नैनो प्रदूषण से दूषित हो रहीं फसलें

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नैनो प्रौद्योगिकी चिकित्सा, सौंदर्य जैसे क्षेत्रों में काफी कारगर साबित हुई है। वर्तमान में नैनो प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर 600 से अधिक कंपनियां 2200 उत्पाद बना रही हैं। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि नैनो प्रौद्योगिकी से बनने वाले उत्पादनों का फसलों पर बुरा असर पड़ रहा है। नैनो प्रौद्योगिकी से बने उत्पादों के प्रदूषण की वजह से गेहूं में पोषक तत्वों में 40 फीसद तक कमी आई है। इस बात का पता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में चला है। इस शोध को अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र वाइब्रेशनल स्पेक्ट्रोस्कोपी ने प्रकाशित किया है।

नैनो प्रौद्योगिकी जिंदगियों पर डाल रही प्रभाव

नैनो प्रौद्योगिकी जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रही है। इसके बहुतायत फायदे हैं। स्वास्थ्य, ऊर्जा, सौंदर्य आदि इसके उभरते क्षेत्र हैं पर इसके मानकों व कचरा निष्पादन के लिए अभी तक सरकार की ओर से कोई गाइडलाइन नहीं बनी है। ऐसे में नैनो प्रौद्योगिकी के उत्पादों से जल, मृदा व कृषि उत्पाद प्रभावित व प्रदूषित हो रहे हैं। इस दिशा में भौतिक विज्ञानी प्रो. केएन उत्तम के निर्देशन में शोध छात्रा श्वेता शर्मा व अभिसारिका भारती ने चार वर्ष से पूर्व फसलों पर अध्ययन शुरू किया था। यह शोध मूलत: गेहूं पर आधारित है।

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खुद की प्रयोगशाला में उगाए गेहूं

प्रो. केएन उत्तम ने बताया कि हमने प्रयोगशाला में गेहूं के पौधे लगाए। इसमें जिस मृदा का प्रयोग किया गया उसे पहले प्रदूषण रहित किया गया। इसके बाद कापर आक्साइड नैनों कणों का (10 मिलीग्राम प्रतिलीटर से आठ हजार मिलीग्राम प्रति किलोग्राम तक) प्रयोग किया गया। देखा गया कि कॉपर आक्साइड नैनो पार्टिकल फसलों को प्रभावित करते हैं। इनके प्रयोग से गेहूं में क्लोरोफिल एवं टैरोटनाइड, काब्रोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड व क्यूटिन की मात्रा में बेहद कमी आ जाती है। पौधे की वृद्धि भी कम हो जाती है। इससे पैदा होने वाले गेहूं के पोषक तत्वों में भी करीब 40 फीसद तक कमी आ जाती है।

प्रो. उत्तम ने बताया कि गेहूं मानव भोजन का महत्वपूर्ण भाग है। गेहूं में 60 फीसद स्टार्च, 10 से 18 फीसद प्रोटीन, 10 से 17 प्रतिशन वसा होता है। खनिज पदार्थ चार से सात प्रतिशत तक होते हैं। वल्र्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन का निर्देश है कि गेहूं की गुणवत्ता बढ़ाई जाए। यही कारण है कि खाद की नई-नई किस्मों का प्रयोग हो रहा है।

साभार- जागरण

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