विपक्ष ने नहीं, संगठन ने पीएम मोदी के सम्मान को पहुंचाया ठेस
राहुल गांधी की बढ़त का आधे मतों से भी नहीं जीत सके भाजपा के सर्वोच्च नेता
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत के बाद भी भाजपा की खुशी पर ग्रहण लग गया है. रिकार्ड मतों से जीत का दावा हवा हवाई साबित हुआ है. इस सीट के सबसे बड़े चेहरा खुद मोदी थे तो उनके समर्थन में पूरी भाजपा सेना उतर आई थी. भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने खुद मोर्चा संभाल रखा था, जो इस कार्य में दक्ष बताए जाते हैं. स्थानीय स्तर पर प्रदेश में तीन मंत्री तो कई विधायक व एमएलसी भी हैं. इसके बाद भी अजय राय को चार लाख से अधिक मत मिलना, इनकी कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. बात दूर तक जा चुकी है. दिल्ली में संगठन की ओर से समीक्षा भी शुरू हो गई है. पीएम मोदी की जीत के बाद भी बनारस भाजपा पर गाज गिरेगी, यह तय माना जा रहा है. पार्टी के अंदरखाने में इसकी तारीख भी तय हो गई है. 10 जून तक भारी बदलाव के आसार बताए जा रहे हैं.
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विधायकों व महापौर से जनता में अपनेपन का भाव हुआ खत्म
काशी की जनता से जनप्रतिनिधियों की दूरियां काफी बढ़ गई हैं. जनसमस्याओं से अब उनका उतना सरोकार भी नहीं रहा है. चुनाव प्रचार के दौरान विधायक सौरभ श्रीवास्तव को अस्सी क्षेत्र में जनता ने बैरंग लौटा दिया था. क्योंकि वहां की जनता जगन्नाथ कारीडोर के नाम पर उनके घरों और जमीनों को अधिग्रहण की तैयारी कर चुकी है. प्रशासनिक स्तर पर कार्य भी शुरू हो चुके थे. चुनाव और अचानक जन विरोध को देखते हुए प्रशासन ने अधिग्रहण की कार्रवाई को स्थगित कर दिया था. लेकिन जगन्नाथ कारीडोर की जद में आये 300 परिवारों की गहरी नाराजगी का चुनाव परिणाम पर असर भी दिखाई दे रहा है. यह तो मात्र एक बानगी भर है. कमोवेश यही हाल शहर उत्तरी का भी है. कहने को तीन बार से विधायक रवींद्र जायसवाल जीत रहे हैं. प्रदेश सरकार में वे मंत्री भी हैं लेकिन उनका जनता के बीच मौजूदगी न के बराबर है. किसी इलाके में पानी नहीं आ रहा. लोग दूषित पानी पी रहे हैं. लोगों का कहना है कि सीवर जाम आदि समस्याएं तो वे सुनते ही नहीं. जनता का फोन तक नहीं उठाते हैं. यही वजह है कि उनके विधानसभा क्षेत्र की कई बूथों पर 25 फीसदी से भी कम मतदान हुए. शहर दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी की कार्यशैली ही रही कि उन्हें विधानसभा चुनाव में किसी प्रकार जीत मिली. मंत्रालय भी हाथ से गया. यह जनता से उनके संबंधों की एक नजीर बनी. मंत्री अनिल राजभर का हाल यह है कि बहुत से युवा उनको प्रत्यक्ष देखे भी नहीं हैं. काम की उपलब्धि उनकी लिस्ट में खोजे नहीं मिलती.
जनता से सरोकार नही बना पाए कई एमएलसी
भाजपा में बनारस से कई एमएलसी भी हैं. इसमें कुछ नए तो कुछ पुराने हैं तो कुछ नए बनाए गए हैं. इनको कुर्सी तो मिली. लेकिन जनता से सरोकार में कमी रह गई. सेवापुरी हो या फिर रोहनिया, बहुत से इलाकों में यह परिचय के मोहताज हैं. महापौर अशोक तिवारी की भी पहचान आश्वासन देनेवाले नेता के रूप में बनती जा रही है. दो बार से महानगर व तीन बार से जिलाध्यिक्ष की कुर्सी नहीं बदली. संगठन के पदाधिकारी आत्ममुग्ध हो चले थे. जनसंपर्क का कोरम मतदाता पर्ची पहुंचाने तक सीमित रहा.
पन्ने पर ही सक्रिय रह गये पन्ना प्रमुख
जिला व महानगर की असफलता का आलम यह था कि कोर कार्यकर्ताओं की जगह कोरम पूरा करने के लिए नव युवाओं को पन्ना प्रमुख बना दिया गया. उन्हें एक सहयोगी भी दिया गया. पन्ना प्रमुखों पर 120 मतदाताओं की जिम्मेदारी सौंपी गई. प्रत्येक दिन मुलाकात के साथ ही मतदाताओं से विकास योजनाओं व संगठन के सिद्धांतों को लेकर चर्चा करनी थी. पन्ना प्रमुख चूंकि कोर कार्यकर्ता नहीं थे, लिहाजा तर्क शक्ति भी कमजोर साबित हुई. परिणाम, विपक्षी दलों से जुड़े मतदाताओं के बीच वे मनोरंजन का साधन बन गए. भाजपा के पक्ष में वोट करने की बजाए समर्थक वोटर भी निराश होकर दूर हो गए.