TRP को पंहुचाना है ‘सुपर से ऊपर’ तो अपनाएं ये फॉर्मूले
दर्शकों की पहुंच के आधार से नापें तो टेलीविजन का पर्दा फिल्म के पर्दे से कहीं बड़ा है। समय के साथ धारावाहिकों की कहानियों में बदलाव दर्शकों को पसंद आता है। टीवी पर आने वाले डेली शो में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। कितने अभिनेता आए और कितने गए, लेकिन नहीं बदला तो सास-बहू का दबदबा।
ये वर्चस्व अभी भी इस हद तक कायम है कि कोई धारावाहिक कितनी भी मजेदार कहानी से शुरू हो जाए, लेकिन उसकी नैय्या पार सास-बहुएं ही लगाती हैं। एक-एक मिनट में बदलती इनकी कहानी और हर दिन आते नए ट्विस्ट से शो की टीआरपी सुपर से भी ऊपर चली जाती है।
अंधविश्वासों की कहानी बटोरती है TRP
छोटे पर्दे पर मक्खी, इच्छाधारी नागिन और आत्मा वाले धारावाहिक अधिक हिट साबित होते हैं। इस बार कलर्स टीवी के 62 एपिसोड वाले धारावाहिक ‘नागिन’ ने अपने पहले सीजन में टेलीविजन की दुनिया में धाक जमाए रखी। नवंबर 2015 में शुरू हुए इस धारावाहिक में नागिन बनी मॉनी रॉय और अदा खान के अलावा अर्जुन बिजलानी सुधा चंद्रन और मनीष खन्ना जैसे अन्य कलाकारों ने भी दर्शकों को जोड़े रखा। लेकिन इस धारावाहिक के अंतिम एपिसोड के टेलीकास्ट होने के बाद कलर्स टीवी की टीआरपी धड़ाम मे नीचे गिर गई।
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बहू यानि बलिदान की देवी
टेलीविजन लेखकों के मुताबिक, बहू की भूमिका में सिमर हो या पार्वती या फिर तुलसी, उसे बलिदान देना होगा। वो हर वक्त अच्छाई की मूरत बनी रहेगी। कुछ भी हो जाए, उसका बलिदान वाला पार्ट कम नहीं होना चाहिए। बहू गोली खाकर हॉस्पिटल पहुंचेगी, वो साजिशों का शिकार होगी, लेकिन किसी के साथ गलत नहीं करेगी। लेखकों का कहना है कि चाहें दुनिया इधर की उधर हो जाए, लेकिन प्यारी बहू संस्कारी ही रहेगी।
खलनायक हूं मैं…
नकारात्मक किरदार से लोग बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं और उनको एक हद तक नापसंद भी करते हैं। इसी को देखते हुए नेगेटिव भूमिका वाली औरत बदलती रहती हैं, मतलब कभी कोई, तो कभी कोई। उनका चरित्र उनके भड़कीले मेकअप और अतरंगी कपड़ों में भी दिखाने की कोशिश की जाती है। क्यों बॉलीवुड हो या छोटा पर्दा खलनायकों से सुधरने की उम्मीद न ही रखिए।
जाति- धर्म की नहीं होती बात
वैसे तो उड़ान जैसे कई नाटक इसी सोच तले टिके रहे, लेकिन ज्यादातर धारावाहिकों में जाति और धर्म पर फालतू बहस नहीं होती। बस एक हंसती-खेलती पंजाबी फैमिली दिखती है, जिसमें बल्ले-बल्ले और शावा-शावा होता रहता है। जिस सीन में टीआरपी बढ़ने की थोड़ी बहुत भी गुंजाइश होती है, उसे तब तक खींचा जाता है, जब तक वो च्युइंग गम न बन जाए।
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