सेना ऐसे ही ‘मानव कवच’ का इस्तेमाल नहीं करती है : सेना प्रमुख

0

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों की आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए कहा है कि भारतीय सेना आमतौर पर मानव कवच (ह्यूमन शील्ड) का प्रयोग नहीं करती, लेकिन अधिकारियों को परिस्थितियों के अनुसार कदम उठाने पड़ते हैं। उन्होंने साथ ही इस आलोचना को भी खारिज किया कि सेना हथियार का इस्तेमाल करने को उत्सुक रहती है।

जनरल रावत ने अपने कार्यालय में कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में हितधारकों के साथ सार्थक बातचीत के लिए घाटी में हिंसा का स्तर कम होना जरूरी है। उन्होंने कहा, “वार्ता और हिंसा साथ साथ नहीं चल सकती।” सेना प्रमुख ने साथ ही कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में स्थिति इतनी खराब नहीं है, जैसी मीडिया में दिखाई जा रही है। उन्होंने इस धारणा को भी खारिज किया कि राज्य के लोग सेना के खिलाफ हैं।

जनरल रावत ने कहा, “आमतौर पर ऐसा (मानव शील्ड) नहीं किया जाता। एक तरीके के तौर पर हम इसका समर्थन नहीं करते। लेकिन, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। विशेष परिस्थितियों में उन्होंने (मेजर लीतुल गोगोई) खुद यह फैसला लिया। उस स्थिति में वह किसी आदेश का इंतजार नहीं कर सकते थे।”

उन्होंने कहा, “अगर किसी के पास ऐसी परिस्थिति से निपटने का और कोई तरीका है, तो वह हमें बताए। हम उस पर विचार करेंगे।” जरनल रावत से घाटी में पत्थरबाजों से बचने के लिए एक नागरिक को जीप के बोनट से बांधने को लेकर गोगोई के बचाव में उनकी टिप्पणियों को लेकर हो रही आलोचनाओं के बारे में पूछा गया था।

मेजर गोगोई की कार्रवाई को सही ठहराने के लिए रावत की आलोचना की गई थी। गोगोई की कार्रवाई को आलोचकों ने गैर पेशेवराना करार दिया था। साथ ही इसे भारतीय सेना की छवि धूमिल करने वाला और युद्ध के नियमों से संबंधित जेनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करने वाला बताया था।

जनरल रावत से उनके इस कथित बयान के बारे में पूछा गया जिसमें उन्हें यह कहते हुए बताया गया कि पत्थरबाजों को बंदूक उठानी चाहिए। आरोप लगा कि वह हथियार उठाने के लिए उकसा रहे हैं। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता प्रकाश करात ने इसकी आलोचना की। इस बारे में पूछे जाने पर जनरल रावत ने कहा कि उनकी बात को गलत रूप से पेश किया गया है।

जनरल रावत ने कहा, “ऐसी छद्म युद्ध जैसी स्थिति में शत्रु की पहचान नहीं की जा सकती। वह कोई बैंड या यूनिफॉर्म पहने नहीं होते, जिससे उनके आतंकवादी होने की पहचान की जा सके। जब वह गोलीबारी करते हैं, तभी आप सोचते हैं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। सेना पत्थर नहीं फेंक सकती। यह मेरी कार्यशैली नहीं है। मैं पत्थर नहीं फेंक सकता।”

Also read : शिवराज : मप्र सरकार, किसानों की मददगार व बातचीत पर तैयार

जम्मू कश्मीर में हितधारकों से कोई वार्ता न होने के बारे में और यह पूछने पर किया क्या समस्या कोई स्थायी सैन्य समाधान संभव है, रावत ने कहा कि समाधान को समेकित (इंटीग्रेटेड) होना होगा। उन्होंने कहा, “सेना को हिंसा का स्तर कम करना होगा। हमें जम्मू एवं कश्मीर के लोगों के लिए शांति वापस लानी होगी। आखिरकार इससे गरीब लोग और छात्र प्रभावित होते हैं। पर्यटन प्रभावित होता है।”

रावत ने इन खबरों को खारिज करते हुए कि स्थानीय लोग सेना से ‘क्रोधित हैं’, कहा, “मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई नाराजगी है। हां, लोग बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर नाराज जरूर हैं। यह मुद्दा देश के अन्य हिस्सों में भी है, लेकिन उसके लिए आप बंदूकें नहीं उठाते। सेना में बड़ी संख्या में शामिल होने के लिए युवाओं के आने को देखिए।”

उन्होंने साथ ही जोर देकर कहा कि बुरहान वानी जैसे आतंकवादियों का मारा जाना बिल्कुल गलत नहीं है। शिक्षाविद पार्थ चटर्जी द्वारा जनरल डायर से अपनी तुलना का क्या उन्हें कोई अफसोस है, यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “इस बारे में प्रतिक्रिया करने की जरूरत नहीं है। मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है।”

रावत ने कहा, “मैं एक सैन्य अधिकारी हूं, मुझ पर किसी चीज का प्रभाव नहीं पड़ता। आपको ऐसी चीजों के लिए तैयार रहना होता है..लोग गलत अर्थ निकाल सकते हैं (उनकी टिप्पणियों का)।”  रावत ने कहा कि कश्मीर अपने प्रचुर संसाधनों की बदौलत कई क्षेत्रों में अग्रणी हो सकता है, लेकिन हिंसा के कारण राज्य का आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा है।

उन्होंने कहा, “2011-12 के बाद हिंसा कम हो गई थी। सेना ने (गुस्सा बढ़ाने) का कौन सा काम किया है? बुरहान वानी को मारने के लिए सेना को दोष नहीं दिया जा सकता। परदे के पीछे कुछ हो रहा है। कोई लोगों को उकसा रहा है।” जम्मू एवं कश्मीर में वार्ता न होने के मुद्दे पर उन्होंने कहा इसके लिए हिंसा कम होनी जरूरी है।

इस आलोचना को लेकर कि सेना प्रमुख का रुख सरकार के रुख को दर्शाता है, जनरल रावत ने कहा कि किसी भी लोकतंत्र में सेना को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के तहत काम करना होता है। उन्होंने कहा, “हम सरकार से निर्देश लेते हैं। क्या हमें सरकार के निर्देश के विपरीत काम करना चाहिए? हमेशा सरकार ही निर्देश देती है।” उन्होंने कहा कि सरकार ने सेना को अपने फैसले लेने की छूट दी है। इसी प्रकार सेना ने अपनी इकाईयों को भी यह छूट दी है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More