चीन सीमा पर पूरी हुई हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना, देश को मिलेगी 2000 MW बिजली….
भारत का एक बहुत ही पुराना मेगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट यानी पन बिजली परियोजना इस साल से शुरू होने जा रहा है. चीन सीमा पर बनाया जा रहा देश का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट असहमति की वजह से कई वर्षों तक अटका रहा है. 2,880 मेगावाट का यह प्रोजेक्ट अरुणाचल प्रदेश के दिबांग जिले में दिबांग नदी पर बनाया जाएगा. यह परियोजना भारत को पानी से बड़ी मात्रा में बिजली का उत्पादन करने में मदद करेगी. जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने की उनकी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है .जुलाई से इसकी पहली इकाई का परीक्षण शुरू करेगी और इस वर्ष दिसंबर से इसे ग्रिड से जोड़ना शुरू किया जाएगा।
दरअसल असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच फैली इस परियोजना से देश को कुल 2,000 मेगावाट बिजली मिलेगी. इसकी कुल आठ इकाइयां हैं, जिन्में प्रत्येक की क्षमता 250 मेगावाट है. एनएचपीसी के वित्त निदेशक राजेंद्र प्रसाद गोयल ने दावा किया कि योजना की सभी आठ इकाइयों को दिसंबर 2024 तक संचालन योग्य बना दिया जाएगा।
2003 में शुरू हुई थी परियोजना…
एनएचपीसी के वित्त निदेशक राजेंद्र प्रसाद गोयल के मुताबिक, पहली इकाई इस साल के अंत तक चालू हो जाएगी. इस बीच दिसंबर 2024 तक सभी आठ इकाइयां चालू हो जाएंगी. बता दें कि 2-गीगावाट परियोजना 2003 में शुरू हुई थी. लेकिन विरोध और मुकदमों के कारण इसमें देरी हुई. भारत में, विद्युत ग्रिड को संतुलित करने के लिए जलविद्युत महत्वपूर्ण है. क्योंकि सौर और पवन ऊर्जा का रुक-रुक कर उत्पादन बढ़ता है.
2011 में लग गई थी रोक…
गोयल के मुताबिक, 2011 में परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिलने की वजह से रोक दिया गया था. आठ वर्ष बाद 2019 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने इसे मंजूरी दी। इस तरह से परियोजना का 90 फीसदी से ज्यादा काम बीते 5 वर्ष में ही हुआ है. किसी भी जलविद्युत परियोजना का निर्माण शुरू करने के लिए 40 से ज्यादा विभागों व मंत्रालयों से मंजूरी लेनी होती है। इसके हर स्तर की जांच होती है, जिसकी वजह से यह परियोजनाएं लंबे समय तक अटकी रहती हैं।
देश को मिलेगी 2,000 मेगावाट बिजली…
बता दें कि असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच फैली इस परियोजना से देश को कुल 2,000 मेगावाट बिजली मिलेगी. इसकी कुल 8 इकाइयां हैं, जिनमें प्रत्येक की क्षमता 250 मेगावाट है. एनएचपीसी के वित्त निदेशक राजेंद्र प्रसाद गोयन ने कहा कि योजना की सभी आठ यूनिट्स को दिसंबर 2024 तक संचालन योग्य बना दिया जाएगा.
बड़े बांध से भारत की अर्थव्यवस्था को फायदा…
रिपोर्टों के मुताबिक, बड़े बांध भारत में स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का एक तरीका हैं. खासकर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं में जहां आमतौर पर स्थिति तनावपूर्ण होती है. कथित तौर पर हाइड्रोपावर को प्रोत्साहित करने के लिए. सरकार ने बड़े बांधों को स्वच्छ ऊर्जा का दर्जा दिया है. रिपोर्टों का कहना है कि सरकार ने सिविल निर्माण और बाढ़ नियंत्रण कार्य पर कुछ मामलों के लिए बजटीय सहायता पर सहमति व्यक्त की है।
परियोजना की बढ़ी लागत…
परियोजना की लागत बढ़कर 212.5 बिलियन ($ 2.6 बिलियन) हो गई है. यह इसके मूल अनुमान से तीन गुना अधिक है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आठ साल के निलंबन के बाद 2019 में काम फिर से शुरू करने की अनुमति दी थी. असहमति के कारण परियोजना पर काम आठ साल तक रुका रहा. बांधों के विरोध ने देश को 145 गीगावाट की जलविद्युत क्षमता का बमुश्किल एक तिहाई दोहन करने तक सीमित कर दिया है।
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