जब जिमी कार्टर के सम्मान में बदला गया था हरियाणा के इस गांव का नाम…

भारत आने वाले तीसरे राष्ट्रपति थे जिमी कार्टर

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क्या आपको पता है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर के नाम से एक गांव ‘कार्टरपुरी’ भारत के हरियाणा के गुड़गांव जिले में स्थित है. इस गांव को पहले ‘दौलतपुर नसीराबाद’ के नाम से जाना जाता था. यह गांव साउथ दिल्ली में बिजवासन के काफी करीब और गुड़गांव रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किमी दूर है.
यह गांव पूरे हरियाणा में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के सम्मान के लिए प्रसिद्ध है. यह गांव न केवल जिमी कार्टर बल्कि उनकी मां से भी जुड़ा है, जिन्होंने 1960 के दशक के अंत में पीस कॉर्प्स के स्वयं सेवक के रूप में इस गांव का दौरा किया था.
वहीं Rediff.com के अनुसार 1978 में जिमी कार्टर की इच्छा के कारण यह गांव अचानक मीडिया की नज़रों में आ गया था. इसका कारण रहा कि तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर इस गांव में कुछ समय बिताना चाहते थे, जहां उनकी मां ‘बेसी लिलियन’ ने कभी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया था.

कैसे पड़ा नाम ‘कार्टरपुरी’?

गांव वाले आज भी 3 जनवरी, 1978 का वह दिन याद करते हैं, जब अमेरिका के 39वें राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने अपने परिवार और 300 लोगों के साथ इस गांव का दौरा किया था. कार्टर भारत आने वाले तीसरे राष्ट्रपति थे. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल, कई कैबिनेट मंत्री और गांव के प्रधान स्व. मुंशी राम यादव ने उनका स्वागत किया था.
उस समय के कार्टरपुरी के हेड पोस्ट-मास्टर करतार सिंह ने याद करते हुए बताया कि ” राष्ट्रपति के आने से पूर्व सुरक्षा कर्मियों ने गांव को 24 घंटे पहले ही घेर लिया था. जिमी कार्टर ने उस समय गांव को पहला टेलीविजन सेट भेंट किया. उस दौरान हमने उन्हें और उनकी पत्नी को पारंपरिक हरियाणवी पोशाकें दीं, जो उन्होंने हवेली में प्रवेश करने से पहले पहनीं. बाद में उन्होंने ग्रामीणों से बातचीत की और बाजरे की रोटी भी खाई.”

गांववालों ने उन्हें कपड़े, जूते और सजावट की वस्तुएं उपहार स्वरूप दीं. गांव वालों की गर्मजोशी और आतिथ्य से प्रभावित होकर जिमी कार्टर ने गांव को एक “आदर्श गांव” में बदलने के लिए सहायता देने की पेशकश की. वहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इसे ठुकरा दिया क्योंकि सरकार का अपना ग्रामीण विकास कार्यक्रम था.

दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा के सम्मान में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सलाह पर गांव का नाम बदलकर ‘कार्टरपुरी’ कर दिया गया. साथ ही 3 जनवरी को ‘कार्टर दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया. राष्ट्रपति कार्टर के दौरे के बाद व्हाइट हाउस और ग्राम पंचायत के बीच नियमित पत्राचार होता रहा. 3 जनवरी को अमेरिकी राजदूत उपहार लेकर आते थे और महिलाएं हलवा-पूरी बनाती थीं.
इस गांव की हवेली ने 1978 और 1981 के बीच अमेरिकी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनकर सुर्खियां बटोरीं. करतार सिंह ने याद करते हुए आगे बताया कि “1981 में जब रोनाल्ड रीगन अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बने तो हम इतने दुखी थे कि उस शाम किसी ने अपने घर में दीया नहीं जलाया.”

हालांकि, 1998 में गांव के सरपंच याद राम यादव ने अफसोस जताते हुए कहा था कि “न तो सरकार अमेरिका से सहायता स्वीकार करने के लिए सहमत हुई और न ही उसने अपनी ओर से कुछ किया. पिछले 20 वर्षों में हमारे लिए केवल एक चीज जो बदली है, वह है हमारे गांव का नाम.” आज यहां के ग्रामीण अपने को ठगा हुआ महसूस करते हैं और इस नाम को मिटा देना चाहते हैं. वे घोषणा करते हैं कि “हमें अपनी विरासत खोने का अफसोस है.”

आज क्या है ‘कार्टरपुरी’ की स्थिति

हालांकि, गुड़गांव के तेजी से होते शहरीकरण ने कार्टरपुरी गांव को कई सामाजिक चुनौतियों के सामने ला खड़ा किया है. अवैध निर्माण, खराब स्वच्छता और प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं ने गांव के विकास को प्रभावित किया. इन समस्याओं के समाधान के लिए 2008 में कई गैर-सरकारी संगठनों, अरविंदम फाउंडेशन, हरियाली और विष्णु चैरिटेबल ट्रस्ट ने इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने की पहल की.
अक्टूबर 2008 में, गुड़गांव नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त राजेश खुल्लर ने विष्णु चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रमुख डॉ. लोकेश अबरोल से आवारा गायों के लिए एक गौशाला विकसित करने का अनुरोध किया. इसके परिणामस्वरूप 2012 में कामधेनुधाम और नंदीधाम गौशालाओं का यहां निर्माण किया गय़ा. इसके साथ ही एक अवैध जहरीले कचरे के ढेर को हरे-भरे और सुंदर वातावरण में बदल दिया गया. इस अभियान को ‘आइए हम अपने पर्यावरण के साथ बढ़ना सीखें’ नाम दिया गया. इस परियोजना के तहत 1000 पौध लगाए गए और उनकी देखभाल की गई.
इसके अलावा बच्चों के लिए गुरुकुल कल्पतरु और महिलाओं के कौशल विकास के लिए हाटमेक यूनिट स्थापित की गई है. इस पहल के तहत 8 एकड़ भूमि को लॉन और खेल के मैदान में बदल दिया गया, जो प्रदूषित और व्यस्त सड़कों से राहत प्रदान करती है.

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