अंधविश्वासी पति ने गर्भवती पत्नी को पीटा, नहीं चाहिए थी बेटी

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अंधविश्वास में अंधे एक व्यक्ति ने शनिवार को अपनी पत्नी को इतना पीटा कि महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा बस मरते-मरते बचा। थेरगांव में पढ़े-लिखे परिवार के 28 साल के इस व्यक्ति को किसी ने यह बताया कि अगर कोई महिला पूर्णिमा की रात को गर्भधारण(pregnant) करती है तो उसे बेटी पैदा होती है। यह ‘जानकारी’ मिलने के बाद उस व्यक्ति ने अपनी गर्भवती(pregnant) पत्नी के पेट पर घूसे मारे। हालांकि, बाद में महिला को जब इलाज के लिए हॉस्पिटल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा पूरी तरह सुरक्षित है।

महिला जान बचाकर पहुंची पुलिस थाने

घायल महिला ने रविवार को वाकड़ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने मामले में महिला के पति, सास, ससुर और दो ननदों को हिरासत में ले लिया है। पुलिस ने कहा कि महिला के ससुराल वाले गर्भवती महिला को जबरदस्ती इस तरह की एक्सर्साइज़ करने को कहते थे जिनसे महिला का गर्भपात हो जाए। महिला अपने पति और ससुरालवालों के साथ थेरगांव स्थित कैलाश नगर में किराए के मकान में रहती है।

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शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ना

महिला जब गर्भवती हुई तो खुश होने की जगह पति और ससुरालवालों के साथ-साथ कुछ रिश्तेदारों ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। शनिवार को जब पति ने अपनी बहनों के साथ मिलकर महिला के पेट पर लात और घूसे मारे तो महिला किसी तरह बचकर पुलिस स्टेशन पहुंची और शिकायत दर्ज कराई। वहां से पुलिसवाले महिला को हॉस्पिटल ले गए।

मामले में आईपीसी की धारा 315 (शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात् उसे मारने के उद्देश्य से किए गए कार्य पर) के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। पीड़िता की शादी नवंबर 2017 में हुई थी। पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसके गर्भवती होने की बात जानकर पहले तो घरवाले खुश हुए लेकिन जब उन्हें पता लगा कि गर्भधारण पूर्णिमा को हुआ था तो वह परेशान करने लगे, क्योंकि वे लड़का चाहते थे।

टेलीविजन कार्यक्रम से भी गलतफहमी

पुलिस ने बताया कि महिला का पति एक प्राइवेट कंपनी में बतौर मैनेजर काम करता है। महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के सदस्य हमीद दाभोलकर ने कहा कि कई लोग अंधविश्वासी होते हैं, जिससे उनके जीवन पर काफी बुरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘पूर्णिमा या अमावस्या से हमारे जीवन पर कोई प्रतिकूल या अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। यह दुख की बात है कि टेलीविजन कार्यक्रम समाज में ऐसी गलतफहमियों को बढ़ावा दे रहे हैं। कई परिवार लड़की नहीं चाहते। हमारा समाज पितृसत्तात्मक है और परिवार बेटियों के बजाय बेटा चाहते हैं। लोगों को ऐसे अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।’

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