जश्न-ए-आजादी : जब अल्फ्रेड पॉर्क की मिट्टी चूमने लगा था जनसैलाब
देश आज अपनी आजादी के 70 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है, चारों तरफ देशभक्ति में सराबोर माहौल देशभक्ति के जज्बे के साथ देश के उन वीर जवानों को याद कर रहा है जिन्होंने इस आजादी की कीमत अपनी जान देकर चुकाई थी। देश को आजाद कराने के लिए न जाने कितने हमारे अमर पुरोधा ने अपनी जांन की परवाह न करते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया और उनकी जड़ें तक हिला कर रख जी जिसके बाद वो ज्यादा दिनों तक भारत देश को गुलाम नहीं रख सके।
रग-रग में भरी थी देशभक्ति
उन्हीं अमर गाथाओं में जिनकी गाथा गाई जाती है वो हैं शहीद चंद्रशेखर आजाद, जिनके बलिदान की गाथा इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखी हुई है। बचपन से ही भारत को आजाद कराने का सपना देखने वाले आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। अपने बेखौफ अंदाज से अंग्रेजों की जड़े हिलाने वाले आजाद ने कसम खाई थी कि वो कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे,और इसी लिए जब अंग्रेजों ने उन्हें अलफ्रेड पार्क में घर लिया था तो बंदूक की आखिरी गोली खुद को मार ली थी लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।
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काकोरी कांड को दिया अंजाम
चंद्रशेखर आजाद के दल में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल,सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी थे जो देश को सिर्फ गोली के दम पर अंग्रेजों से आजाद कराना चाहते थे। साल 1922 में गांधी जी के द्वारा चलाया जा रहा असहयोग आंदोलन अचानक बंद कर देने के बाद चंद्रशेखर आजाद और उनके साथी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। इस संगठन से जुड़ने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया और फरार हो गए।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला
इसके बाद साल 1927 में बिस्मिल के साथ 4 साथियों के बलिदान के उत्तर भारत की सभी छोटी पार्टियों को एक में मिलाकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया और सरदार भगत सिंह के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स को गोली मारकर ले लिया और दिल्ली में असेम्बली बम कांड को अंजाम दिया।
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भगतसिंह और साथियों की सजा कम करवाना चाहते थे
इस घटना के बाद भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा मिली जिसे कम करवाने के लिए चंद्रशेखर ने बहुत प्रयास किए लेकिन कुछ नहीं हो सका। चंद्रशेखर जब नेहरु से से मिलकर अलफ्रेड पॉर्क की चले गए और वहां पर अपने एक मित्र सुखदेव राज से किसी् बात पर चर्चा कर रहे थे तभी सीआईडी का एसएसपी नॉट बाबर जीप से वहां पहुंच गया और उन्हें चारों तरफ से घेर लिया।
अल्फ्रेड पॉर्क में अकेले ही लिया लोहा
आजाद ने जब देखा कि अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया है तो उन्होंने अपने मित्र को वहां से भगा दिया और खुद अंग्रेजों से भिड़ गए। आखिर में जब चंद्रशेखर के पाससिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने खुद को मार ली और शहीद हो गए। अंग्रेजों ने बिना किसी को सूचना दिए ही चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार कर दिया, लेकिन जब बात देश में फैसली तो जनसैलाब उमड़ पड़ा।
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मौत की खबर सुनकर उमड़ पड़ा जनसैलाब
लोग वहां पहुंच कर जिस पेड़ के नीचे चंद्रशेखर शहीद हुए थे उसकी पूजा करने लगे और वहां की मिट्टी को कपड़ों और शीशियों में भरकर अपने साथ ले जाने लगे। इलाहाबाद में आज भी वो पेड़ पार्क में स्थित है और उस पॉर्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद रख दिया गया।