इस बार 15 जनवरी को मनाई जाएगी ‘खिचड़ी’, जानिए इसका महत्व

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सामान्यतया हिंदू त्यौहारों की गणना चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा की जाती है लेकिन मकर संक्रांति पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।

इस साल सूर्य 14 जनवरी की शाम को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। चूंकि संक्रांति का पुण्य स्नान सूर्योदय पर किया जाता है, इसलिए इस बार संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी।

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण-

भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। अतः यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।

एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।

मकर संक्रांति का महत्व-

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।

शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति को सभी जातकों को चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष सूर्योदय से पूर्व अवश्य ही अपनी शय्या का त्याग कर के स्नान अवश्य ही करना चाहिए। देवी पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता है। वह रोगी और निर्धन बना रहता है।

मकर सक्रांति के दिन स्नान के बाद भगवान सूर्यदेव की अवश्य ही पूजा करनी चाहिए। ज्योतिष के अनुसार यदि इस दिन प्रभु सूर्यदेव को प्रसन्न करने पर विशेष फल मिलता है और भगवान सूर्यदेव के उपाय करने से किस्मत चमक जाती है।

इस दिन प्रातः उगते हुए सूर्य को तांबे के लोटे के जल में कुंकुम, अक्षत, तिल तथा लाल रंग के फूल डालकर अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय ॐ घृणिं सूर्य: आदित्य मंत्र का जप करते रहें। इस दिन कंबल, गर्म वस्त्र, घी, दाल-चावल की कच्ची खिचड़ी और तिल आदि का दान विशेष रूप से फलदायी माना गया है।

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