दीवाली के पांच दिनी महोत्सव में धनतेरस के बाद दूसरे नंबर पर नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है, जिसे रूप चतुर्दशी, नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि विधान से श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है। वही इस दिन नरक की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय समाप्त करने के लिए शाम के समय यमराज की पूजा करने की भी मान्यता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां काली की पूजा अर्चना करने से शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है। इस साल नरक चतुर्दशी का पर्व 03 नवंबर को मानाया जाएगा। आइए जानते हैं इस दिन मनाए जाने वाले पर्वों और पूजन के विधान के बारे में।।।
हनुमान जंयती:
रामायण की कथा के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास चतुर्दशी पर स्वाति नक्षत्र में हुआ था। इस मान्यता के अनुसार इस दिन हनुमान जंयती मनाई जाती है। हालांकि कुछ और प्रमाणों के आधार पर हनुमान जयंति चैत्र पूर्णिमा के दिन भी माना जाता है।
यम दीपक:
इस दिन नरक की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय समाप्त करने के लिए शाम के समय यमराज की पूजा करने की भी मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि आटे का चौमुखी दीपक जलाने से यमराज अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करते हैं।
नरक चतुर्दशी:
नरक चौदस का पावन पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चौदस को मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध भगवान कृष्ण ने किया था। उसके नाम पर ही इस दिन को नरकचौदस के नाम से जाना जाता है। वही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छोटी दीपावली के दिन घर के नरक यानी गंदगी को साफ किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहां सुंदर और स्वच्छ प्रवास होता है, वहां लक्ष्मी जी अपने कुल के साथ आगमन करती हैं।
रूप चौदस:
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि विधान से श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
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