अटल बिहारी के ऐतिहासिक फैसले जिनकी कर्जदार रहेगी राजनीति..

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Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary : आजादी के ठीक एक दिन बाद यानी 16 अगस्त 2018 को देश लोकप्रिय नेता अटल बिहारी का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया, यह भारतीय राजनीति और भारतीय जनता पार्टी की भारी क्षति के तौर पर आज भी देखा जाता है । क्योकि बाजपेई जी ने बतौर राजनेता देश और राजनीति को मुमकिन ऊंचाई तक पहुंचाने का प्रयास किया, इसके साथ ही वे पहले ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे और उन्होने पीएम पद पर अपना कार्यकाल भी पूरा किया । उस समय दो सीटों पर सरकार बनाने वाली बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनाने की उपलब्धि सिर्फ बाजपेई जी के बस की बात थी, जिसको आडवाणी ने बखूबी भांप लिया था और कमान बाजपेई को सौंप दी थी ।

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इसके साथ ही बाजपेई जी तीन बार भारत के पीएम चुने गए, पहले 13 दिन तक, फिर 13 महीने तक और उसके बाद 1999 से 2004 तक का कार्यकाल उन्होंने पूरा किया । इस दौरान उन्होने साबित कर दिया कि देश को गठबंधन सरकार में सही फैसलो के साथ बेहतर तरीके से चलाया जा सकता है ।

इस कार्यकाल में स्थिर मुखिया के तौर पर बाजपेई ने ऐसे फैसले लिए जिसे राजनीति के मायने ही बदलकर रख दिए, वो बाजपेई जी कार्यकुशलता ही थी जिसने दक्षिणपंथ की राजनीति को भारतीय जनमानस में इस तरह रचा बसा दिया । इसका ही असर रहा की इसके तरकीबन एक दशक बाद बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई, जिसकी एक समय में कल्पना भर करना मुश्किल था।आज बाजपेई जी पुण्यतिथि के अवसर पर उनके ऐसे फैसलों पर नजर डालेंगे जिसके लिए इतिहास हमेंशा उनका ऋणी रहेगा, आइए जानते है कौन से है वो बड़े फैसले …

1. भारत जोड़ो योजना

बतौर पीएम देश के विकास के फैसले लेते हुए देश के हर वर्ग को एक दूसरे से जोड़ने की आवश्यकता थी, जिसके लिए बाजपेई जी ने शुरू की स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना इस योजना के जरिए चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को सड़क मार्ग से एक दूसरे को जोडा जा सका। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों तक सुविधाएं पहुंचाने के लिए उन्होने भी देश के बडे शहरों से जुड़ने की आवश्यकता थी जिसके लिए शुरू की गयी प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना इन योजनाओ ने देश की आर्थिक विकास में काफी मदद दी ।

2. निजीकरण को बढ़ावा

बाजपेई जी ने बतौर पीएम देश में निजीकरण को बढावा देने का काम किया और इस फैसले के बाद बाजपेई जी की राजनीति में वापसी करना किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए संभव नहीं था । हालांकि, बीजेपी की इस रणनीति के पीछे कॉर्पोरेट समूहों से सांठ गांठ रही होगी, लेकिन उस समय में बाजपेई के नजदीकी रहे प्रमोद महाजन सोच का ही असर था कि, साल 1999 में सरकार नें विनिवेश मंत्रालय के तौर पर एक अनोखा मंत्रालय का गठन किया था।

इस मंत्रालय का कार्यभार उस समय मंत्री अरुण शौरी को सौंपा गया था,शौरी के नेतृत्व में एल्यूमिनियम कंपनी (बाल्को), हिंदुस्तान ज़िंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियों को बेचने की शुरूआत की गयी थी । आपकों बता दें कि, सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन की स्कीम को वाजपेयी सरकार ने ही खत्म की थी, लेकिन उन्होंने जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले पेंशन की सुविधा को नहीं बदला था।

3. संचार क्रांति

भारत में संचार की क्रांति का जनक भले ही राजीव गांधी और सैम पित्रोदा को माना जाता रहा हो , लेकिन इस संचार की सुविधा को आम लोगो तक पहुंचाने वाले बाजपेई सरकार ही रही है। साल 1999 में बाजपेई ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के एकाधिकार को खत्म करने के साथ ही टेलीकॉम नीति की शुरूआत की थी । इसका जिम्मा भी प्रमोद महाजन को ही सौपा गया था और यह भी कहा जाता है कि, इसके पीछे उनका ही दिमाग लगा था । इसके साथ ही इस टेलीकॉम नीति के जरिए आम लोगो तक सस्ती दरों पर फ़ोन कॉल्स उपलब्ध करने की शुरूआत की गयी और बाद में सस्ते फोन भी उपलब्ध कराए जाने की भी शुरूआत की गयी ।

4. सर्व शिक्षा अभियान

शिक्षा में क्रांति लाने का काम भी बाजपेई सरकार ने किया था, जिसके जरिए छह से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने का अभियान शुरू किया गया । साल 2000- 2001 में इस स्कीम को लागू किया गया । जिसके चलते पैसे को लेकर पढाई छोडने वाले बच्चों की दर में गिरावट दर्ज की गयी ।2000 में जहां 40 फ़ीसदी बच्चे ड्रॉप आउट्स होते थे, उनकी संख्या 2005 आते आते 10 फ़ीसदी रही थी । इसके साथ – साथ यह भी कहा जाता है कि, उन्होंने स्कीम को प्रमोट करने वाली थीम लाइन ‘स्कूल चले हम’ ख़ुद ही लिखी थी ।

5.पोखरण परमाणु परीक्षण

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पोखरण में परमाणु परीक्षण के लिए भी सदैव याद किया जाता रहेगा. मई 1998 में पोखरण में परमाणु परिक्षण किया था. वाजपेयी ने यह परीक्षण यह दिखाने के लिए किया था कि भारत भी परमाणु संपन्न देश है. हालांकि इसकी आलोचना भी हुई थी, बावजूद वाजपेयी अपने इरादे पर अटल रहे.

इस परीक्षण के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक पांबदी लगा दी थी. लेकिन वाजपेयी की कूटनीति कौशल के कारण 2001 के आते-आते ज्यादातर देशों ने सारी पाबंदियां हटा लीं.

6.पोटा कानून

13 दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर चरमपंथियों ने हमला कर किये गये। हालांकि, इस हमले में कोई भी राजनेता के हताहत होने की खबर सामने नहीं आयी थी लेकिन इस हमले में देश ने अपने कुछ बहादूर जवानो को जरूर खोया था। इस हमले के बाद इस दिन को भारतीय संसदीय इतिहास का काला दिन भी कहा गया ।

उसी समय अटल बिहारी वाजपेयी ने पोटा कानून लाया था। पोटा आतंकवाद के खिलाफ सबसे सख्त कानून था। जिसे टाडा कानून के मुकाबले कड़ा कानून माना गया। दो साल में ही इस कानून के तहत 800 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 4000 से अधिक लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराये गये। इस कानून की जमकर आलोचना हुई. बाद में जब 2004 में यूपीए की सरकार केंद्र में आयी तो इस कानून को निरस्त कर दिया गया।

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7. जातिवार जनगणना पर रोक

देश में बाजपेई सरकार बनने से पहले ही एचडी देवगौड़ा सरकार ने जातिवार जनगणना को मंजूरी मिल चुकी थी, इसके बाद 1999 में बाजपेई सरकार आने के बाद साल 2001 में जातिगत जनगणना की शुरूआत की गयी। न्यायिक प्रणाली की ओर से बार बार तथ्यात्मक आंकड़ों को जुटाने की बात कही जा रही थी ताकि कोई ठोस कार्य प्रणाली बनाई जा सके. तत्कालीन रजिस्टार जनरल ने भी जातिगत जनगणना की मंजूरी दे दी थी.

लेकिन वाजपेयी सरकार ने इस फ़ैसले को पलट दिया. जिसके चलते जातिवार जनगणना नहीं हो पाई.इसको लेकर समाज का बहुजन तबका और उसके नेता वाजपेयी की आलोचना करते रहे हैं, उनके मुताबिक वाजपेयी के फ़ैसले से आबादी के हिसाब से हक की मुहिम को धक्का पहुंचा.

 

 

 

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