हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है मिंजर मेला

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हिमाचल के चंबा में रविवार को ऐतिहासिक मिंजर मेले का धूमधाम से आगाज हो गया। चंबा की यह परंपरा 17वीं शताब्दी में शुरू हुई थी और आज मिंजर मेले ने विश्व में अपनी अनूठी पहचान बना चुका है। हिमांचल के चंबा में मिंजर मेला दुनिया में जहां आस्था और सांप्रदायिक सौहार्द मिसाल कायम कर रहा है, तो वहीं हिंदू-मुस्लिम एकता को भी दुनिया को संदेश दे रहा है।

 मुस्लिम परिवार के बिना शुरू नहीं होता मिंजर मेला

17वीं शताब्दी से शुरू हुआ ये मिंजर मेला मुस्लिम परिवार के बिना शुरू नहीं होता, क्योंकि भगवान रघुनाथ को मिंजर अर्पित करने के लिए मुस्लिम परिवार ही मिंजर तैयार करता है और इस बार भी मिंजर के प्रतीक के रूप में लगाए जाने वाले चिह्न को भी इसी मुस्लिम परिवार ने तैयार किया है। जिसे भगवान रघुनाथ की मूर्ति पर अर्पित कर मेले का आगाज किया गया।

मिर्जा परिवार तैयार करता है मिंजर

मिर्जा परिवार के खालिद और नदीम अपने अन्य सदस्यों के साथ 6 महीने से मिंजर तैयार कर रहे थे। इस बार मिर्जा परिवार के पास 10 हजार मिंजर बनाने का लक्ष्य था। खालिद कहते हैं कि वो इस परंपरा को खत्म नहीं होने देना चाहते हैं। उन्हें मिंजर तैयार करना अच्छा लगता है क्योंकि मिंजर हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देती है। मिंजर बनाने में इनका पूरा परिवार लगता है और एक मिंजर को तैयार करने में करीब 10 से 15 मिनट का समय लगता हैं।

17वीं शताब्दी से शुरू हुई थी परंपरा

हिमाचल के चंबा की यह परंपरा 17वीं शताब्दी से शुरू हुई थी। बताया जाता है कि उस समय चंबा के राजा पृथ्वी सिंह दिल्ली से लौटते समय कढ़ाई का काम करने वाले मिर्जा परिवार के कुछ लोगों को चंबा ले गये थे। इस परिवार ने मिंजर पर जरी-गोटे, रेशम व सुनहरे धागे का काम शुरू किया और तब से यह परिवार भगवान रघुनाथ को अर्पित करने के लिये मिंजर तैयार कर रहा है। मिर्जा परिवार में आज की पीढ़ी भी इस परंपरा को निभा रही है।

समय के साथ आया मेले में बदलाव

मिंजर मेले के स्वरूप में समय के साथ काफी बदलाव आया है। राजा पृथ्वी सिंह के जीत के जश्न के तौर पर मनाया जाने वाला यह मेला अब व्यापारिक हो गया है। मेले के व्यापारिक होने से इसका ऐतिहासिक महत्त्व काफी गौण हो गया है। हालांकि मेले के आयोजन को राजा की जीत के साथ-साथ वरुण देवता के आह्वान से भी जोड़ा जाता है। 17वीं शताब्दी के मध्य मिंजर मेले का आरंभ चंबा के राजा पृथ्वी सिंह की नूरपुर के राजा पर जीत के साथ हुआ। और वहां प्रजा ने राजा के स्वागत के लिये मक्की के ऊपरी हिस्से में लगी मिंजर भेंट कर उनका स्वागत किया। इसके बाद मिंजर मेले के आयोजन का सिलसिला शुरू हो गया।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओका संदेश

मिंजर मेले के आयोजन पर जिले के विभिन्न हिस्सों से पहुंची 1600 मां-बेटियों ने देश के नाम लोकगीतों पर सामूहिक नृत्य पेश कर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का संदेश दिया। जिला प्रशासन के इस प्रयास को देखने के लिए चौगान में लोग इकत्रित हुए। करीब आधा घंटे तक मां-बेटियों ने लोकगीतों पर सामूहिक नृत्य कर लोगों को जागरूक किया।

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