जन्माष्टमीः बाबा विश्वनाथ ने ‌पहना मोर मुकुट, भक्त हुए निहाल

श्रीकाशी विश्वनाथ के हाथों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सोमवार को त्रिशूल- डमरू नहीं, बल्कि बांसुरी रही. माथे पर जटा-जूट पर चंद्रमा संग मोरपंख मुकुट, झूले पर विराजे भगवान विश्वनाथ श्रीकृष्ण रूप में दिख रहे थे.

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भगवान श्रीकाशी विश्वनाथ के हाथों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सोमवार को त्रिशूल- डमरू नहीं, बल्कि बांसुरी रही. माथे पर जटा-जूट पर चंद्रमा संग मोरपंख मुकुट, झूले पर विराजे भगवान विश्वनाथ श्रीकृष्ण रूप में दिख रहे थे. अपने आराध्य भगवान विष्णु व राम के अवतार कृष्ण कन्हैया के द्वापर अवतार पर उनके दर्शन को गोकुल पहुंच गए.

काशीपुराधिपति भगवान शिव भला जन्मोत्सव पर मगन क्यों न हों, सो वह कान्हा के जन्म के पूर्व ही उनकी भक्ति में रम गए और स्वयं मोर मुकुट धारण कर तारणहार के अवतार की प्रतीक्षा में लग गए.

जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर श्रृंगार आरती के पूर्व भगवान श्रीकाशी विश्वनाथ का मोर मुकुट श्रृंगार किया गया. अर्चकों ने बाबा का श्रृंगार कर उनकी आरती उतारी.

जन्माष्टमी पर काशी विश्वनाथ धाम में रहा भारी उत्साह

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बाबा के दरबार में उत्सवी वातावरण रहा. परिसर चौक क्षेत्र में वृंदावन से आई रास मंडली ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का मंचन कर वातावरण कृष्णमय बना दिया.

रात 12 बजते ही घंटे-घड़ियाल व शंखों की ध्वनि से पूरा बनारस उत्साहित हो उठा. कान्हा के जन्मते ही भक्तों ने जयकारे लगाना शुरू कर दिए.

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समस्त विधि-विधान से हुआ पूजन

आरती, पूजन, भजन-कीर्तन, सोहर पूरे परिसय में गूंज रहा था और भक्त झूम रहे थे. जन्म के बाद लड्डू गोपाल को परिसर के श्रीसत्यनारायण मंदिर में विश्राम के लिए ले जाया गया. कुछ देर पश्चात कन्हैया बाबा विश्वनाथ के दर्शन को गर्भगृह में पहुंचकर विराजित हुए. मंगला आरती के पश्चात कन्हैया ने बाबा विश्वनाथ संग भक्तों को दिव्य छटा का दर्शन दिया. बाबा का रूप देख भक्त निहाल हो उठे.

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