अखिलेश की कांग्रेस नेताओं के साथ मुलाकात से बढ़ी सियासी सरगर्मी
आज अखिलेश यादव और कांग्रेस नेताओं के बीच हुई मुलाकात ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दिया है। इस दौरान राकपा ने यूपी में होने वाले उपचुनावों में सपा को बिना किसी शर्त के समर्थन देने का ऐलान किया। साथ ही साथ पार्टी ने सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक दलों से अपील की है कि वे भाजपा-संघ के सांप्रदायिक गठजोड़ को हराने के लिए एकजुट हो जाएं। राकांपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमेश दीक्षित ने मंगलवार को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात भी की।
राजेंद्र चौधरी भी मौजूद थे
दोनों नेता लगभग आधे घंटे तक बंद कमरे में प्रदेश के सियासी हालात पर चर्चा करते रहे। इस दौरान सपा प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी भी दोनों नेताओं के साथ मौजूद रहे। राकापा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दीक्षित ने एक बयान जारी कर समर्थन देने की बात कही। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में सभी धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों की जिम्मेदारी बनती है कि वे भाजपा-संघ के गठजोड़ को परस्त करने में अपनी पूरी ताकत लगा दें।
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उन्होंने कांग्रेस पार्टी को भी सलाह दी और कहा कि कांग्रेस नेतृत्व को समझदारी से काम लेते हुए अपने दोनों उम्मीदवारों के नाम वापस ले लेने चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक दलों की एकता के आगे फासीवादी भाजपा हार जाए।उन्होंने कहा कि भाजपा को हराने के लिए सभी लोकतांत्रिक दलों के बीच एक व्यापक एकता बने, यही आज के वक्त की दरकार है। डॉ. दीक्षित ने कहा कि उन्होंने दोनों ही जिला इकाइयों को इस बाबत निर्देशित किया है और कहा है कि पार्टी कार्यकर्ता पूरे तन मन धन से सपा उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाएं, संयुक्त सभाएं करें, नुक्कड़ बैठक और पर्चे पोस्टर के माध्यम से सांप्रदायिक शक्तियों को हराने का मौका न गंवाएं।
भाजपा पर उठाए कई सवाल
उल्लेखनीय है कि सपा ने मंगलवार को कहा कि गोरखपुर उपचुनाव के मतदाता भाजपा द्वारा अपने ही वादों को नकार दिए जाने और जनहित की कोई योजना लागू न किए जाने से बुरी तरह आक्रोशित हैं। पार्टी का कहना था कि भाजपा के नेता लोगों को बहकाने के लिए जाति-धर्म की राजनीति करने लगे हैं, लेकिन लोग इससे ऊब गए हैं। सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी ने कहा, “अब तो आम नागरिक भी पूछने लगा है कि जनधन खाते में 15 लाख रुपये भेजने, नौजवानों को नौकरियां देने, किसानों की आमदनी दुगनी करने जैसे वादों का क्या हुआ? महिलाओं की इज्जत हर वक्त खतरे में क्यों रहती है?”
जनसत्ता
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