काशीः तब पल्लेदारों के कंधे पर होती थी बाबा लाट भैरव की डोली और गिने-चुने बाराती

बारात के स्वरूप को भव्यता देने में भगेलू ठेकेदार की भूमिका अहम, हाथ जोड़कर हिंदू समाज से किया था आग्रह

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न बैंड, न बाजा और न थी कोई शानदार सवारी. 80 के दशक में बाबा लाट भैरव की बारात आस्थावानों के मजबूत कांधों पर सवार होकर डोली से निकलती थी. बाबा के विशाल रजत मुखौटे को मंडी के पल्लेदार कंधे पर लेकर निकलते थे. तब विशेश्वरगंज से लाट भैरव मंदिर तक मार्ग में बाराती भी गिनेचुने नाम मात्र के ही हुआ करते थे. भक्तों में वितरण के लिए आधा कनस्टर हलुआ और घुघरी का प्रसाद पर्याप्त था. लोगों ने बाबा की महिमा जानी और उस स्थान के प्रति जुड़ाव बढ़ने लगा. आज लगभग चार दशक बीत चुके हैं, अब जब देवाधिदेव महादेव की त्रैलोक्य न्यारी नगरी काशी में अंशावतार बाबा श्री कपाल भैरव प्रसिद्ध लाट भैरव रथारूढ़ होते हैं तो उस अद्वितीय पल को देखने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है. बड़ी संख्या बराती बने भक्त साथ चल रहे होते हैं. गाजे-बाजे, शंख की ध्वनि और डमरूओं की निनाद के बीच बाबा का रथ जिस मार्ग से गुजरता है हज़ारों भक्त बारात के स्वागत के लिए आतुर नजर आते हैं. लोग भाव विह्वल हो जाते हैं और भक्ति का सागर हिलोरे मारने लगता है. पूरे बारात मार्ग में महोत्सव सा नजारा होता है.

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भव्यता को प्राप्त बाबा लाटभैरव की बारात के अनूठे आयोजन के बारे में सवाल उठना लाजमी है कि इस बारात को दिव्यता प्रदान करने में किसकी भूमिका रही. हालांकि ऐसे तो कई नाम हैं जिन्होंने सामान्य सी बारात को शोभायात्रा बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी. इनमें से कुछ प्रमुख नामों में भगेलू ठेकेदार, काशीनाथ सिंह, चंद्रशेखर दीवान, बद्री प्रसाद, पाठक गुरु, शंभूनाथ उपाध्याय, मार्कण्डेय, मोहन लाल चौरसिया, सुभग्गे सरदार, मंगल पहलवान, रविंद्र जायसवाल, दयाशंकर त्रिपाठी, पं हरिहर पांडेय आदि प्रमुख नाम हैं. इनमे से अधिकतर लोग आज दुनियां में नहीं है, लेकिन उनकी कृति सदैव स्मरणीय हैं. इन प्रमुख नामों में भगेलू ठेकेदार सबसे प्रभावी नाम है. बाबा के प्रति गजब की श्रद्धा और समर्पण. आज उनकी वर्तमान पीढ़ी बाबा की सेवा में समर्पित हैं.

अफसर के व्यंग ने भरा दिया भगेलू ठेकेदार में जोश

यह मंदिर दूसरे धर्म के लोगों के स्थान से सटा हुआ है. इसलिए खुराफात होती रहती थी. विवाद और झगड़े के कारण प्रशासन की नजर में यह स्थान अति संवेदनशील की सूची में आज भी है. इसके कारण बाबा लाट भैरव से जुड़े हर आयोजन में हमेशा से ही प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ होती थी. उस समय भले ही बारात का स्वरूप बहुत छोटा था फिर भी प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में ही कार्यक्रम संपन्न किए जाते थे. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बारात के दौरान ही एक अधिकारी ने विशेश्वरगंज में भगेलू ठेकेदार को व्यंग बोलते हुए कहा कि क्यों बुड्ढे चार आदमी बारात में चलने को तैयार नही है और पूरे बनारस के प्रशासनिक अमला को परेशान करके रखा है. उन दिनों बारात का नेतृत्व भगेलू ठेकेदार ही कर रहे थे. बारात के आगे धोती व निमिस्तीन पहने पैदल चल रहे भगेलू ठेकेदार को पुलिस अधिकारी के व्यंग बाण शूल की तरह चुभ गये. अधिकारी के इस व्यंग्य ने उन्हें इतना झंकझोर दिया कि बारात के स्वरूप परिवर्तन की दृष्टि से यह वर्ष सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. भगेलू ठेकेदार हमेशा बाबा की स्तुति जय जय लाट भैरव नाथ कर जोडू झुकाऊं माथ का गान किया करते थे.

तब हिंदुओं को हाथ जोड़कर जोड़ने में जुट गये भगेलू ठेकेदार

बारात में शामिल लोगो की संख्या न के बराबर होने पर हुए अपमान का नतीजा यह हुआ कि उसी वर्ष से भगेलू ठेकेदार ने हाथ जोड़कर हिंदुओं को जोड़ने का कार्य प्रारम्भ कर दिया. मार्ग में हर हिंदू परिवार से हाथ जोड़कर आग्रह करने लगे कि बारात में अवश्य शामिल हों. उनकी विनम्रता और नेक भाव ने लोगों को आकर्षित किया. फिर धीरे-धीरे लोग जुड़ते गये और कारंवा बनता गया. उसी वर्ष बारातियों की संख्या में जोरदार बढ़ोत्तरी से उत्साह कई गुना बढ़ गया. वर्ष 1990 में आरती करने वाले भक्तों की संख्या 151 थीं.आज यह आंकड़ा हजार से भी अधिक हैं.

तब बाबा को वस्त्र भी अर्पित करने की मनाही थी

उस समय के लोग बताते हैं कि ईश्वर से कामना है कि कालखंड में ऐसा काला दिन कभी किसी आस्थावान को न देखना पड़े कि वह अपने आराध्य को स्वेच्छा से वस्त्र भी अर्पित न कर सकें. काशी के न्यायाधीश बाबा लाट भैरव के साथ ऐसा ही कुछ हुआ करता था. विवादित स्थल तो था ही. साथ ही तत्कालीन सरकार के तुष्टिकरण की नीति व उनके अधीन जिला प्रशासन के उदासीन रवैए के कारण बाबा को वस्त्र इत्यादि अर्पित करने पर मनाही थी. रोशनी के नाम पर रात में मात्र एक दीया जलाया जाता था. बाबा को सिंधुर लेपन करने से भी रोक दिया जाता था. ऐसे में इतने बड़े आयोजन की परंपरा आगे कैसे बढ़ी यह बड़ी संघर्षमय कथा है. इसके लिए हिंदू समाज के पुरोधाओं ने आंदोलन किए. असंख्य अपमान व कष्ट सहे, मुकदमों को झेला. लेकिन तमाम कष्ट के आगे आस्था भारी रही. बाबा श्री के विशाल भव्य रजत मुखौटे को विग्रह पर विराजमान कराने का श्रेय काशीनाथ सिंह को जाता है. उन्होंने निर्भय होकर परपंरा को जीवित रखने का कार्य किया. बाबा को वस्त्र पहनाने में वर्तमान सरकार के राज्यमंत्री रवींद्र जायसवाल के प्रयासों के कारण सफलता मिली थी.

बाबा की सेवा में सदा से समर्पित रहा किन्नर समाज

किवदंतियो के अनुसार प्राचीन समय में लाट भैरव मंदिर में ऋषियों, मुनियों द्वारा भाद्र पद पूर्णिमा को उत्सव मनाया जाता था. काफी लंबे समय से तंत्र साधकों द्वारा विविध अनुष्ठान किए जाते थे. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए तिलक व बरात शोभायात्रा का प्रारम्भ किया गया था. सेवा निवृत प्रशासनिक अधिकारी रामराज महाराज की प्रेरणा से तिलक शोभायात्रा की शुरुआत हुई थी. इसके लोक उत्सव के रुप में मान्यता मिली. किन्नर समाज भी बाबा की सेवा में समर्पित रहें हैं.

अब शोभायात्रा में लग जाते हैं दस घंटे

भाद्र पद द्वादशी को तिलक, पूर्णिमा को विवाहोत्सव व आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को भंडारे का
आयोजन किया जाता है. सभी आयोजनों में हजारों भक्तों की भीड़ रहती है, दो किलोमीटर लंबे मार्ग को पार कर बरात शोभायात्रा को अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने में लगभग 10 घण्टे से अधिक का समय लगता है. शाम 4 बजे निकलने वाली बरात कज्जाकपुरा स्थित मंदिर में भोर के 3 बजे पहुंचती है. ऐसा इसलिए क्योंकि हाथों में आरती की थाल सजाए प्रतीक्षारत श्रद्धालुओं की अटूट कतार मार्ग पर्यंत दिखाई पड़ती है. छतों, बरामदों से माताएं बहनें पुष्पवर्षा कर रहीं होती हैं. विलंब होने के कारण रथ न रुकने पर संचालन समिति को नाराजगी भी झेलनी पड़ती है. इस दौरान विशेश्वरगंज से लेकर मंदिर तक के सभी देवालयों में श्रृंगारादि सांस्कृतिक अयोजन चलते रहते हैं. सुरक्षा के दृष्टिगत जिले की कई थानों की पुलिस, पीएसी, आरएएफ के अलावा आसपास के जिलों की भी फोर्स सुरक्षा में बारात के साथ होते हैं. अधिकारी खुद मौजूद रहते हैं.

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