सुप्रीम कोर्ट से पत्रकार ममता त्रिपाठी को मिली राहत, यूपी सरकार की कार्रवाई पर लगाई रोक…

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सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार ममता त्रिपाठी को उत्तर प्रदेश प्रशासन में कथित जाति के पक्षपात से संबंधित एक लेख के मामले में बड़ी राहत दी है. ममता त्रिपाठी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी स्वतंत्र पत्रकार ममता त्रिपाठी को चार शिकायतों में संरक्षा देने का आदेश दिया है. आपको बता दें कि ममता त्रिपाठी ने अपने खिलाफ दर्ज चारों एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने ममता त्रिपाठी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी. पीठ ने पत्रकार ममता त्रिपाठी की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भेजा है, जिसपर फैसला लिया गया है.

याचिका में प्राथमिकी को खारिज करने की मांग की गई है. त्रिपाठी ने दावा किया है कि, ये प्राथमिकी राजनीतिक हैं और प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने की कोशिश हैं. पीठ ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता (त्रिपाठी) के खिलाफ संबंधित लेख के संबंध में कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाए. मामले की सुनवाई चार सप्ताह के भीतर होगी.

ममता के वकील ने दी ये दलील

ममता त्रिपाठी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि, एक पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और राज्य में ‘‘सामान्य प्रशासन में जाति विशेष की सक्रियता’’ संबंधी एक रिपोर्ट के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी को खारिज करने की मांग की थी. दवे ने उपाध्याय की याचिका पर उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि, वह त्रिपाठी के खिलाफ दर्ज इन प्राथमिकियों में से एक में सह-आरोपी हैं. अक्टूबर की शुरुआत में, शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका पर किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचाया था.

उपाध्याय मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि ”पत्रकारों के खिलाफ केवल इसलिए आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि उनके लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है. दवे ने कहा कि यह सरासर उत्पीड़न है. उन्होंने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ केवल ‘एक्स’ पर उनकी पोस्ट के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई है. अधिवक्ता अमरजीत सिंह बेदी के जरिये दायर अपनी याचिका में त्रिपाठी ने कहा कि चार प्राथमिकी क्रमशः अयोध्या, अमेठी, बाराबंकी और लखनऊ में दर्ज की गई थी.”

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”प्रेस की स्वतंत्रता की जा रही भंग”

आपको बता दें कि त्रिपाठी ने अपनी याचिका में चारों प्राथमिकियों का राजनीतिक उद्देश्य बताया था. पत्रकार ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित किया जा रहा है. वहीं पत्रकार त्रिपाठी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कोर्ट से सामने इससे पहले ही इस जैसे केस में अभिषेक उपाध्याय केस का हवाला दिय़ा था. सुको ने इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद करने का आदेश दिया है.

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