Lal Bahadur Shastri Jayanti: जानें कैसे लाल बहादुर को मिला ‘शास्त्री’ टाइटल…
हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन भारत के एक महान और पूर्व प्रधानमंत्री की भी जयंती मनाई जाती है . देश में एक उत्कृष नेता के रूप में जाने जाने वाले नेता लाल बहादुर का जन्मदिवस भी गांधी जयंती के दिन मनाया जाता है .
जवाहरलाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने. उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व और उनके प्रतिष्ठित नारे जय जवान- जय किसान (सैनिक की जय- किसान की जय) के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है . वह भष्ट्राचार के खिलाफ लिए जाने वाले फैसलों और अपने विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते थे . उनकी सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति जगजाहिर है .
मुगलसराय में हुआ था जन्म
बता दें कि लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के (वाराणसी के समीप) मुगलसराय स्थित एक छोटे से रेलवे कस्बे में हुआ था. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे, जिनका निधन तब हो गया जब शास्त्री सिर्फ डेढ़ साल के थे. चलिये जानें उनके जीवन के बारें में विस्तार से.
कैसे मिला शास्त्री टाइटल
कहा जाता है कि लाल बहादुर ने अपनी शिक्षा काशी विधापीठ से की जिसके बाद उन्हें यहीं से “शास्त्री” की उपाधि मिली . काशी विद्यापीठ उन राष्ट्रीय संस्थानों में से एक था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह के रूप में स्थापित किया गया था. शास्त्री ने यहां से अपनी शिक्षा प्राप्त की और उन्हें “शास्त्री” की उपाधि दी गई, जो कि संस्कृत में विद्वान या शिक्षक के लिए प्रयोग की जाती है.
हालांकि यह उपाधि उनके नाम के साथ जुड़ी, लेकिन धीरे-धीरे यह उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन गई और लोग उन्हें इसी नाम से पहचानने लगे.
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एक टाइम भोजन करने की अपील
कहा जाता है कि जब साल 1965 में जब पाकिस्तान से जंग छिड़ गई तो देश में खाद्य संकट पैदा हो गया. इस दौरान उन्होंने पत्नी से कहा कि वह सिर्फ एक टाइम भोजन बनाएं. उन्होंने परिवार के सदस्यों से सिर्फ एक टाइम खाना खाने को कहा और बच्चों को दूध और फल देने को कहा.
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अपने बेटे का प्रमोशन रोका
लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने अपने ही बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया था. दरअसल, उन्हें जानकारी मिली की उनके बेटे का नौकरी में अनुचित तरीके से प्रमोशन दिया गया है. इससे वह नाराज हो गए और तुरंत पदोन्नति वापस लेने के लिए आदेश जारी कर दिया. बताया जाता है कि वह बेटे का प्रमोशन करने वाले अधिकारी से काफी नाराज हुए थे. शास्त्री जी का यह फैसला और भी नेताओं के लिए प्रेरणास्रोत है.