गलत है न्यूटन, इस भारतीय वैज्ञानिक ने किया साबित, अब नासा ने भी माना
न्यूटन के गति के तीनों नियमों के बरे में आपने पढ़ा ही होगा। जिसमें तीसरा नियम क्रिया के विपरीत समान प्रतिक्रिया का है। हम आज तक यही जानते आए हैं कि ‘जब कोई पिण्ड दूसरे पिण्ड पर बल लगाता है तो ऐसी स्थिति में दूसरा पिण्ड भी पहले पिण्ड पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाता है।’ अर्थात् प्रत्येक क्रिया की उसके बराबर तथा विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।लेकिन भारतीय वैज्ञानिक अजय शर्मा ने इस नियम को गलत साबित कर दिया है, जिसकी पुष्टि अब नासा ने भी कर दी है।
हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक अजय शर्मा ने अपने शोध के सहारे इस नियम को गलत साबित किया है 1999 में छपे उनके शोध को नासा ने 17 साल बाद स्वीकार किया है।हाल ही में नासा की इगलवर्क्स लैबोरेटरी, हाउस्टन अमेरिका के प्रयोगों में न्यूटन का तीसरा नियम गलत पाया गया है।
311 वर्ष पुराना है न्यूटन का नियम
अजय कहते हैं कि न्यूटन के 311 वर्ष पुराने नियम के अनुसार जब आतिशबाजी को आग लगाते हैं तो गैस और धुंआ पीछे निकलता है। आतिशबाजी आगे जाती है, इसे क्रिया मानते हैं तो प्रतिक्रिया के रूप में धुंआपीछे जाता है। इस तरह क्रिया और प्रतिक्रिया बराबर होती है। अत: न्यूटन नियम सही है। और अन्तरिक्ष में जाने वाले स्पेसक्राफ्ट का भी यही सिद्धान्त है।
प्रतिक्रिया कम या ज्यादा हो सकती है
न्यूटन के इस नियम को गलत साबित करते हुए अजय का कहना है कि प्रतिक्रिया, क्रिया से कम या ज्यादा भी हो सकती है। वो कहते हैं कि न्यूटन ने गति का तीसरा नियम अपनी पुस्तक प्रिंसीपिया (1687) के पृष्ठ संख्या 19-20 पर दिया है कि तीसरे नियम के अनुसार वस्तु की प्रकृति और संरचना पूरी तरह महत्वहीन और निरर्थक है। यह वस्तु की प्रकृति और संरचना की अनदेखी करता है। यहां न्यूटन का नियम सही नहीं है। अजय ने इसे अजय साल 1998 में संशोधित किया है।
संशोधित किया नियम
भारतीय वैज्ञानिक अजय शर्मा ने 1998 में एक्टा सिनेसिया इंडिका नामक जरनल में न्यूटन के तीसरे नियम को गलत ठहरा कर उसे संशोधित किया। संशोधित नियम के अनुसार प्रतिक्रिया, क्रिया से कम या ज्यादा भी हो सकती है। नासा की लैबोरेटरी के प्रयोग में प्रतिक्रिया कम या शून्य पाई गई। इसी तरह अजय शर्मा के संशोधित नियम की पुष्टि होती है। इतना ही नहीं अजय शर्मा ने कैम्ब्रिज, इंग्लैंड से प्रकाशित पुस्तक ‘बियोड न्यूटन एंड आर्कमडीज’के दो अध्यायों में न्यूटन के तीसरे नियम के संशोधित रूप की विस्तृत व्याख्या की है। उन्होंनेअपनी पुस्तक के पृष्ठ संख्या315 पर स्पष्ट लिखा है कि न्यूटन का तीसरा नियम राकेट या स्पेसक्राफट को बिना गणित के तर्कों के ही सही माना जा रहा है।
2016 में छपा शोध पत्र
अमेरिका से प्रकाशित होने वाले जरनल ‘फिजिक्स ऐसेज’ में 2016 में शर्मा का शोध पत्र छपा है। इसमें न्यूटन के संशोधित नियम की गहराई से व्याख्या की है। अजय शर्मा का संशोधित नियम एक व्यापक नियम है। इगलवर्क्स लैबोरेटरी का प्रयोग सिर्फ एक बिन्दु को ही छूता है। यही अजय के शोध का महत्व है।
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ब्रिटिश वैज्ञानिक का भी मत है
2000 में ब्रिटिश वैज्ञानिक रोजर शायर ने मत दिया कि स्पैसक्राफ्ट को बिना ठोस या तरल ईधन के भी अन्तरिक्ष में छोड़ा जा सकता है। यहां हम ईधन की जगह इलैक्ट्रॉनिक मैगनिक वेवज का प्रयोग इन्जन में कर सकते हैं। इन्हीं वेवज की वहज से स्पेसक्राफ्ट आगे बढ़ेगा। इस अवस्था में धुंआ और गैसे पीछे नहीं निकलेगी। इस तरह कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी परिणामस्वरूप न्यूटन की गति का तीसरा नियम गलत होगा। इसीलिए वैज्ञानिकों ने रोजर शायर की शोध की ओर ध्यान नहीं दिया।क्योंकि न्यूटन को वैज्ञानिक किसी भी सूरत में गलत नहीं मान सकते थे।
गलत मिला न्यूटन का नियम
नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर की वैज्ञानिक पहले नासा की एडवांसड प्रोपल्सन फिजिक्स रिसर्च लैबोरेटरी, हाऊस टन अमेरिका ने रोजर शायर के दावे को परखने का बीड़ा उठाया। वैज्ञानिक ने नया इंजन टारसन पैंडुलम पर लगाया। प्रयोग में सुस्पष्ट बल 1.2 मिली न्यूटन/किलोवाट पाया गया, यह बल महत्वपूर्ण है। रोजर शायर का दावा सही पाया गया। इस तरह प्रयोग में क्रिया तो है पर प्रतिक्रिया नहीं है। यही न्यूटन का तीसरा नियम गलत साबित होता है। न्यूटन के नियम के अनुसार क्रिया और प्रतिक्रिया बराबर होनी चाहिए थी।
ये होगा वैज्ञानिकों का अगला कदम
न्यूटन के नियम को एक प्रयोग में गलत ठहराने वाला अजय शर्मा का शोधपत्र अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ ऐरोनौटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स के जरनल ‘प्रोपल्सन एंड पावर’ में 17 नवम्बर 2016 को छप चुका है। छापने से पहले वैज्ञानिकों ने इसकी छानबीन की थी। अब वैज्ञानिक इसे स्पेसक्राफ्ट में प्रयोग लाएंगे। इसमें कोई ठोस तरल, ईधन नहीं होगा और बिजली से चलेगा। बिजली सोलर पैनल में बनेगी। इस तरह यह सबसे सस्ता तरीका होगा। रोजर शायर के अनुसार हम 70 दिनों में इस तरीके से मंगल तक पहुंच जाएंगे। यही वैज्ञानिकों की जिज्ञासा का कारण है। जैसे-जैसे यह शोध आगे बढ़ेगी, अजय शर्मा के कार्य को मान्यता मिलती जाएगी।