा में पेश किया गया था. यह 6 फरवरी को लोकसभा और 9 फरवरी को राज्यसभा में पारित हुआ था.

कब हो सकती है कार्रवाई?

कानून के तहत पेपर लीक, उत्तर पत्र या ओएमआर शीट के साथ छेड़छाड़, परीक्षा के दौरान कदाचार या चीटिंग कराने, कंप्यूटर सिस्टम के साथ छेड़छाड़, परीक्षा से जुड़े अधिकारियों को धमकी देने के साथ उम्मीदवारों को ठगने के लिए फर्जी वेबसाइट बनाने आदि के लिए सजा का प्रावधान है. इस कानून के तहत आने वाले सभी अपराधों को संज्ञेय, गैर-जमानती और नॉन-कंपाउंडेबल की श्रेणी में रखा गया है.

कानून के तहत कदाचार साबित होने पर कम से कम तीन साल और अधिक से अधिक पांच साल की कैद और 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है. जुर्माना न देने पर सजा बढ़ाई भी जा सकती है.

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यदि अपराधी सेवा प्रदाता है – मसलन परीक्षा केंद्र उपलब्ध कराने, ओएमआर शीट की प्रिंटिगं आदि करने वाले – तो उनसे परीक्षा का पूरा खर्च वसूलने के साथ एक करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इसके अलावा उसे चार साल के लिए केंद्र सरकार की किसी भी परीक्षा में सेवा प्रदान करने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.

10 साल की जेल

परीक्षा के आयोजन से जुड़े किसी वरिष्ठ अधिकारी की मिलीभगत सामने आने पर उसे कम से कम तीन साल और अधिकतम 10 साल की कैद की सजा दी जा सकती है. साथ ही एक करोड़ रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान है. जुर्माना न देने पर कैद की अवधि बढ़ाई जा सकती है.

एक समूह बनाकर किये गये कदाचार के लिए कम से कम पांच साल और अधिकतम 10 साल की कैद हो सकती है. इसके लिए न्यूनतम एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. इन मामलों में जांच का अधिकार डीएसपी या एसीपी या इससे ऊपर के रैंक के पुलिस अधिकारी को है. केंद्र सरकार के पास जांच का जिम्मा किसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपने का भी अधिकार होगा.

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