काशी की तिरंगी बर्फी ने अंग्रेजी हुकूमत की हिला दी थी जड़े
गुप्त संदेश भेजने के लिए होता था इस्तेमाल
वाराणसी। देशभर में आजादी का जश्न मनाया जा रहा है। आजादी को पाने में काशी की भी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। काशी ने मिठाइयों से भी क्रांति का संदेश दिया था। चौक क्षेत्र की तंग गलियों से तिरंगी बर्फी से क्रांति की कहानी लिखी जाती थी। आजादी की लड़ाई में संदेश को पहुंचाने के लिए मिठाइयों का सहारा लिया जाता था।काशी की “तिरंगी बर्फी” आजादी की लड़ाई में खास भूमिका अदा की थी। 83 साल पहले पहले “तिरंगी बर्फी” का इजाद किया गया था। इंदिरा गांधी भी चख चुकीं हैं तिरंगी बर्फी का स्वाद।
वाराणसी के चौक मुहल्ले के श्रीराम मिष्ठान भंडार के संचालक वरुण कृष्ण गुप्ता ने बताया कि आजादी के आंदोलन में हमारे पूर्वज रघुनाथ दास गुप्ता और मदन गोपाल गुप्ता ने तिरंगी बर्फी पहली बार बनाई थी। वारणसी ही नहीं बल्कि पूरे देश के कांतिकारियों के बीच आजादी का गुप्त संदेश पहुंचाने के लिए इस बर्फी का प्रयोग किया जाता था।तिरंगी बर्फी धीरे-धीरे क्रांतिकारियों के बीच फेमस हुई क्रातिकारियों के बीच से निकलकर इस बर्फी के चर्चे अंग्रेजी हुकूमत में ओहदेदार पदों पर बैठे लोगों तक पहुंचा। जिसके बाद अंग्रेजी सरकार काफी घबरा गई।फिरंगी बर्फी की लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने पहरा बिठा दिया।
गुप्त संदेश भेजा जाता था तिरंगी बर्फी से
तिरंगी बर्फी से आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों के द्वारा देश के एक कोने से दूसरे कोने तक संदेश भेजा जाता था।काशी के रहने वाले मदन गोपाल गुप्ता और रघुनाथ दास गुप्ता क्रांतिकारी थे आजादी की लड़ाई जिस समय लड़ी जा रही थी उस समय अंग्रेजों ने तिरंगे से बने कपड़े और सभी सामानों पर रोक लगा रखा था तिरंगे का प्रयोग करने वाले क्रातिकारियों को पकड़कर जेल में डाला जा रहा था और फांसी दी जा रही थी ऐसे में काशी के रहने वाले 2 कांतिकारियों ने एक अनोखी तकनीक का इजाद किया क्रांतिकारियों को संदेश को भेजने के लिए तिरंगी बर्फी बनाया और इसी से संदेश का आदान प्रदान किया जाता था।
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तिरंगी बर्फी का निर्माण 1940 में हुआ
काशी में पहली बार तिरंगी बर्फी 1940 में बनाई गई थी। श्रीराम मिष्ठान भंडार के संचालक वरुण कृष्ण गुप्ता ने कहा कि 1940 से अनवरत हमारे यहां तिरंगी बर्फी बनाई जाती है। 15 अगस्त पर तिरंगी बर्फी की डिमांड बढ़ जाती है तिरंगी बर्फी के विदेशी भी दिवाने हैं। तिरंगी बर्फी में तीन रंग राष्ट्रध्वज के हैं। तिरंगी बर्फी खोवे से तैयार की जाती है।83 साल से इस बर्फी का निर्माण हमारे यहां होता आ रहा है। और इसकी क्वालिटी जो पहली बार थी वही अब भी है।