प्रकृति प्रेम का संदेश है ‘कोलाबोऊ’ पूजन

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त्योहार सिर्फ उत्सव मनाने का साधन मात्र नहीं बल्कि इनके पीछे हमारे मनीषियों की वह सोच है जो समाज को कुछ न कुछ विशिष्ट संदेश भी देती हैं। शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक शक्तिमयी, करुणामयी मां की आराधना की जाती है।

मां का एक स्वरूप प्रकृति का भी है जो उनकी पूजा परंपरा में दिखायी देता है। बंगीय परंपरा के पूजा पंडालों में मां का आगमन षष्ठीप तिथि से होता है। इसकी अगली तिथि सप्तमी को पूजा परंपरा के निर्वहन में होने वाले नव पत्रिका प्रवेश में प्रकृति प्रेम का महान संदेश पुष्ट होता है।

मां को कोलाबोऊ का रूप दिया जाता है। जिनमें नौ अलग-अलग वनस्पतियों (केला, अरवी, हल्दी, जयंती, बिल्व, अनार, अशोक, सूरन व धान की बाली) के नये पत्तों की पूजा होती है। ये सभी वनस्पतियां इन्हीं दिनों तैयार होती हैं। नौ वनस्पीतियों के ये पत्ते देवी के नौ विविध स्वरूपों के प्रतीक हैं। मां को प्रकृति का प्रतिरूप मान कर केले के छोटे तने को बहू की तरह सजाया जाता है और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ ‘कोलाबोऊ’ की पूजा की जाती है।

मां ने स्वीकार कर लिया है आमंत्रण-

मां नींद में थीं। भक्तों ने उन्हें जगाया (बोधन) और पूजा पंडालों में पधारने का आग्रह (आमंत्रण) किया। मां तो करुणामयी हैं। पुत्रों के आग्रह को ठुकरा न सकीं और आमंत्रण स्वीकार किया। भक्तों को तो मुंह मांगी मुराद मिल गयी। मां आयेंगी भगवती आयेंगी देवी दुर्गा आयेंगी। उल्लास और उमंग से चेहरे खिल उठे।

भक्तों ने बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ नवरात्र की महाषष्ठी तिथि शुक्रवार को मां प्रतिमा को पंडालों में प्रवेश कराया। मां का आगमन हो चुका है। अब उनकी कृपा सब पर बरसेगी। सभी को मनोवांछित आशीर्वाद प्राप्त होगा। शनिवार को महासप्तमी तिथि के उजाले के साथ ही नव पत्रिका प्रवेश का पारंपरिक अनुष्ठान होगा। इसी के साथ जीवंत हो उठेंगी मृणमयी और इसी के साथ तीन दिवसीय शारदोत्सव की शुरुआत हो जायेगी।

पंडालों में बिखरी रौनक-

बंगाल के बाद बनारस की दुर्गा पूजा ही अपने आप में खास होती है। यही कारण है कि बंगाल से बड़ी संख्या में लोग बनारस की दुर्गा पूजा देखने के लिए आते हैं। तीन दिनों तक बनारस का एक अलग ही रंग देखने को मिलेगा।

पूजा पंडालों से उठ रहे धूप लोहबान की गमक और शक्ति आराधना के मंत्रों, ढाक की थाप, शंख और घंटे से निकल रहे मिश्रित नादस्वर की गूंज पूरे वातावरण को एक नयी उर्जा प्रदान करेंगे।

इधर मां के आते ही पूजा पंडालों में रौनक बढ़ गयी। परंपरागत पूजा पंडालों में भक्तों का रेला शुरू हो गया। हर कोई मां से मिलने को आतुर था। अब तो मां सामने ही थी। भक्ति और समर्पण का मिश्रित भाव हर किसी के चेहरे पर आम।

देवी पंडालों की व्यवस्था में लगे लोगों के चेहरे पर एक खास चमक। थकान का कहीं कोई नाम नहीं। शनिवार से इन पंडालों में चहल पहल और भी बढ़ जायेगी। हालांकि बरसात ने पूजा पंडालों को अंतिम रूप देने के कार्य में कारीगरों के हाथों को रोक दिया था। पर मां की शक्ति उन्हें उनके काम को पूरा करने उर्जा प्रदान कर रही है। कल यानि शनिवार पूजा पंडालों की रौनक भक्तों को खींच लायेगी।

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