काशी से आंदोलन की अलख जगानेवाले अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद को काशी ने किया याद
अधिवक्ताओं ने सेंट्रल जेल में जाकर चढ़ाए फूल, जहां आजाद पर बरसाये गये थे 15 कोड़े
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर मंगलवार को काशी के अधिवक्ताओं, बीएचयू के छात्रों और स्वयंसेवी संगठनों के लोगों ने उन्हें शिद्दत से याद किया. अंग्रेजों के लिए आतंक का पर्याय बन चुके थे आजाद. इलाहाबाद के पार्क में 27 फरवरी 1931 के दिन आजाद ने अंग्रेजों से मोर्चा लिया था. सुखदेव और चंद्रशेखर इसी पार्क में मंत्रणा कर रहे थे तभी अंग्रेजों ने हमला कर दिया. आजाद ने सुखदेव को तो वहां से निकाल दिया, लेकिन एक पेड़ के पीछे छिपकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.
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अंत में सिर्फ एक गोली बची और उन्हें याद आ गया अपना वह संकल्प और दावा जिसमें कहा था मैं आजाद था, आजाद हूं और आजाद रहूंगा. अंग्रेजों के हाथ नहीं लगूंगा आजाद ही मरूंगा. बस आखिरी गोली अपनी कनपटी पर दाग ली और चिर निद्रा में सो गए. वह े पार्क आज भी प्रयागराज में आजाद के बलिदान की गवाही दे रहा है. ऐसे वीर सपूत के लिए काशी में जगह-जगह आयोजन हुए और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये गये. गौरतलब है कि चंद्रशेखर आजाद ने आजादी के आंदोलन की शुरूआत काशी से ही की थी. छोटी सी उम्र में उन्हें यहीं के सेंट्रल जेल में 15 कोड़े की सजा दी गई थी.
सेंट्रल जेल में अधिवक्ताओं ने जलाए दीप
कचहरी के अधिवक्ताओं ने जयंती पर अमर शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सेंट्रल जेल के उस स्थान को चुना जहां उन्हें 15 वर्ष की उम्र में 15 कोड़ों की सजा दी गई थी. इसके लिए अधिवक्ताओं ने जेल के वरिष्ठ अधीक्षक से अनुमति ली और श्रद्धांजलि अर्पित की. अधिवक्ताओं का जत्था शाम पांच बजे जेल पहुंचा. जेल में किशोर उम्र के आजाद की फोटो पर पुष्पांजलि अर्पित की और दीये जलाए. जेल परिसर में भारत माता की जय, वन्दे मातरम, जब तक सूरज चांद रहेगा चन्द्रशेखर आजाद का नाम रहेगा के नारे लगाए. बताते हैं कि आजादी के रजत जयंती पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने किशोर चन्द्रशेखर की जेल की दीवार परएक तस्वीर बनवाकर छोटा सा प्लेटफार्म बनवा दिया था. तब से उस जगह पर आजाद के शहादत दिवस और जयंती पर लोग श्रद्धान्जलि देने पहुंचते हैं. हांलाकि जेल के अंदर जाने की औपचारिकता इतनी कठिन है कि कम लोग ही जा पाते हैं. जयंती कार्यक्रम में बनारस बार के पूर्व अध्यक्ष राजेश मिश्रा, महामंत्री नित्यानन्द राय, नित्यानन्द चौबे, विनोद पांडेय, सुनील सिंह, शैलेन्द्र चौबे, राजेश तिवारी, विजय पांडेय, विपिन शुक्ला, पवन पाठक आदि रहे.
बीएचयू में छात्रों ने श्रद्धासुमन अर्पित किये
उधर, एनएसयूआई बीएचयू शाखा के छात्रों ने चंद्रशेखर आजाद प्रतिमा स्थल पर की सफाई की. इसके बाद माल्यार्पण कर उनके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किया. मंगलवार को उनकी 118 वीं जयंती थी. इस दौरान सभा में धर्मेंद्र पाल ने कहाकि आजाद अन्याय, अत्याचार के खिलाफ युवाओं के प्रेरणाश्रोत हैं. नैतिक तिवारी ने कहा कि बड़े शर्म की बात है इतने बड़े विश्वविद्यालय में चंद्रशेखर आजाद की जयंती के दिन भी उनके प्रतिमा की साफ-सफाई नहीं की गई. प्रतिमा के पास कूड़े का अंबार लगा था. कार्यक्रम में शोध छात्र राणा रोहित, इकाई अध्यक्ष राजीव नयन, मुरारी यादव, राणा आशुतोष, रेहान, अक्षय, विशाल गौरव, राहुल कुमार, प्रियदर्शन मीणा, राहुल पटेल, विपिन आनंद आदि रहे.
लहुरावीर में व्यापारियों ने मनाई जयंती
इधर, लहुरावीर स्थित आजाद पार्क में मां भारती के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद की जयंती मनाई गई. लहुराबीर व्यवसायी समिति के बैनर तले जुटे व्यापारियों ने पुष्पांजलि अर्पित की और उनके बलिदान का स्मरण किया.
अंग्रेज दरोगा का सिर फोड़ने पर आजाद पर बरसाए गए थे 15 कोड़े
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने महज 15 साल की उम्र में काशी में आंदोलन का नेतृत्व किया था. उस समय उनकी गिरफ्तारी हुई और सेंट्रल जेल में उनके शरीर पर 15 कोड़े बरसाये गये थे. वाराणसी के सेंट्रल जेल में जिस स्थान पर किशोर उम्र के चंद्रशेखर आजाद को कोड़े बरसाये वहां दीवार पर उनके चित्र हैं और उससे कुछ दूरी पर उनकी अदमकद प्रतिमा लगाई गई है. वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के समर्थन में देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. तब चंद्रशेखर आजाद काशी विद्यापीठ के छात्र थे. आजाद करीब 15-20 छात्रों को लेकर दशाश्वमेध रोड पर वह विदेशी वस्त्र की दुकान के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे. इसकी सूचना पर अंग्रेजी पुलिस पहुंची और लाठियां भांजने लगी. अंग्रेजों की लाठियों से बचते हुए उनके साथी इधर-उधर फैल गये. लेकिन आजाद अपनी जगह खड़े रहे. उस समय एक दरोगा लोगों पर बेहरहमी से डंडे बरसा रहा था. आजाद से देखा नही गया और उन्होंने पत्थर से मारकर दरोगा का सिर फोड़ दिया. इसके बाद पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर थाने ले गई. दिसम्बर की कड़ाके की ठंड थी और आजाद को ओढ़ने-बिछाने के लिए कुछ नही दिया गया था. अंग्रेजी पुलिस का सोचना था कि यह लड़का ठंड से घबरा जाएगा और माफी मांग लेगा. इस डर से वह फिर कभी ऐसा करने की हिमाकत नही करेगा. लेकिन ऐसा हुआ नही. देर रात पुलिस वाले देखने गये कि हवालात में बंद लड़का ठंड से ठिठुर रहा होगा. थानेदार ने हवालात का ताला खोलवाया तो देखकर हैरान रह गया. चंद्रशेखर आजाद दंड-बैठक लगा रहे थे और कड़ाके की ठंड में पसीने से तर-बतर थे.
मेरा नाम आजाद, मां धरती, पिता स्वतंत्रता और घर जेलखाना
दूसरे दिन चंद्रशेखर आजाद को कोर्ट में पेश किया गया. जब मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद, मां का नाम धरती, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर जेलखाना बताया. उनके तेवर को देख मजिस्टेट ने 15 कोड़े मारने की सजा सुना दी. उन्हें सेंटल जेल ले जाया गया. जेल में जेलर आजाद की पीठ पर कोड़े बरसा रहा था और वह भारत माता के जयकारे लगा रहे थे. इस घटना के बाद आजाद सुखिर्यों में आ गये. जब वह जेल से रिहा हुए तो बनारस में कंधे पर बैठाकर शहर में घुमाया गया.