बहुत याद आते हैं जार्ज…

  • जार्ज साहब को देश ने ठीक ढंग से याद नहीं किया 

    कुंभ हादसे में मैं भी भूल गया.कल उनके गए छ साल हो गए. नीचे वाली एक तस्वीर आपातकाल की क्रूरता को अपनी सम्पूर्णता में दर्शाती है और जार्ज फ़र्नाडिस के पत्थर पर सिर टकराने के जज़्बे की बानगी भी है. जार्ज भारत की राजनीति में साफ़गोई, सादगी और किसी तानाशाह से अकेले जूझने की अतुलनीय हिम्मत का नाम है.

    वे सही मायनों में वे जन नेता थे. हिन्दुस्तान ही नही बल्कि इस पूरे सब-कॉंन्टिनेन्ट का प्रतिनिधित्व करते थे. अद्भुत जीवन था उनका. मंगलोर मे पैदा हुआ एक ईसाई बालक मुम्बई जाकर मज़दूरों का फायर ब्रान्ड नेता बनता है. फिर बिहार के पिछड़े इलाक़ो से चुनाव लड़ता है.मुस्लिम महिला से विवाह करता है.लोकतंत्र को ज़िन्दा रखने के लिए लगातार अपनी जान जोखिम मे डालता है.तिब्बत की लड़ाई लड़ता है.बर्मा में लोकतंत्र के लिए जूझता है. जार्ज आम आदमी के हक़ों के लिए आधी सदी तक सड़क से संसद तक को गरम रखता है. जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र से परे क्या बहुआयामी व्यक्तित्व था.

    जॉर्ज फर्नांडिस: किंग जॉर्ज-V पर पड़ा था नाम, पादरी बनने की शिक्षा लेने गए  थे - george fernandes passes away know about his education and biography  tedu - AajTak

    ALSO READ :सर्दियों में बढ़ते वजन को कुछ ऐसे करें कंट्रोल, पढ़ें खबर

    मुझे याद है इन्दिरा जी की मनमानी के ख़िलाफ़ 1974 की वो रेल हड़ताल जिसमें तीन रोज़ देश भर में चक्का जाम था. देश ने ऐसी हड़ताल कभी नही देखी. माओ से तुंग ने हड़ताल की सफलता पर जार्ज को चिठ्ठी लिख बधाई दी थी. जार्ज से मेरा मित्रवत सम्बन्ध था. इस रिश्ते की नींव मेरी पढ़ाई के दौरान ही पड़ गई थी,पर ये गाढ़ा हुआ लखनऊ के जनसत्ता के दिनों में. बाराबंकी के मेरे अभिन्न मित्र राजनाथ जी उनके मुँह लगे मित्र थे. उनके साथ ही वे अक्सर मेरे डालीबाग वाले घर आते थे. मै अकेला रहता था. इसलिए पूरा घर उनके लिए भेंट मुलाक़ात की खातिर खुला रहता था. उन दिनों मेरे पास मारुति 800 थी.

    राजनाथ शर्मा जी मेरे पास आते और कहते कि हेमंत, चलो स्टेशन, जॉर्ज आने वाले हैं. हम जॉर्ज को लेने स्टेशन जाते और उसके बाद जब तक जॉर्ज लखनऊ रहते, हम, जॉर्ज और राजनाथ जी उसी मारुति से घूमते रहते. उन दिनों मुझे याद है जब 1990 में जनता दल टूट रहा था तो जार्ज मुलायम सिंह यादव के ख़िलाफ़ विधायकों को गोलबन्द करने लखनऊ आए. मेरे घर पर ही बैठक की और 92 विधायकों को वी पी सिंह के पाले मे ले गए. जनता दल टूटा.मुलायम सिंह चंद्रशेखर जी के साथ गए. जनता दल (एस) बनाई और कॉंग्रेस के समर्थन से सरकार चलाई.

    दूसरे रोज़ मुलायम सिंह जी ने मुझसे इस बात की नाराज़गी जताई कि आपके घर में मेरी सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश रची गयी. मैने कहा आप जानते हैं, जार्ज से मेरी मित्रता है.वे अकसर यहीं रहते है.इसमे मै क्या कर सकता हूँ? साल 1993 जार्ज के जीवन का मुश्किल वक़्त था.नीतीश, शरद सब साथ छोड़ कर चले गए थे. जार्ज ने समता पार्टी बनाई. नितान्त अकेले.आगे की राजनीति कैसी हो, इस पर उन्होने लोहिया जी की जन्मस्थली अकबरपुर में एक विचार शिविर रखा. कोई डेढ़ सौ लोगों का शिविर तीन रोज़ का था. हम भी गए. अकबरपुर के खादी आश्रम में सबके रहने की व्यवस्था थी.वही बैठकें भी थी.

    When George Fernandes Asked Help From Cia And France Govt During Emergency  - Amar Ujala Hindi News Live - जब आपातकाल के दौरान फर्नांडिस ने मांगी  'सीआईए' और फ्रांस सरकार से मदद

    बैठक शुरू हुई. सबको समता पार्टी को मज़बूत बनाने और उसके विस्तार के लिए राय देनी थी. एक प्रपत्र बाँटा गया.उसे भर कर फ़ौरन लौटाना था.उस पर नाम पता लिखने के बाद कई सवाल के जवाब देने थे. मेरे साथ ही नरेन्द्र गुरू, हर्षवर्धन और राजनाथ शर्मा भी थे.नरेन्द्र गुरू जार्ज के सलाहकार दोस्त थे. राजनीति से लेकर नरेन्द्र गुरू जार्ज साहब के कपड़े लत्ते तक में राय देते थे. ये पूरी गोल समता पार्टी में जया जेटली के बढ़ते दखल से परेशान थी. पर कहे या लिखे कौन? सो बिल्ली के गले मे घंटी बाँधने का काम मुझे सौंपा गया.

    मैने उस फ़ार्म पर तगड़ा भाषण दिया. समता पार्टी को आगे बढ़ना है, तो जया जी का दखल कम हो. फ़ार्म जया जी ने ही सबसे बटोरे. न जाने क्यों जार्ज की नज़र हम पर थी. या तो हमारी खुसुर-फुसुर देखकर या एक साथ बैठे हुए बदमाश लोगों को देख, जार्ज ने जो दो चार फ़ार्म पढ़े उसमें एक मेरा भी था. अब मैं पानी पानी…. मैं तो साथियों के चढ़ाने से चढ़ गया था. जार्ज ने कहा, “हेमन्त जो लिखा है उस पर कुछ स्पैसफिक बात कहना चाहते हो तो कहो.” मैने मना कर दिया. मुझे लगा, जार्ज नाराज़ होगे. बाद में वे मुझे मिले. कहा, “मैं समझ गया था तुमसे लिखवाया गया है. नरेंद्र गुरू आजकल मुझसे भी यही कहते हैं.” वाकई ग़ज़ब के लोकतान्त्रिक आदमी थे जॉर्ज.

    मैंने राजनीति में विरले ही व्यक्ति देखे हैं जो जॉर्ज जैसे सहज हों. एक बड़ा दिलचस्प किस्सा है. एक बार राजनाथ जी मेरे साथ जॉर्ज के पास गए. मामला फैज़ाबाद के मशहूर स्कूल कनौसा कॉन्वेंट में एक बच्ची के एडमिशन का था. राजनाथ जी के मित्र की बच्ची थी. मित्र को राजनाथ जी घुग्घू बाबू कहकर बुलाते थे. राजनाथ जी ने जॉर्ज से सिफारिश की.

    जॉर्ज ने पूछा, “राजनाथ! मैं कॉन्वेंट स्कूल के उस पादरी को जानता नही, मैं कैसे लिखूं चिट्ठी?”
    “अरे आप भले ऊ पादरी का न जानत हो पर ऊ पादरी आपका जानत है.” राजनाथ जी अड़े हुए थे.
    जॉर्ज ने अगला सवाल दागा, “अच्छा उस पादरी का नाम क्या है?”

    “अब नाम हम का जानी. आप पादरी… ऊ पादरी… एक पादरी दूसरे पादरी को चिट्ठी लिखेगा. नाम से क्या मतलब.” राजनाथ जी के तर्क भी अजीबोगरीब थे.
    “अच्छा उस लड़की का नाम क्या है?” थक हारकर जॉर्ज साहब ने चिट्ठी लिखने से पहले आखिरी प्रश्न पूछा.
    “लड़की का नाम तो नाही पता. आप घुग्घू बाबू की लड़की लिख दो. इससे काम हो जाई.” राजनाथ जी का ये जवाब सुनकर जॉर्ज मेरा चेहरा देखने लगे.
    इस सबके बावजूद जॉर्ज ने वो चिट्ठी लिखी. ऐसा सरल व्यक्ति मैंने नही देखा.

    जब दिल्ली आया तो जार्ज साहब के 3, कृष्ण मेनन मार्ग के बंगले में आना जाना होता था. वे रक्षा मंत्री बने, तो भी उसी में रहे. अजीब सी बात थी कि उस बंगले में कोई गेट नहीं होता था. यानि भारत का रक्षामंत्री बिना गेट के घर मे. मतलब गेट था ही नहीं. एक दिन उन्होने इस गेट का भी किस्सा बताया. इसके पीछे की वजह थे, कांग्रेस नेता एस बी चव्हाण जो उस वक्त देश के गृह मंत्री थे और जॉर्ज साहब के घर के ठीक सामने वाले बंगले में रहते थे.

    जब-जब चव्हाण साहब का काफिला सामने वाले गेट से निकलता, उनके सुरक्षाकर्मी जॉर्ज साहब के गेट पर आ जाते थे और उनका गेट बंद कर तब तक खड़े रहते थे, जब तक काफिला गुज़र नहीं जाता था. जॉर्ज साहब के लिए बड़ी मुश्किल थी. कहीं जाना हुआ, तो पता लगा गेट बंद है. जब होम मिनिस्टर निकलेंगे तो आप निकलेंगे. जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा, तो एक दिन उन्होंने खुद ही अपना गेट उख़ड़वा दिया. बाद में वे जब रक्षा मंत्री भी बन गए, तब भी उन्होंने वो गेट फिर से नहीं लगवाया. 13 दिसंबर को जब संसद पर आतंकी हमला हुआ, तो ये समझा गया कि जॉर्ज साहब की सुरक्षा ज़रूरी है और वाजपेयी जी के आग्रह पर वो फिर से गेट लगवाने को तैयार हुए.

    ALSO READ : हेलीकाप्टर और विमान की टक्कर, 64 यात्री थे सवार…

     

     

    जॉर्ज साहब के न रहने से ज़मीन से जुड़ी राजनीति के एक भरे पूरे अध्याय का पटाक्षेप हो गया. जॉर्ज साहब शोषित और वंचित तबके के हक़ में राजनीति की विशाल करवट का नाम थे. इस देश की राजनीति जब भी ऐसी कोई करवट लेगी, जॉर्ज बहुत याद आएंगे. उन्हें प्रणाम.
    और बापू को हे राम !

    Credit – hemant sharma Facebookwall