गुजरात: AAP और BSP से ज्यादा NOTA को मिला वोट
गुजरात विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने नोटा यानी कोई भी पसंद नहीं वाले ऑप्शन का जमकर इस्तेमाल किया है। ईवीएम पर यह बटन दबाने वाली उंगलियों की संख्या आम आदमी पार्टी, एनसीपी और बीएसपी जैसी पार्टियों को मिले वोट से ज्यादा रही है। ईवीएम में नोटा बटन के जरिए मतदाता यह बता सकते हैं कि चुनाव मैदान में उतरा कोई उम्मीदवार उनका प्रतिनिधि बनने लायक नहीं है।
इलेक्शन के लिहाज से असामान्य बात नहीं है
गुजरात विधानसभा चुनाव में 5,51,294 मतदाताओं ने यह बटन दबाकर अपने इलाके के उम्मीदवारों को खारिज कर दिया।2012 के विधानसभा चुनाव में नोटा का ऑप्शन नहीं था। ऐसे में तुलना करने के लिए 2014 केदीय चुनाव का आंकड़ा उठाया जा सकता है। उस चुनाव में गुजरात के 4.2 लाख मतदाताओं ने नोटा बटन दबाया था। विधानसभा चुनाव में नोटा का वोट शेयर 1.8 पर्सेंट रहा है लेकिन जो एक असेंबली इलेक्शन के लिहाज से असामान्य बात नहीं है।
सफल रहे उम्मीदवार मतों के मामूली अंतर से जीते हैं
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक नोटा वोट कुल मतों के 0.8 से 3 पर्सेंट के बीच रह सकता है। गुजरात में आम आदमी पार्टी ने कुल 29 सीटों पर ही प्रत्याशियों को उतारा था, जहां पार्टी को केवल 29 हजार 517 वोट हासिल हुए। वहीं इन 29 सीटों पर 75 हजार 880 लोगों ने नोटा का लिकल्प चुना। नोटा का विकल्प चुनने वालों की संख्या 2.5 फीसदी अधिक रही। गुजरात में नोटा की अहमियत बढ़ जाती है क्योंकि कई विधानसभा क्षेत्रों में सफल रहे उम्मीदवार मतों के मामूली अंतर से जीते हैं।
नोटा का वोट शेयर 1.85 पर्सेंट रहा था
मिसाल के लिए कपराडा असेंबली सीट पर कांग्रेस के जीतूभाई चौधरी ने बीजेपी के मधुभाई राउत को 170 वोटों से हराया है। दिलचस्प बात यह है कि यहां नोटा पर 3868 वोट पड़े हैं जिसको कांग्रेस के जनादेश के तौर पर देखा जा रहा है। गुजरात में बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी लेकिन बहुत से जानकारों को लगता है कि कांग्रेस इस सेंटीमेंट को पूरी तरह भुना पाने में नाकाम रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2013 में नोटा को पेश किया गया था। इसका विकल्प पहली बार छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में दिया गया था। पहली बार में नोटा का वोट शेयर 1.85 पर्सेंट रहा था।
(साभार-एनबीटी)