भड़के चीफ जस्टिस ने नए सिरे से सिफारिश का दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट में दो नए जजों की नियुक्ति को लेकर हो रहे विवाद में एक नई बात सामने आई है। दरअसल, पहले के कलीजियम द्वारा जजों के नाम की अनुशंसा करने के पहले मीडिया में उनके नाम लीक होने तथा नए प्रतिकूल मटीरियल मिलने के कारण चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 12 दिसंबर के कलीजियम के प्रस्ताव को पलट दिया था
। बता दें कि पहले कलीजियम ने राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रदीप नाद्राजोग और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की थी।
बताया जा रहा है कि मीडिया में नाम लीक होने की खबरों से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई नाराज थे। मीडिया को बताया कि चीफ जस्टिस मीडिया में लीक हुई खबरों से खासे नाराज थे और उन्होंने अपने विशेषाधिकार के तहत फिर से बैठक बुलाई।
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सूत्र ने बताया, ‘सुप्रीम कोर्ट में किसी जज की नियुक्ति चीफ जस्टिस के मुहर लगाने से पहले नहीं हो सकती।’ चीफ जस्टिस लीगल वेबसाइट और मीडिया में दो जजों के नाम पर विचार चलने के दौरान ही उन्हें नियुक्त करने का फैसला कहकर प्रचारित किए जाने से नाराज थे।
सूत्र ने बताया, ‘आश्चर्य की बात है कि कुछ नामों को प्रिंट और इेलक्ट्रॉनिक मीडिया में 13 दिसंबर को प्रकाशित किया गया जबकि तब तक संवैधानिक प्रक्रिया, शर्तों और दूसरे नियमों को ध्यान में रखकर कलीजियम अपनी सिफारिशों पर ही विचार कर रही थी। इस घटना को बेहद गंभीर मानते हुए जस्टिस गोगोई ने दो जजों की सिफारिश का फैसला वापस लिया और नए सिरे से इसे कलीजियम के सहयोगी सदस्यों के सामने फिर से पेश करने का फैसला किया
।’ हालांकि, जब तक कलीजियम की दूसरी बैठक बुलाई जाती जस्टिस मदन बी लोकुर रिटायर हो गए और उनके स्थान पर जस्टिस अरुण मिश्रा की कलीजियम में एंट्री हुई। नई कलीजियम बैठक में चीफ जस्टिस के साथ जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस एस एस बोबडे, जस्टिस एन वी रमन्ना और जस्टिस अरुण मिश्रा थे।
5 और 6 जनवरी को हुई इस बैटक के बारे में एक सूत्र का कहना है कि 12 दिसंबर को कलीजियम बैठक में की गई सिफारिशों को परे रखकर नए सिरे से नामों पर विचार करने की जरूरत है। यह फैसला कलीजियम ने लिया। बता दें कि कलीजियम के पहले के निर्णय को आगे नहीं बढ़ाने पर बार काउंसिल और पूर्व चीफ जस्टिस आर एम लोढा समेत कुछ पूर्व जजों ने विरोध किया था।
इनका आरोप है कि कलीजियम ने जजों की नियुक्ति में वरिष्ठता का ख्याल नहीं किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के मामले में केवल वरिष्ठता का ही ध्यान नहीं रखा जाता है।
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