MP Govt Crisis : एमपी बनेगी सियासत की नई पिच
यह हफ्ता मध्य प्रदेश की सियासतMP Govt Crisis को लेकर बहुत गर्म रहने वाला है। कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद नई सरकार के गठन और उसके आगे के रास्ते को लेकर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के बीच नए सिरे से गोटियां बिछाई जाएंगी। मध्य प्रदेश की सियासतMP Govt Crisis अब अपने सबसे दिलचस्प दौर की ओर बढ़ती दिख रही है। 2018 में कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान की सरकार को 15 सालों के बाद विधानसभा चुनाव में बहुत ही थोड़े अंतर से हराया था। तभी से सरकार की स्थिरता को लेकर सवाल उठने लगे थे, जो अंतत: सही साबित हुए। इसी तरह अब जब बीजेपी दोबारा सरकार बनाने की तैयारी कर रही है तो इस पर भी वैसे ही सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि राज्य में पहली बार वह बहुत ही छोटे बहुमत के साथ सरकार में रहेगी। इन्हीं सवालों के बीच राज्य में राजनीतिक उठापटक का दौर जारी रह सकता है।
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आधी जंग जीती, आधे की चुनौती
बीजेपी का ‘ऑपरेशन कमल’ मध्य प्रदेश में भले सफल हो चुका है और कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिर चुकी है, लेकिन पार्टी को पता है कि अभी जंग आधी ही जीती गई है। बीजेपी के लिए वहां सरकार बनाने से ज्यादा बड़ी चुनौती अपने अंदर राजनीतिक संतुलन बनाने की होगी। पार्टी का फौरी इम्तिहान कैबिनेट के गठन को लेकर होगा। बीजेपी ने कांग्रेस से आए बागी विधायकों को मंत्री बनाने का वादा किया था। 22 बागी कांग्रेसी विधायकों में से कम से कम 8 को मंत्री बनाया जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में बागियों को मंत्री बनाने के बाद बीजेपी के अंदर भी असंतोष पनप सकता है। इसके अलावा अगर ज्योतिरादित्य के कोटे से नेताओं को मंत्री बनाया जाएगा तो नरोत्तम मिश्र, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे राज्य के कद्दावर नेता भी कैबिनेट में अपनी हिस्सेदारी मजबूत करना चाहेंगे। ये सभी ऐसे नेता हैं जिन्होंने पिछले कई सालों में राज्य की राजनीति में अपने लिए अलग मुकाम बनाया है। जाहिर है कि ये सभी राज्य में अपनी पकड़ कम नहीं होने देना चाहेंगे।
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फिर पार्टी के सामने 22 सीटों पर होने वाले उपचुनाव जीतकर सरकार को स्थिरता देने की चुनौती भी है। अगर 22 सीटों का समीकरण देखें तो इनमें से अधिकतर ऐसी सीटें हैं, जहां 2018 में बीजेपी के कद्दावर नेता खड़े थे- जिन्हें कांग्रेस के नेताओं ने शिकस्त दी। अब जबकि कांग्रेस के बागी बीजेपी में आ गए हैं तो उन सीटों पर उन्हीं को टिकट देना होगा। अगर उन्हें टिकट देते हैं तो फिर बीजेपी के पुराने काडर के बागी होने का भी खतरा है। पार्टी के अंदर इस मुद्दे पर मंथन अभी से शुरू हो गया है। सूत्रों के अनुसार बीजेपी नेताओं के एक वर्ग में कांग्रेस से आए नेताओं को अपने काडर से ऊपर तरजीह देने पर अंदर ही अंदर नाराजगी भी है। राज्य की आर्थिक स्थिति भी उतनी मजबूत नहीं है, जिसके चलते कमलनाथ सरकार ने किसानों की कर्जमाफी सहित कई योजनाओं की आधी-अधूरी ही शुरुआत की थी। इन सबके बीच बीजेपी के लिए इस टर्म में बेहतर शासन देना बड़ी चुनौती होगी। इस बार उसे हनीमून पीरियड भी नहीं मिलने वाला है। सूत्रों के अनुसार मई-जून में ही सभी सीटों पर उपचुनाव हो जाएंगे। उससे पहले बीजेपी को भी अपने घर का असंतोष रोकना होगा।
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फंसेगी या फंसाएगी कांग्रेस ?
डेढ़ दशक के बाद राज्य की सत्ता हासिल करने वाली कांग्रेस राज्य में एक साल से कुछ ही अधिक समय तक सत्ता बरकरार रख सकी। जाहिर है कि पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी छोड़ना और फिर सत्ता गंवाना कांग्रेस के लिए गहरा आघात है। लेकिन पार्टी को लगता है कि उसके पास वापसी का मौका है। जाहिर है कि पार्टी पलटवार करना चाहती है और उसे पता है कि इसके लिए वक्त कम है। शनिवार को पार्टी ने इसी आक्रामक सोच का इजहार करते हुए कहा कि इसी साल 15 अगस्त को कमलनाथ दोबारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराएंगे। ऐसे विश्वास के पीछे कांग्रेस के अपने तर्क तो हैं ही, साथ ही मजबूरी भी है। पार्टी को लगता है कि अगर अगले एक-दो महीने में पार्टी ने आक्रामक तरीके से संगठन पर काम किया और कमलनाथ जमीन पर उतरे तो हालात बदल सकते हैं। नहीं तो ठीक इसके उलट भी असर देखने को मिल सकता है और पार्टी राज्य में फिर लंबे समय तक के लिए हाशिए पर जा सकती है। 22 विधायकों के इस्तीफा देने के बाद राज्य में उन्हीं की सीटों पर उपचुनाव होने हैं। कांग्रेस का दावा है कि कुछ बीजेपी विधायक भी इस्तीफा देंगे, जिनकी सीट पर उपचुनाव होंगे।
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[bs-quote quote=”(ये लेखक के अपने विचार हैं, यह लेख NBT में प्रकाशित है)” style=”style-13″ align=”left” author_name=”नरेन्द्र नाथ”][/bs-quote]
कांग्रेस अगर इनमें से 15 से अधिक सीट जीतने में सफल रही तो बीजेपी सरकार के सामने संकट पैदा हो सकता है। अब पार्टी को गुटबाजी का भी डर नहीं है और अधिकांश नेताओं के सामने अस्तित्व का खतरा भी पैदा हो गया है। कमलनाथ पहले ही कह चुके थे कि बढ़ती उम्र के बीच यह उनका अंतिम टर्म है। दिग्विजय सिंह भी राज्य की राजनीति में सक्रिय जरूर हैं, लेकिन नेतृत्व अब शायद ही उनके पास आए। जाहिर है कि पार्टी को नया नेतृत्व भी जल्द ही तलाशना होगा। दो दर्जन के करीब सीटों पर होने वाले उपचुनाव में पार्टी किस तरह आगे बढ़ती है, उससे भविष्य के नेतृत्व का भी पता चल सकता है। कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ और दिग्वजिय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह, दोनों राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं। जीतू पटवारी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। ज्योतिरादित्य की अनुपस्थिति में इस युवा नेतृत्व के सामने उस जगह को भरने का भी मौका है। पार्टी को भी अपने लिए नेतृत्व की तलाश पूरी करनी है। कांग्रेस के पास यह सब करने के लिए इस बार बहुत वक्त नहीं है और पार्टी इस बार किसी तरह की गुटबाजी से और भी रसातल में जा सकती है।
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