‘मोबाइल जर्नलिज्म’ के शुरुआती स्तंभों में से एक नीरज गुप्ता अब क्विंट से इंडिया टुडे ग्रुप के हुए

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देश में मोबाइल जर्नलिज्म को बढ़ावा देने वाले शुरुआती पत्रकारों में से एक और द क्विंट हिंदी के एग्जीक्यूटिव एडिटर नीरज गुप्ता अब इंडिया टुडे ग्रुप के साथ अपनी अगली पारी शुरू करने जा रहे हैं। सहारा, आज तक और आईबीएन-7 सरीखे देश के सबसे प्रतिष्ठित न्यूज चैनलों में 18 साल देने वाले नीरज गुप्ता को दिल से ‘रिपोर्टर’ कहा जा सकते है।

जिस शिद्दत के साथ उन्होंने साल 1999 से 2017 तक टीवी चैनलों के कैमरे को फेस किया है, उसी शिद्दत के साथ उन्होंने ‘सेल्फी मोड’ में खुद माइक और कैमरा थामे द क्विंट के लिए काम किया है।

डिजिटल मीडिया के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म्स में शुमार द क्विंट के लिए नीरज ने न सिर्फ मोजो अंदाज वाली रिपोर्टिंग की, साथ में वो हिंदी टीम को लीड भी कर रहे थे। अपने ही अंदाज में कई ‘डिजिटल रिपोर्टरों’ को इस प्लेटफॉर्म पर खड़ा करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। बताया जा रहा है कि अब वो इंडिया टुडे की डिजिटल विंग से वो जुड़े रहे हैं।

अहम सियासी घटनाओं के साक्षी रहे नीरज-

डिजिटल में आने से पहले वो अलग-अलग चैनलों में बड़ी जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। साल 1999 में सहारा चैनल से शुरुआत करने वाले नीरज ने आज तक में मेट्रो टीम की अगुवाई की। इसके बाद आईबीएन7 के नेशनल ब्यूरो चीफ रहे। इस दौरान देश की तमाम अहम सियासी घटनाओं समेत हर बड़ी आपराधिक, आतंकी वारदात और नक्सली हमलों की रिपोर्टिंग नीरज ने ग्राउंड जीरो से की।

संसद पर हमला हो या मुंबई धमाके, नेपाल का भूकंप हो या बिहार की बाढ़, गुर्जर आंदोलन हो या नॉर्थ-ईस्ट के दंगे- नीरज, हर बड़ी घटना पर सबसे पहले पहुंचने वाले टीवी पत्रकारों में रहे। कश्मीर से केरल और गुजरात से असम तक चुनावी कवरेज के दौरान नीरज ने देश भर के गली कूचों की खाक छानी है।

घुमक्कड़ी के शौकीन हैं नीरज-

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जर्मनी, इटली, स्पेन, डेनमार्क, नॉर्वे, चैक गणराज्य, चीन, जापान, कोरिया, मलेशिया, थाईलैंड समेत दुनिया के कई देशों का फेरा लगा चुके नीरज पूरी दुनिया घूमने की हसरत रखते हैं।

सआदत हसन मंटो ने खासी दिक्कतों के बाद हुए अपने निकाह के बावजूद एक बात कही थी- ”चाहे जो जाए, मैं खुद को तीन चौथाई से ज्यादा एक शौहर में तब्दील होने नहीं दूंगा।”

नीरज हूबहू अल्फाजों में तो ना सही, लेकिन इसी तर्ज पर अपने बायो में लिखते हैं- ”चाहे जो हो जाए, मैं खुद को तीन चौथाई से ज्यादा एक नौकरीपेशा में तब्दील होने नहीं दूंगा।”

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