तलाक नहीं मांग सकता पतिः SC

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि अपरिवर्तनीय रूप से टूटी शादी का फायदा मौजूदा केस में पति नहीं ले सकता है, क्योंकि वह खुद जिम्मेदार है.

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सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को लेकर अहम फैसला सुनाया है. जिसमें कहा गया है कि अगर महिला का पति किसी भी निर्देश का पालन तय समय में नहीं करता है तो तलाक की डिक्री खारिज कर दी जाएगी. पति शादीशुदा जिंदगी के ब्रेकडाउन के लिए अकेले जिम्मेदार है तो वह इस बात का लाभ लेकर तलाक की मांग नहीं कर सकता है. टूटने के कगार पर पहुंच चुकी शादी, जहां सुधार की गुंजाइश भी न बची हो यानी अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुकी शादी को ही Irretrievable breakdown of marriage कहते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि अपरिवर्तनीय रूप से टूटी शादी का फायदा मौजूदा केस में पति नहीं ले सकता है, क्योंकि वह खुद जिम्मेदार है.

1991 के मामले पर सुनवाई

मौजूदा केस में याचिकाकर्ता की 10 नवंबर 1991 को शादी हुई और बच्चा हुआ. पति ने पत्नी और बच्चे को छोड़ दिया और फिर पति ने ही पत्नी के खिलाफ क्रुएल्टी के आधार पर तलाक मांगी. बेंगलुरु की फैमिली कोर्ट ने पति के फेवर में तलाक की डिक्री दे दी. इसके बाद केस कर्नाटक हाई कोर्ट पहुंचा.

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महिला ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

जहां हाई कोर्ट ने डिक्री खारिज कर दी और फिर से मामला फैमिली कोर्ट भेजा.तब फैमिली कोर्ट ने तलाक की डिक्री पारित करने के साथ एक मुश्त 25 लाख रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया.

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इसके बाद फिर हाई कोर्ट में मामला आया तो हाई कोर्ट ने फैसले में दखल नहीं दिया लेकिन एक मुश्त राशि 25 लाख रुपए से घटाकर 20 लाख रुपये कर दी. इस मामले को महिला ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा

SC ने कहा, जिस तरह फैमिली कोर्ट ने लगातार पति के फेवर में तलाक की डिक्री पारित की, उसमें संवेदनशीलता का अभाव है. कोर्ट ने निर्देश दिया कि पति 10 लाख रुपये अतिरिक्त भत्ते का भुगतान महिला को करे. जिस संपत्ति में महिला बेटे के साथ रह रही है उसमें उसे मालिकाना हक दें.

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तमाम एरियर और अतिरिक्त भत्ता छह महीने में दे. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो तय समय में निर्देश का पालन करते हुए, तलाक की डिक्री खारिज कर दी जाएगी.

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