डीजीपी साहब, सिपाहियों की छुट्टी का वादा पूरा कीजिए
राजधानी लखनऊ में एएसपी राजेश साहनी की आत्महत्या के बाद एचसीपी रामसरन की खुदकुशी इस बात की तस्दीक दे रही हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस के जवान छुट्टी न मिलने की वजह से मानसिक तनाव और चिड़चिड़ेपन का शिकार हो रहे हैं। विभाग ने साप्ताहिक अवकाश का पायलट प्रोजेक्ट तो शुरु किया, लेकिन प्रोजेक्ट धरा का धरा रह गया और पायलट फरार हो गया।
क्या हुआ तेरा वादा… वो इरादा
साल 2013 में तत्कालीन डीआईजी नवनीत सिकेरा ने पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिलाने के लिए पहल की थी। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर थाने के पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देकर शुरुआत की गई। इसका नतीजा भी सफल और सकारात्मक रहा, लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी इस पहल को अमली जामा पहनाने में नाकाम रहे।
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आपको बता दें कि जब इस योजना की शुरुआत की गई थी तब छुट्टी लेने वाले पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया जाता था। जांच में पुलिसकर्मियों का ब्लड प्रेशर और एक्टिव मशीन से उनके नींद, थकान और तनाव के बारे में जानकारी ली जाती थी। रिसर्च में अवकाश देने की योजना सार्थ साबित हुई थी और पुलिसकर्मी भी मानसिक व शारीरिक तौर पर स्वस्थ पाए गए थे। यही नहीं छुट्टी हासिल करने वाले पुलिसकर्मियों ने प्रतिक्रिया में इस पहल को लाभकारी बताया था।
अवकाश नहीं मिलना तनाव की खास वजह
बीते दिनों एएसपी साहनी के मामले में भी इस बात का जिक्र किया गया। वहीं, एचसीपी रामरतन के घरवालों ने भी छुट्टी नहीं मिलने का आरोप लगाए हुए पुलिस विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किया है। जानकारी के मुताबिक, यूपी 100 में तैनात पुलिसकर्मी 12 घंटे तक ड्यूटी कर रहे हैं। ऐसे में लगातार 12 घंटे ड्यूटी करने की वजह से उनपर मानसिक दबाव ज्यादा रहता है।
मेरठ में तैनात दारोगा अजीत सिंह ने हाल ही में तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी को छुट्टी नहीं मिलने के कारण इस्तीफा भेजा था। इस बात की विभाग में खूब चर्चाएं भी हुईं। वहीं, राजधानी में तैनात सिपाही धर्मेंद्र ने भी छुट्टी नहीं मिलने पर पत्नी से तलाक होने की बात लिखी थी।