नहीं रहे महामना के पौत्र एवं बीएचयू के चांसलर जस्टिस गिरिधर मालवीय , कुछ दिनों से थे बीमार
वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चांसलर जस्टिस (रिटायर्ड) गिरिधर मालवीय का सोमवार की सुबह प्रयागराज स्थित उनके निवास स्थान पर निधन हो गया. वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. वह भारतरत्न पंडित महामना मदनमोहन मालवीय के पौत्र थे. 94 वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्रयागराज में अंतिम सांस ली. उनके निधन की सूचना के बाद बीएचयू के कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन प्रयागराज के लिए रवाना हो गए हैं.
पीएम मोदी के रह चुके हैं प्रस्तावक
बीएचयू के दीक्षांत समारोह में अपने कमजोर स्वास्थ्य के कारण वह ह्वीलचेयर पर आए थे. इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक भी रह चुके हैं. न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश तथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति थे. गिरिधर मालवीय का जन्म 14 नवम्बर, 1936 को वाराणसी में हुआ था. गिरिधर मालवीय महामना पं. मदनमोहन मालवीय के पौत्र तथा पं. गोविन्द मालवीय के एकलौते सुपुत्र थे. गिरिधर मालवीय की प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी के बेसेण्ट थियोसोफिकल स्कूल में हुई.
उनके पिता ने घर में पितामह व ताऊ आदि अनेक लोगों के सफल अधिवक्ता होने के कारण उन्हें विधि की शिक्षा लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वक़ालत करने की प्रेरणा दी. सन् 1957 में गिरिधर ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एकसाथ एलएल.बी. तथा एम.ए. राजनीतिशास्त्र में प्रवेश लिया. सन् 1958 में उन्होंने एलएल. बी. की परीक्षा पास की तथा 1959 में राजनीतिशास्त्र की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए. सन् 1960 में वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एडवोकेट दर्ज़ किए गये.
वकालत की ली थी शिक्षा
प्रारम्भ में अपने पिता के अस्वस्थ रहने के कारण गिरिधर ने एक वर्ष दिल्ली में सरदार ज्ञानसिंह वोहरा के साथ तीस हज़ारी कोर्ट में और 1961 में पिता के निधन के पश्चात् प्रयाग आकर 1965 तक प्रयाग की ज़िला कचहरी में पं. विश्वनाथ पाण्डेय तथा पं. सत्यनारायण मिश्र के साथ रहकर वक़ालत की. 1965 के ग्रीष्मावकाश के पश्चात् गिरिधर उच्च न्यायालय आए तथा पं. नारायणदत्त ओझा, जो बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने, के साथ उच्च न्यायालय में वक़ालत शुरू की.
1988 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीन बने
दिनांक 17 नवम्बर, 1959 को जयपुर में बालकृष्ण शर्मा की पुत्री विष्णुकान्ता कौशिक के साथ गिरिधर मालवीय का विवाह हुआ. उच्च न्यायालय में कुछ ही वर्ष वक़ालत करने के बाद उन्हें 1971 में सरकार की ओर से फ़ौज़दारी के मुक़दमों में बहस करने के लिए उच्च न्यायालय में वक़ील बनाया गया. जिसमें अपनी योग्यता तथा ईमानदारी से क्रमश: वरीयता प्राप्त करते-करते वह हर दल की सरकार में सरकारी वक़ील बने रहे.
अच्छी छवि तथा अपने दीवानी के मुक़दमों तथा शासन की ओर से फ़ौज़दारी के मुक़दमों में अपनी योग्यता स्थापित करने के कारण उन्हें 14 मार्च, 1988 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहाँ से वह 1998 में सेवानिवृत्त हुए. तत्पश्चात् तीन वर्षों तक वह उत्तरप्रदेश सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष रहे. इसके पश्चात् वह आगरा जाँच आयोग के अध्यक्ष रहे.
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कई पदों को किया सुशोभित
उच्च न्यायालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद से ही गिरिधर ने समाज के विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामाजिक कार्यक्रमों में समय देना प्रारम्भ किया. वह टेरी उच्च शिक्षा की गवर्निंग काउन्सिल में चार वर्ष तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से नामित सदस्य तथा कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपति के चयन के लिए नामित समितियों के अध्यक्ष भी रहे. सन् 1978 में स्थापित महामना मालवीय मिशन के दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये.
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गिरिधर मालवीय वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के वाराणसी में प्रस्तावक रहे थे. सम्प्रति गिरिधर मालवीय अखिल भारतीय सेवा समिति, सेवा समिति विद्या मन्दिर कॉलेज़, क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज़, भवन्स मेहता महाविद्यालय (भरवारी), भवन्स मेहता विद्याश्रम (भरवारी), भारती भवन पुस्तकालय (प्रयागराज) के अध्यक्ष तथा वर्ष 2018 से काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के पद पर कार्यरत थे.