मुख्तार के कोयला, रेशम और मछली के धंधे की बादशाहत पर लगेगा ग्रहण!

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पूर्वांचल के बाहुबली रहे मुख्तार अंसारी का बड़ा बेटा अब्बास जेल में बंद है. 75 हजार रुपये की इनामी पत्नी आफशां अंसारी फरार है और छोटा बेटा उमर जमानत पर बाहर है. ऐसे मे अब कौन मुख्तार के गिरोह की कमान संभालेगा. कोयला, रेशम और मछली के कारोबार में अब उसके वर्चस्व के टूटने की बात सामने आ रही है. ऐसे में नये गिरोह भी इस काले धंधे में पैर जमा सकते हैं. इन सबसे अलगे उन बेनामी संपत्तियों का क्या होगा जो मुख्तार ने आपराधिक कृत्यों से अर्जित की हैं. पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक अंसारी परिवार के पास करीब 15 हजार करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति है. परिवार में अब मुख्तार के बेटों के अलावा भाई सिबगतुल्लाह और अफजाल हैं.

अकूत संपत्तियों का नहीं कोई हिसाब

मुख्तार के गिरोह पर शिकंजा कसने का काम दो हजार के दशक में शुरू हो गया था. इससे गिरोह में भगदड मची तो कुछ विदेश भाग गये तो कुछ भूमिगत हो गए. गिरोह पर शिकंजा कसने में कई पुलिस अधिकारियों ने अपना योगदान दिया. मऊ के पूर्व एसपी अनुराग आर्या हों या सीओ सिटी रहे धनंजय मिश्रा ने मुख्तार गैंग पर शिकंजा कसने में खास रोल निभाया था. उन्होंने मुख्तार के गुर्गे और कृष्णानंद राय की हत्या में शामिल फिरदौस का मुंबई जाकर एनकाउंटर किया था. धनंजय मिश्रा के अनुसार 80 के दशक में मुख्तार अंसारी का नाम पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में आ चुका था. हर क्रिमिनल को अस्तित्व के लिए धन की जरूरत होती है. मुख्तार को कमाई के एक सिस्टम की आवश्यकता पड़ी, तो उसका सामना बृजेश सिंह-त्रिभुवन सिंह से हुआ. इन दोनों गिरोहों की कोई लड़ाई नहीं थी, पूरा झगड़ा कमाई पर कब्जे का था.

तमंचा कल्चर की शुरूआत

मुख्तार की हनक अपराधियों के साथ ब्यूरोकेसी में भी थी. वो बड़े-बड़े अधिकारियों से हनक से बात करता था, लोगों के काम करवाता था. उसने लोगों का काम करवाने के लिए तमंचा कल्चर की शुरुआत की थी. अपराध जगत के छुट भइया कहे जाने वाले उसे अपना सरगना मानने लगे. इतना ही नहीं वे मुख्तार के लिए जान देने के लिए तैयार थे. इनमें धर्म और संप्रदाय कभी आडे नहीं आया. इसी से उसका गिरोह बढ़ता गया. राजनीति में आने के बाद मुख्तार ने सीधे अपराध में शामिल होना बंद कर दिया था. वो गांव की लोकल लड़ाई से निकले अपराधियों को सहारा देता था और इनसे ही बड़ी वारदात कराता था.

सरकारी व गरीबों की जमीनों पर हुई नीयत खराब

मुख्तार का गिरोह पहले भी जमीन कब्जाने का काम किया करता था, विधायक बनने के बाद उसकी नजर सरकारी और नजूल की जमीन पर पड़ी. गिरोह ने सरकारी और विवादित जमीनों पर पहले कब्जा करना शुरू किया और फिर उसे किसी को बेच देते.
पूर्वांचल में किसी जमीन पर अगर मुख्तार की नजर पड़ जाती, तो चाहे उसकी कीमत जितनी हो उसे देने से मुख्तार को कोई मना नहीं सकता था वह जितना पैसा देता था, वही जमीन मालिक को रखना पड़ता. कागज पर एक बीघा जमीन खरीद कर आस-पास की जमीन कब्जा कर लेना गिरोह की फितरत बन गई.

रंगदारी और उगाही के पैसों काे जमीन में लगाया

ED की जांच में सामने आया है कि रंगदारी वसूली और जमीन कब्जाने से मिले पैसे को विकास कंस्ट्रक्शन नाम की कंपनी के खाते में जमा करता था. इस पैसे से वैधानिक तरीके से संपत्ति खरीदता था. अकाउंट से काफी पैसा मुख्तार के ससुर जमशेद राना की कंपनी आगाज प्रोजेक्ट एंड इंजीनियरिंग के अकाउंट में ट्रांसफर किया गया.
इन पैसों से, गाजीपुर, जालौन, दिल्ली, लखनऊ में 23 संपत्तियां खरीदी गईं. ये प्रॉपर्टीज भी बाजार भाव से आधी कीमत में खरीदी गई थीं. मुख्तार के सहयोगी गणेश दत्त मिश्रा ने गाजीपुर में दो प्रॉपर्टी खरीदी थीं. उसके पास पैसा तक नहीं था. दोनों प्रॉपर्टी का सौदा 1.29 करोड़ में तय हुआ, लेकिन उसने सिर्फ कब्जा किया, पैसे दिए ही नहीं. ये मुख्तार की बेनामी संपत्तियां थीं, जिसे गणेश दत्त मिश्रा के नाम से खरीदा गया था.

बेनामी संपत्ति पर उठेगा सवाल

मुख्तार को जानने वाले बताते हैं कि मुख्तार की बेनामी संपत्ति बेहिसाब है. पुलिस और ED के मुताबिक इसकी कीमत 15 हजार करोड़ से भी ज्यादा हैं. सवाल ये है कि इसे कौन संभालेगा. धनंजय मिश्रा इस सवाल को लेकर कहते हैं कि मुख्तार का पूरा परिवार जेल में है. पत्नी फरार है और अब सिर्फ बहू निखत अंसारी और छोटा बेटा उमर जमानत पर बाहर हैं. शायद वो दिन जल्द आए कि उसकी बेनामी संपत्ति संभालने वाला कोई न रहे. उसके साथी ही सब आपस में बांट लें. यह भी कहा जा रहा है कि पूर्वांचल में मुख्तार की दहशत खत्म नहीं हुई है. उसका परिवार अब भी बुरा समय गुजर जाने का इंतजार कर रहा है. मुख्तार का पैसा यूपी में ही नहीं देश और विदेशों में भी लगा है. लोग बताते हैं कि कहा जाता है कि मुख्तार के तेल के जहाज चलते हैं. मुंबई जैसे शहरों में होटल और जमीनें हैं.

कौन संभालेगा मुख्तार का गिरोह

मुख्तार साल 2005 से जेल में था. इसके बाद पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, उसने जेल में रहकर आधा दर्जन हत्याएं कराईं. मुख्तार का काम करने के लिए शूटरों की पूरी फौज थी. वे मुख्तार के कहने पर हत्या, अपहरण, रंगदारी और ठेकों को मैनेज करते थे. योगी सरकार की सख्ती बढ़ी, तो उसने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे लाइमलाइट में आए. मुख्तार के गिरोह में तीन दर्जन से भी ज्यादा शूटर शामिल थे. इनमें कुछ मारे जा चुके हैं तो कई जल में बंद हैं. फिलहाल मुख्तार गैंग को संभालने वाला कोई नहीं है. सरकार जिस तरह कार्रवाई कर रही है, उससे लगता भी नहीं है कि कोई गैंग चलाने वाला बचेगा.

क्या कायम रहेगी बादशाहत

अपराध जगत में शीर्ष पर रहते हुए चार दशक तक मुख्तार ने अपनी हनक कायम रखी. मुख्तार इस दुनिया से विदा हो गया लेकिन उसकी बादशाहत आज भी कायम है. बात हो रही है मुख्तार अंसारी की छत्रछाया में पूर्वांचल के कई जिलों में फैले मछली के कारोबार की. इस धंधे में शामिल लोगों को आज भी इस व्यापार के लिए बकायदा दस प्रतिशत कमीशन देना पड़ता है. मछली मंडियों में प्रतिदिन आंध्रप्रदेश से आने वाले मछलियों से लदे ट्रक से व्यापार करने वाले लोग अपने कारोबार का दसवां हिस्सा मुख्तार अंसारी गैंग से जुड़े लोगों को बाइज्जत सौंप देते हैं. इस संबंध में नाम न छापने की शर्त पर मछली कारोबार से जुड़े एक व्यापारी ने दबी जुबान से स्वीकार किया कि आंध्र प्रदेश से आने वाले मछलियों से लदे ट्रक से किए जाने वाले व्यापार के लिए मऊ जिले का रहने वाला एक व्यक्ति जिसे मुख्तार अंसारी के शार्प शूटर रहे रामू मल्लाह का रिश्तेदार बताया जाता है वह जिले के आलावा गाजीपुर,मऊ, वाराणसी आदि कई जिलों में इस कारोबार को संभालता है. इस जिले में प्रत्येक माह 35-40 ट्रक मछलियों का कारोबार होता है. इसके लिए मुख्तार अंसारी गैंग को पूरे कारोबार का दस प्रतिशत कमीशन देना पड़ता है. अब देखना यह है कि अब इस कारोबार की बागडोर कौन संभालेगा.

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