श्रीयंत्र आकार के रथ पर विराजमान होंगे भगवान जगन्नाथ, वाराणसी की गलियों में करेंगे भ्रमण
वाराणसी: काशी में भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन देने के लिए छह जुलाई को काशी की गलियों में निकलेंगे. सात जुलाई से तीन दिवसीय रथयात्रा मेंल की शुरूआत होगी. ऐसी मान्यता है कि श्रीयंत्राकार रथ पर जब भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं तो काशीवासियों के साथ देवराज इंद्र भी उनकी अगवानी करते हैं. 222 सालों से निकल रही रथयात्रा को काशी का पहला लक्खा मेला भी कहा जाता है. रथयात्रा मेले के साथ ही काशी में मेलों की शुरुआत होती है जो अनवरत देव दीपावली तक चलती रहती है.
21 फीट चौड़ा और 18 फीट ऊंचा है रथ
भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के विग्रह को सात जुलाई की भोर में रथ में विराजमान कराया जाएगा. जिस स्थान पर सचल रथ स्वरूप मंदिर खड़ा किया जाता है वह पूरा मार्ग तीन दिनों के लिए मंदिर हो जाता है. भगवान का रथ शीशम की लकड़ी से श्रीयंत्र के आकार में बना हुआ है. रथ की चौड़ाई 21 फीट और ऊंचाई 18 फीट है. रथ के प्रथम तल पर चारों तरफ पहियों के ऊपर 14 खंभे और द्वितीय तल पर अष्टकोणीय गर्भगृह में छह खंभे हैं. सामने लाल रंग के दो आधे खंभे हैं जो बाहर से तीन तरफ से अच्छादित हैं. रथ की छतरी अष्टकोणीय कमानीदार है.
इसमें आठ कमानियां लगी हुई हैं. इसका रंग अंदर से पीला और बाहर से लाल है. रथ की छतरी के अग्र भाग में ऊपर बाएं नीले रंग के कपड़े का छाता और नीले रंग के कपड़े का शंखाकार झंडा और उसी प्रकार शंखाकार झंडे सफेद रंग के कपड़े का छाता और सफेद रंग का शंखाकार झंडा लगाया जाता है. रथ का गुंबद लाल रंग का और अष्टकोणीय है। इसमें सामने दाहिने और बायीं ओर मगरमच्छ लगे हुए हैं.
शिखर पर लगता है चांदी का ध्वज
भगवान के रथ के शिखर पर चांदी का ध्वज और चक्र लगाने की व्यवस्था है. जब भगवान रथ पर सवार होते हैं तब चांदी के डंडे में चांदी का ध्वज लगाया जाता है. इसमें दोनों ओर हनुमान जी विराजमान हैं. त्रिकोणीय ध्वज की ऊंचाई पांच फीट और लंबाई डंडे से नोक तक तीन फीट है.
अष्टकोणीय गर्भ गृह के मुख्य द्वार के ऊपर सामने रजत पत्र पर केंद्र में श्रीगणेश जी एवं ऋद्धि-सिद्धि विराजमान हैं. नीचे दाहिने सूर्यदेव और बाएं चंद्रदेव विराजमान हैं. दाहिने ओर बाएं द्वार के ऊपर श्रीकृष्णजी नृत्य की मुद्रा में विराजमान तथा उसके नीचे दायीं ओर मेरू यंत्र और बायीं ओर श्रीविष्णुदेव यंत्र है.
यंत्राकार रथ में लोहे के कुल 14 पहिये लगे हैं. हर पहिये में 12 तीलियां हैं. जिसमें आगे के दो पहियों में रथ को घुमाने के लिए 2006 में स्टीयरिंग की व्यवस्था की गई है. इसका संचालन रथ के पीछे से किया जाता है. रथ के अग्रभाग के केंद्र में सारथी विराजमान होते हैं जो कांस्य धातु के हैं. इस पर चांदी के पानी की पॉलिश है. रथ के आगे दो कांस्य के अश्व लगाए जाते हैं. इनके ऊपर चांदी के पानी की पॉलिश होती है.
1802 में हुआ था रथ का निर्माण
जगन्नाथ मंदिर की स्थापना पंडित बेनीराम और पंडित विश्वंभर ने सन 1790 में की थी. इसके बाद सन 1802 में रथ का निर्माण कराया गया और काशी के पहले लक्खा मेले रथयात्रा की शुरुआत हुई.
इसके बाद श्रीराव प्रहलाद दास शापुरी ने सन 1965 में रथ के कलेवर को बदल दिया. इसके निर्माण में पुराने रथ के काष्ठ का प्रयोग भी किया गया था. उनके निधन के बाद उनके पुत्र दीपक शापुरी और आलोक शापुरी रथयात्रा महोत्सव का संचालन कर रहे हैं.
राजातालाब में काशीराज परिवार खींचता है रथ
उधर, वाराणसी के राजातालाब में लगने वाले रथयात्रा मेले का रथ काशीराज परिवार के सदस्य ही खींचते हैं. सात और आठ जुलाई को लगने वाले रथयात्रा मेले की तैयारियां शुरू हो गई हैं. रथयात्रा की शुरुआत राजातालाब स्थित महाराज के पुराने किले में स्थित महाराज बलवंत सिंह महाविद्यालय परिसर से होगी.
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सात जुलाई से शुरू होने वाले रथयात्रा मेले में काशीराज परिवार के अनंत नारायण सिंह रथ खीचेंगे और इसके बाद श्रद्धालु हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए रथ को खींचकर भैरव तालाब तक ले जाते हैं. राजातालाब के प्राचीन किले में काशीराज परिवार के अनंत नारायण का दरबार लगाने की तैयारी की जा रही है. दरबार का रंग रोगन कर दिया गया है और क्षेत्र के सम्मानित लोगों को निमंत्रण पत्र भेजा जा चुका है.