Banaras : दर्शन से मिलता है कालसर्प से छुटकारा, नाग पंचमी पर उमड़ती है लाखों की भीड़
काशी के नागकूप और उससे संबंधित कई मान्यताएं काफी प्रसिद्ध है... तो आइए जानते हैं नागपंचमी के दिन काशी के नागकूप की कहानी.
हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व बड़े ही उत्साह के साथ उत्तर भारत में मनाया जा जाता है. जहां शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हर वर्ष भगवान भोलेनाथ के प्रिय सांपों के पूजन का पर्व नाग पंचमी मनाया जाता है. नाग पंचमी पर भगवान शिव की पूजा-आराधना के साथ उनके गले की शोभा बढ़ाने वाले नाग देवता की विधिवत पूजा-अर्चना होती है. नाग पंचमी नागों या नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित है.ऐसी मान्यता है कि कुंडली में काल सर्प दोष आदि भी इस दिन की गई पूजा से दूर किए जा सकते हैं. वहीं काशी में नागपंचमी का एक विशेष महत्व है. जहां नागकूप और उससे संबंधित कई मान्यताएं काफी प्रसिद्ध है… तो आइए जानते हैं नागपंचमी के दिन काशी के नागकूप की कहानी.
वाराणसी जिले में नवापुरा नामक एक स्थान है, जहां पर प्रसिद्ध नागकूप स्थित है. कारकोटक नागी तीर्थनागकूप, जिसे नागी तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। यह कूप अपनी अथाह गहराई के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस कूप का सम्बध पाताल लोक से है। मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण में स्पष्ट किया गया है कि काशी का नाग कुआं पाताल लोक जाने का वह रास्ता है जहां सांपों का संसार है. मान्यता है कि नागों के राजा कारकोटक इसी रास्ते से नागलोक गए थे.
नाग कूप का रास्ता जाता है पाताल लोक
पुराण में इसे बताया गया है कि पाताल लोक का रास्ता भी यहीं से होकर जाता है. कहते हैं इस कुंड के अंदर सात और कुंड हैं. माना जाता है कि वहीं से पाताल लोक के लिए जाया जाता है.
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हालांकि, कोई भी इस रास्ते पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है ,क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस रास्ते को पार नहीं कर सकता. वहीं नागपंचमी के दिन लोग दूध व लावा चढ़ा कर जो भी कामना करते हैं वह पूरी होती है. यहां पर दर्शन-पूजन करने से किसी को कभी भी नागदंश नहीं होता. यहां पर सदियों से शास्त्रार्थ की परम्परा भी चल रही है.
कालसर्प दोष से मिलती है मुक्ति
नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. वहीं इस नागकूप की गहराई किसी को नहीं पता. इस कूप के अंदर से ही पाताल लोक का रास्ता है. माना जाता है कि इस कुएं से कई बार कई रहस्यमय आवाजें भी सुनाई देती हैं. नाग पंचमी के दिन यहां दर्शन करने काफी अधिक संख्या में श्रद्धालु कई शहरों से पहुंचते हैं.
पंतजलि भगवान सर्प रूप में विराजमान
मान्यता है कि जिस समय राजा परीक्षित को नागदंश का श्राप मिला था, उस समय कारकोटक नाग अपने जीवन रक्षा के लिए यहां से नागलोक (पाताल लोक) गये थे. यहां पर 80 फुट नीचे स्थापित नागेश्वर महादेव का शिवलिंग है, जिनकी स्थापना महर्षि पंतजलि ऋषि ने की थी.
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वहीं नागपंचमी के दिन पंतजलि भगवान सर्प रूप में आते हैं. इन्हें महादेव का अवतार भी माना जाता है. लोग भगवान के दर्शन करने के लिए बगल में नागकूपेश्वर भगवान की परिक्रमा करते हैं. भक्तों की मानें तो नाग पंचमी के दिन भगवान पंतजलि के दर्शन मात्र से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं.
हिन्दू धर्म में पाताल लोक की कहानी
आपको बता दें पाताल लोक की नगरी का राजा वासुकी नाग को माना जाता हैं जिसे भगवान शिव अपने गले में धारण किए रहते हैं. नारद मुनि के अनुसार, पाताल लोक में सूर्य का प्रकाश नहीं है, लेकिन नागों के सिर की मणियां ही सूर्य जितना प्रकाश करती है.
हिन्दू धर्म में पाताल लोक की स्थिति पृथ्वी के नीचे बताई गई है. नीचे से अर्थ समुद्र में या समुद्र के किनारे. पाताल लोक में नाग, दैत्य, दानव और यक्ष रहते हैं. राजा बालि को भगवान विष्णु ने पाताल के सुतल लोक का राजा बनाया है और वह तब तक राज करेगा, जब तक कि कलियुग का अंत नहीं हो जाता.