20 या 21 अक्टूबर जानें कब है करवा चौथ ?

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हमारे हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाएं सदियों से व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है, इन उपवासों को करने से वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहती है. इसके साथ ही पति – पत्नी के रिश्तों में मजबूती आती है. करवा चौथ के व्रत को सभी उपवासों से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, इस दिन महिलाएं चांद निकलने पर निर्जला व्रत रखती हैं, जिसका पारण पति की लंबी उम्र, तरक्की और अच्छे स्वास्थ के लिए किया जाता है.

वही पंचांग के अनुसार, करवा चौथ पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. वही इस साल 20 अक्तूबर 2024 को करवा चौथ रखा जाएगा. इस व्रत की महत्ता इस दिन व्यतीपात योग और कृत्तिका नक्षत्र से बढ़ी है. ऐसे में चांद की पूजा करना और लाभदायक होगा, जिससे व्रत के संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है. आइए जानते है इस व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि…

करवा चौथ की तिथि

पंचांग के अनुसार, 19 अक्तूबर 2024 को कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को शाम 06 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और 20 अक्तूबर को दोपहर 03 बजकर 47 मिनट पर इस दिन का समापन होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 20 अक्टूबर को करवा चौथ का त्यौहार मनाया जाएगा.

चंद्रमा निकलने का समय

पंचांग के अनुसार, करवा चौथ पर पूजा का शुभ मुहूर्त 20 अक्तूबर शाम 5 बजकर 46 मिनट से शुरू होगा, ये समय शाम 7 बजे 2 मिनट तक रहेगा. इस समय शाम 7 बजकर 44 मिनट पर चांद निकलता है.

करवा चौथ का क्या है महत्व ?

करवा चौथ की महत्व को लेकर मान्यता है कि, भगवान भोलेनाथ के लिए यह व्रत पहली बार देवी पार्वती ने किया था. यह भी कहा जाता है कि, द्रौपदी ने पांडवों को मुसीबत से बचाने के लिए करवा चौथ का व्रत भी रखा था. विवाह के 16 या 17 साल तक करवा चौथ का व्रत करना अनिवार्य है, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की अच्छी सेहत और लंबी आयु की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं. इसके अलावा, कुंवारी कन्याएं करवा चौथ का व्रत भी रखती हैं ताकि उनका वर उचित हो सके.

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पूजन विधि और सामग्री

इस व्रत के दिन स्नान करने के बाद चौथ माता की पूजा करने का संकल्प लेते हैं, फिर अखंड सौभाग्य का व्रत रखा जाता है. पूजा में 16 श्रृंगार करते हैं. फिर पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेशजी की पूजा करते हैं. उन्हें पूजा करते समय गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत, रोली, फूल, पंचामृत और अन्य सामग्री दी जाती हैं. फल और हलवा-पूरी दोनों को देते हैं, सूर्योदय पर अर्घ्य देते हैं और पति के हाथों जल लेकर व्रत का पारण करते हैं.

 

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