हिन्दू धर्म में कालाष्टमी का बहुत महत्व है, जो काल भैरव भगवान शिव का उग्ररूप की पूजा के लिए समर्पित होती है. इस दिन काल भैरव की पूजा करने से कई लाभ मिलते हैं, जैसे ग्रह दोषों से मुक्ति, शत्रुओं का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति आदि. मान्यता है कि, काल भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा की जाए, तो वे लोगों की इच्छाओं को पूरा करते हैं और उनके बिगड़े काम भी जल्द ही दूर हो जाते है. इससे घर में सुख-शांति और सभी परेशानियां दूर होती हैं. ऐसे में आइए जानते है कि, इस साल कालाष्टमी का कब पड़ने वाली है, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि…
कालाष्टमी तिथि
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और 25 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी. कालाष्टमी पर भैरव देव की पूजा निशा काल में की जाती है. यही कारण है कि 24 अक्टूबर को कार्तिक मास की कालाष्टमी मनाई जाएगी. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि, गुरु पुष्य और अमृत सिद्धि योग बनाया जा रहा है. मान्यता है कि इन तीनों मुहूर्तों में पूजा करने से लोगों को हर तरह का शुभफल मिलेगा.
पूजन सामग्री
कालभैरव की पूजा में इन चीजों को अनिवार्य रूप से शामिल करें: धूप, दीप, फूल (काले या नीले), अक्षत, रोली, चंदन, नैवेद्य (भोग), जल, कपूर और मूर्ति.
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पूजन विधि
कालाष्टमी के दिन सुबह पहले स्नान करके साफ कपड़े धारण करें, फिर पूजन स्थल को गंगाजल से साफ करें. एक चौकी पर काल भैरव की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें और उनके आगे धूप, दीपक जलाकर फूल, अक्षत, रोली और चंदन चढाएं. इसके बाद में पूजा के समय नैवेद्य अर्पित करें और मंत्रों का जाप करें. इसके साथ ही पूजा के दौरान काल भैरव चालीसा या स्तोत्र का पाठ जरूर से करें.
महत्व
मान्यता है कि, कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और ग्रह दोष से छुटकारा मिलता है. इसके अलावा धन लाभ और रोगों से छुटकारा मिलता है. इससे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की क्षमता मिलती है. काल भैरव की कृपा से शत्रुओं का नाश होता है, जीवन में सफलता मिलती है और कुंडली में मौजूद ग्रहों के दोष दूर होते हैं.