जानें, कौन हैं कासगंज पर विवादित टिप्पणी करने वाले आर. विक्रम सिंह ?
चंदन गुप्ता को गोली मारने वाले मुख्य अभियुक्त सलीम को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है लेकिन शहर में जो सांप्रदायिक तनाव बढ़ा, फ़िलहाल वो कम होने का नाम नहीं ले रहा है। कासगंज के ज़िलाधिकारी आरपी सिंह और दूसरे अन्य अधिकारी शांतिप्रिय शहर में सांप्रदायिक संघर्ष होने पर हैरान हैं और इसकी तह तक भले ही न पहुंच पा रहे हों, लेकिन पास के ही एक अन्य संवेदनशील ज़िला बरेली के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह ने जो चिंता ज़ाहिर की है, वो ऐसे संघर्षों की वजह समझने में मदद कर सकती है।
कासगंज दंगे को लेकर फेसबुक पर की थी विवादित टिप्पणी
राघवेंद्र विक्रम सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर टिप्पणी की थी, “अजब रिवाज़ बन गया है। मुस्लिम मोहल्लों में ज़बरदस्ती जुलूस ले जाओ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाओ। क्यों भाई वे पाकिस्तानी हैं क्या? यही यहां बरेली के खेलम में हुआ था। फिर पथराव हुआ, मुकदमे लिखे गए।”
आठ साल तक सेना में दे चुके हैं अपनी सेवाएं
उनकी इस टिप्पणी से राज्य सरकार ने भी नाख़ुशी दिखाई है और सोशल मीडिया पर भी उन्हें आड़े हाथों लिया जा रहा है लेकिन इस बेबाकी के लिए राघवेंद्र विक्रम सिंह की तारीफ़ भी हो रही है। बहरहाल, ये टिप्पणी न सिर्फ़ उनके विचारों की अभिव्यक्ति है बल्कि इसमें उनका प्रशासनिक अनुभव और चिंता भी छिपी हुई है।
1986 बैच के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह प्रशासनिक सेवा में आने से पहले आठ साल तक भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इस बात की जानकारी ख़ुद राघवेंद्र सिंह ने अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल में दी है। उन्होंने लिखा है कि सेना में अफसर के तौर पर वो जम्मू-कश्मीर, रांची और हैदराबाद में तैनात रहे हैं।
यूपी के बहराइच जिले के रहने वाले हैं राघवेंद्र विक्रम सिंह
बहराइच ज़िले के हरिहरपुर गांव के मूल निवासी राघवेंद्र सिंह ने पढ़ाई से लेकर नौकरी तक काफी संघर्ष किया है। उनके छोटे भाई शैलेंद्र विक्रम सिंह बताते हैं, “वो अक़्सर ही तमाम मुद्दों पर लिखते रहते हैं। अख़बारों में उनके तमाम लेख छपते रहते हैं। पूरी सेवा के दौरान वो बेहद ईमानदार रहे। यही वजह है कि आईएएस कैडर में आने के बावजूद वो सिर्फ़ दो बार डीएम बन पाए हैं। अच्छी पोस्टिंग पाने के लिए कभी किसी के पीछे नहीं दौड़ते।”
गांव में प्राइमरी शिक्षा लेने के बाद गोरखपुर से की एमए की पढ़ाई
शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके भाई ने प्राइमरी शिक्षा गांव से लेने के बाद एमए तक की पढ़ाई गोरखपुर से की। उनके पिता गोरखपुर की फ़र्टिलाइज़र फ़ैक्ट्री में काम करते थे इसलिए वो उनके साथ गोरखपुर चले गए। एमए करने के बाद सेना की शॉर्ट सर्विस कमीशन में चयन हुआ और उसके बाद उन्होंने पीसीएस की परीक्षा पास की। बरेली से पहले राघवेंद्र श्रावस्ती के डीएम रह चुके हैं।
लेखक भी हैं राघवेंद्र विक्रम सिंह
राघवेंद्र सिंह तमाम विषयों पर अख़बारों में लिखने के अलावा फ़ेसबुक पर भी अक्सर टिप्पणी करते रहते हैं। कासगंज हिंसा से संबंधित उनकी जिस पोस्ट पर हंगामा मचा हुआ है, उसे उन्होंने भले ही हटा दिया लेकिन उससे पहले भी उनकी कई टिप्पणियां चर्चा बटोर चुकी हैं।
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नेताओं, जजों पर भी तंज़
केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह के डार्विन सिद्धांत पर की गई टिप्पणी पर राघवेंद्र सिंह ने भी एक दिलचस्प टिप्पणी की थी, “हमारे गांव के पंधारीलाल पूंछते थे – अगर आदमी बन्दर से बना है तो ये बन्दर आदमी क्यों नहीं हो जाते? आज वे खुश होंगे उन्हें एक कैबिनेट मंत्री का समर्थन जो मिल गया है और पंधारीलाल भी तो कैबिनेट मंत्री हो सकते थे … !”
यही नहीं, गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस नेता मणिशंकर के ‘नीच’ शब्द की चर्चा राजनीतिक जगत में तैर रही थी, उस समय भी राघवेंद्र सिंह ने फ़ेसबुक पर लिखा था, “जब कोई ‘चायवाला’ कोई ‘नीच’ राष्ट्र नियंता बनेगा तो भयभीत हो रहे स्थापित स्वार्थी प्रभुत्व वर्गों में हादसे तो होंगे ही ..! (यह पोस्ट पीएम के विरोधियों को उनकी औकात बताने के लिए है न कि पीएम के असम्मान के लिए। यह मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ )”
कई नेताओं पर कर चुके हैं टिप्पणी
राघवेंद्र सिंह ने इससे पहले भी नेताओं, जजों सहित तमाम मुद्दों पर तंज़ कसते हुए टिप्पणियां की हैं। उनकी हालिया टिप्पणी पर उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी नाराज़गी ज़ाहिर की थी।
पिछले दो दिनों में राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर आईएएस अधिकारियों का तबादला किया है। आशंका जताई जा रही थी कि फ़ेसबुक पर कासगंज हिंसा को लेकर टिप्पणी करने वाले बरेली के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह भी इसमें शामिल हो सकते हैं, लेकिन शायद अभी सरकार ने उनके तबादले की ज़रूरत नहीं समझी है। वैसे राघवेंद्र सिंह इसी साल तीस अप्रैल को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
(साभार- बीबीसी हिंदी)