पंचतत्व में विलीन हुए मुलायम सिंह यादव, ऐसे मिली थी ‘धरतीपुत्र’ की उपाधि
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव पंचतत्व में विलीन हो गए हैं. सैफई में यादव परिवार की कोठी से करीब 500 मीटर दूर मेला ग्राउंड पर सपा अध्यक्ष और उनके पुत्र अखिलेश यादव ने उन्हें मुखाग्नि दी. इससे पूर्व राष्ट्रीय सम्मान के साथ तिरंगे में लाए गए उनके पार्थिव शरीर को मंत्रोच्चार के बीच वैदिक रीति से स्नान कराया गया. चंदन की चिता पर लेटे लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव के अंतिम दर्शन के लिए डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सैफई पहुंचे. मुलायम के अंतिम संस्कार में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, तेलंगाना के सीएम केसीआर राव, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू समेत तमाम दिग्गज नेताओं ने अंतिम विदाई दी.
#WATCH उत्तर प्रदेश: पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का अंतिम संस्कार सैफई में किया गया। इस दौरान लोगों ने नेताजी अमर रहे के नारे भी लगाए। pic.twitter.com/5nxBK5Mxft
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 11, 2022
जानें कैसे मिली धरतीपुत्र की उपाधि…
मुलायम सिंह यादव को देशभर में ‘धरतीपुत्र’ के नाम से भी जाना जाता था. धरतीपुत्र नाम के पीछे की कहानी बहुत ही रोचक है. मगर, अब धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव इस दुनिया में नहीं रहे. दरअसल, मुलायम सिंह यादव को धरतीपुत्र नाम अपने गुरु नत्थू सिंह यादव से मिला था. किस्सा कुछ ऐसा है कि मुलायम ने मध्यावधि चुनाव में जसवंतनगर सीट पर वर्ष 1968 से 1977 तक लगातार जीत हासिल की. उस समय सर्वहारा के हितों के लिए मुलायम सिंह ने आवाज उठाई. जब उनको नत्थू सिंह ने ‘धरतीपुत्र’ के नाम से पुकारा था. उसी वक्त से राजनीति में उनके नाम के आगे ‘धरतीपुत्र’ भी जुड़ गया था.
मुलायम सिंह यादव में बचपन से ही क्रांतिकारियों वाला गुण मौजूद था. महज 14 साल की उम्र में मुलायम ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ रैली निकाली थी. जिसके बाद से वो राजनीति का चमकता सितारा बन गए थे. राजनीति में परिपक्व होने के बाद उनके समर्थक उन्हें नेताजी कहकर भी बुलाने लगे थे.
पिता चाहते थे पहलवान बने…
मुलायम के पिता चाहते थे की उनका बेटा पहलवान बने, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. वर्ष 1962 में मुलायम सिंह कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पहुंचे थे. मुलायम की पहलवानी के कौशल ने वहां मौजूद चौधरी नत्थू सिंह यादव को काफी प्रभावित किया और फिर उसके बाद नत्थू सिंह ने मुलायम को अपने साथ रख लिया. नत्थू सिंह ने ही मुलायम की मुलाकात डॉ. राममनोहर लोहिया से करवायी थीं और तोहफे के रूप में अपने शिष्य को यूपी की जसवंतनगर सीट दे दी. उस समय मुलायम 28 साल के थे. इसके बाद वर्ष 1967 में मुलायम सिंह को अपनी सीट उपहार में देते हुए जसवंत नगर से इलेक्शन लड़वाया और मुलायम ने जीत हासिल कर सबसे कम उम्र वाले विधायक बन गए थे.
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