Hola Mohalla 2024: इस दिन से शुरू होगा सिखों का होला मोहल्ला पर्व

जानें कैसे मनाते हैं सिख समुदाय के लोग होली ...

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Hola Mohalla 2024: भारत विभिन्नताओं का देश है, यहां पग – पग पर भाषा और पानी बदलता है. ऐसे में होली के पर्व को भी विभिन्न स्थानों पर विभिन्न तौर पर मनाया जाता है. इसी कड़ी में सिख समुदाय भी होली का पर्व विशेष तौर पर मनाते हैं, जिसे होला मोहल्ला के नाम से जाना जाता है. इस साल यह पर्व 25 मार्च से 27 मार्च तक मनाया जाने वाला है. इस पर्व को सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने शुरू किया था. आज परमात्मा के बिना जीवन का हर रंग और सच्चा आनंद अधूरा है. 1680 में किला आनंदगढ़ साहिब में गुरु गोविंद सिंहजी ने खुद होली को होला मोहल्ला के रूप में मनाने की शुरुआत की थी. होला मोहल्ला मनाने का मुख्य उद्देश्य सिख समुदाय को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाते हुए विजय और वीरता की भावना को उनमें दृढ़ करना है.

क्या है होला मोहल्ला का इतिहास? 

सिख इतिहासकार बताते हैं कि, होला मोहल्ला पर्व की शुरुआत से पहले लोगों ने होली के दिन एक दूसरे को फूलों से रंगने की परंपरा थी. लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी ने इसे शौर्य से जोड़ते हुए सिख कौम को सैन्य प्रशिक्षण देने का आदेश दिया था. इसमें समुदाय को दो अलग-अलग दलों में बांटकर युद्ध करना सिखाया जाता है.

इसमें विशेष रूप से उनकी लाडली फौज यानि निहंग को शामिल किया गया है, जो घुड़सवारी करते हुए और पैदल चलते हुए हथियार चलाने का अभ्यास करते थे. तब से लेकर आज तक, अबीर और गुलाल के बीच होला मोहल्ला के पावन पर्व पर आपको इसी वीरता और शूरता का भाव देखने को मिलता है. वहीं इस दौरान जो बोले सो निहाल और झूल दे निशान कौम दे के नारे गूंजते हैं.

इस तरह मनाया जाता है होला मोहल्ला

छह दिनो तक मनाया जाने वाला होला मोहल्ला तीन दिन तक गुरुद्वारा कीरतपुर साहिब में और तीन दिन तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. हर साल आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला पावन पर्व में देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं. यहां आपको विभिन्न प्राचीन और आधुनिक शस्त्रों से लैस निहंग हाथियों और घोड़ों पर सवार होकर रंग फेंकते हुए दिखाएं जाते हैं. आनंदपुर साहिब के होला मोहल्ला में तमाम छोटे-बड़े लंगरों में प्रसाद खाने और शौर्य का रंग देखने को मिलता है. वहीं यह मोहल्ला महोत्सव देखने के लिए दिल्ली से लोग बाइक और कार से आते हैं. रास्ते में कई सिख दल ठहरने और लंगर की सेवा का इंतजाम करते हैं.

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पर्व में क्या है खास

गुरु की लाडली फौज घुड़सवारी और पैदल चलने का अभ्यास करती है. अबीर और गुलाल में इसी वीरता और शूरता का भाव दिखाई देता है. पंजाब का रूपनगर आनंदपुर साहिब है. आप चंडीगढ़ से आनंदपुर साहिब जा सकते हैं. वहीं, नंगल सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है.

 

 

 

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