खेल मंत्रालय को मिला पहला ‘खिलाड़ी मंत्री’
खेलों में राजनीति और सुविधाओं की कमी होने के कारण कई खिलाड़ी वहां तक नहीं पहुंच पाते जहां तक पहुंचने के वो हकदार होते है। सरकार का रोल इसमें अहम होता है। खेल वैसे तो राज्य सरकारों का मुद्दा है, लेकिन केंद्र की भी इसमें बड़ी भूमिका रहती है।
देश को पहला ऐसा खेल मंत्री…
नरेंद्र मोदी की मौजूदा केंद्र सरकार ने सोमवार को कैबिनेट का विस्तार किया तो देश को पहला ऐसा खेल मंत्री मिला जो खिलाड़ी होने के साथ-साथ ओलिम्पक पदक विजेता रहा है।
समस्याओं से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी गई
राज्यवर्धन राठौर के कंधों पर यह जिम्मेदारी तो सौंप दी गई है, लेकिन खुद राठौर भी जानते हैं कि उनके सामने कितनी विशाल चुनौतियां थोक के भाव में इंतजार कर रही हैं। जो खिलाड़ी कुछ साल पहले तक सरकार से सवाल करता रहा हो और सविधाएं न होने की बात कहता रहा हो उसके जिम्मे ही अब इन सभी समस्याओं से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
read more : एटीएम से ‘200 रुपये’ का नोट ‘जेब’ में जाने में लगेगा वक्त
अरबों लोगों की उम्मीदों का पहाड़ उनके कंधों पर…
सचिन जब मैदान पर उतरते थे तब अरबों लोगों की उम्मीदों का पहाड़ उनके कंधों पर होता था। कुछ यही हाल राठौर का भी है। कारण साफ है। वो एक खिलाड़ी रहे हैं। वो जानते हैं कि पदक कैसे लाए जाते हैं और खिलाड़ी कैसे बनाए जाते हैं। ऐसे में उनसे उम्मीदें दूसरे खेल मंत्रियों की अपेक्षा ज्यादा हैं। उनसे उम्मीद की जाती है कि वो खेल और खिलाड़ियों की समस्याओं को दूसरों से बेहतर समझेंगे और उन्हें दूर करेंगे। साथ ही जमीनी स्तर पर जरूरी सुधार करेंगे।
कैसे इन चुनौतियों से निपटते हैं…
वो बखूबी जानते हैं कि कहां कमी है और क्या कमी और क्या किया जाना चाहिए इसलिए पूरा खेल जगत उन्हें टकटकी लगाए देखेगा कि वो कैसे इन चुनौतियों से निपटते हैं।
read more : …ताकि ‘गरीबी’ इन बच्चों के ‘भविष्य’ में रोड़ा न बनें
राठौर के कंधों पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी 2018 में होने वाले एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में देश के प्रदर्शन में सुधार है। इन दो बड़े टूनार्मेंट्स से पहले वो किस तरह देश के खिलाड़ियों की समस्याओं को दूर करते हैं और उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने के साथ-साथ खेल का महौल बना कर देते हैं ये उनके लिए चुनौती होगा।
सबसे बड़ी चुनौती टोक्यो में 2020 में होने वाले ओलम्पिक खेल
वैसे राठौर की सबसे बड़ी चुनौती टोक्यो में 2020 में होने वाले ओलम्पिक खेल होंगे, लेकिन उससे पहले 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में राठौर के पास तब तक यह मंत्रालय रहे या नहीं ये कहना मुश्किल है।
read more : जन्मदिन विशेष …जब दाउद के घर चाय पर गये थे ऋषि कपूर
लेकिन उनसे उम्मीद की जाएगी कि वह 2019 तक ओलम्पिक के लिए एक ऐसा रोडमैप बनाकर दें जिससे न सिर्फ खिलाड़ियों को फायदा हो बल्कि वो भविष्य में भी मिसाल बने। एक खिलाड़ी से मंत्री बने शख्स से इस तरह की उम्मीदें लाजमी है और उन्हें इन उम्मीदों को पूरा भी करना चाहिए।
देश में खेलों की दशा सुधरे तो मुमकिन नहीं…
अगर राठौर खेल मंत्री बनने के बाद इस देश को वो रणनीति या वो रोडमैप बनाकर नहीं दे पाए जिससे इस देश में खेलों की दशा सुधरे तो मुमकिन नहीं कि कोई और इस काम को कर पाएगा।
हकीकत की जमीं पर कुछ खास नजर नहीं आया
हालांकि 2019 चुनावों और उसके बाद पद पर बने रहने की अनिश्चित्ता को देखते हुए उनके पास समय ज्यादा नहीं है। लेकिन राठौर के साथ इस खेल जगत को मुनाफा ये है कि वो इस देश की खेल नीति और समस्याओं से वाकिफ है। ऐसे में उनका काम सही रणनीति बनाना और उन्हें जल्द से जल्द अमल में लाना है। राठौर से पहले विजय गोयल के पास यह मंत्रालय था। उन्होंने संवाददाता सम्मेलन तो बहुत किए और उनमें कई बार कई रणनीतियों के बारे में भी बताया लेकिन हकीकत की जमीं पर कुछ खास नजर नहीं आया।
read more : ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ का बम किया गया निष्क्रिय
हां गोयल ऐसे मंत्री जरूर थे जो खिलाड़ियों के लिए आमतौर पर उपलब्ध रहते थे और साथ ही देश के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों का वो स्वदेश लौटने पर सम्मान भी करते थे, लेकिन इससे ज्यादा गोयल के कार्यकाल में और कुछ खास देखने को नहीं मिला।
पदक दिलाने वाला यह निशानेबाज मंत्री
गोयल ने ओलम्पिक के लिए एक टास्क फोर्स का गठन भी किया था। ऐसे में गोयल के कार्यकाल के दौरान बनाई गई नीतियों की भी राठौर को अपनी पारखी नजरों से समीक्षा करनी होगी और कमी को दूर करते हुए काम करना होगा।राठौर से उम्मीदें तो बहुत हैं। अब इस देश के खेल जगत की आगे की कहानी उन्हीं के हाथों में है। एथेंस ओलम्पिक-2004 में भारत को पदक दिलाने वाला यह निशानेबाज मंत्री होते हुए सही निशाना लगा पाता है या नहीं ये वक्त ही बताएगा।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)