वर्ष 1991 में दाखिल प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ बनाम अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के मुकदमें में सिविल जज सीनियर डिवीजन/फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रशांत कुमार की अदालत में बुधवार को सुनवाई हुई. इस मामले में लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की तरफ से ज्ञानवापी में बंद तहखानों और खंडहरों की एएसआई से जीपीआर तकनीक से सर्वे कराने की मांग की गई है. इसके अलावा मुकदमे के वादी रहे हरिहर पांडेय के निधन के बाद उनके स्थान पर उनके दो पुत्रों को और पंडित सोमनाथ व्यास की मृत्यु के कारण वसीयत के आधार पर उनके नाती शैलेंद्र कुमार पाठक को पक्षकार बनाए जाने पर सुनवाई हुई.
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काशी विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी का कहना था कि यह री प्रजेंटेटिव वाद है. इसमें जरूरी नहीं है कि वादी के मृत्यु होने पर उनके वारिस को पक्षकार बनाया जाय. इसमें अधिवक्ता भी मुकदमा लड़ सकता है. इस आवेदन के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा. कहा कि यह इंडिविजुवल वाद है. तीन लोगों ने यह वाद दाखिल किया था. ऐसे में मृतक वादी के वारिसान भी पक्षकार बन सकते हैं. इस दौरान श्रीराम मंदिर मामले का हवाला भी दिया गया. अदालत ने इस मुद्दे पर सुनवाई के बाद आदेश कि लिए पत्रावली सुरक्षित कर ली है.अदालत में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के उस आवेदन पर सुनवाई होनी है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सील वजूखाने में मिली शिवलिंग जैसी आकृति की एएसआई से जीपीआर पद्धति से सर्वे कराने की मांग की गई है. मुकदमे के वादी हरिहर पांडेय के निधन के बाद उनके दो बेटों को पक्षकार बनाए जाने के मुद्दे पर भी सुनवाई होनी है.
सिविल जज की अदालत ने 8 अप्रैल को दिया था आदेश
प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ व अन्य पक्षकारों ने साल 1991 में ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजापाठ करने का अधिकार देने के लिए अदालत में मुकदमा दाखिल किया था. मुकदमे की सुनवाई के दौरान 10 दिसंबर 2019 को लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) से रडार तकनीक से ज्ञानवापी परिसर और विवादित स्थल का भौतिक एवं पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की थी. सुनवाई के बाद सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत ने 8 अप्रैल 2021 को पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) की अदालत के आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका दाखिल की गई थी.
1991 की याचिका क्या है और क्या किये गये हैं दावे
1991 के मुकदमे में यह आदेश देने की मांग की गई है कि तहखानों के शीर्ष पर स्थित ‘संरचना (मस्जिद), भगवान विश्वेश्वर के पुराने मंदिर के निकटवर्ती भाग और कुछ अन्य संरचनाएं भगवान विशेश्वर और भक्तों की संपत्ति हैं. मुस्लिम समुदाय ने संपत्ति पर अवैध कब्जा कर लिया है. याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं को इसे पूजा स्थल के रूप में उपयोग करने और अपने मंदिर का नवीनीकरण और पुनर्निर्माण करने का पूरा अधिकार है. इसमें यह भी कहा गया कि प्रतिवादियों (वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी) के पास कोई अधिकार, स्वामित्व या हित या किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं है. 1991 के मुकदमे में अदालत से प्रतिवादियों को उक्त संपत्ति से इसके प्रभाव को हटाने और उक्त संरचनाओं पर वादी को कब्जा सौंपन का निर्देश देने के लिए एक आदेश पारित करने के लिए कहा गया था. इसमें कहा गया है कि ज्ञानवापी परिसर की संपूर्ण संपत्ति, प्लॉट नंबर 9130, 9131 और 9132, जिसकी माप 1 बीघा, 9 बिस्वा और 6 धूर है. वह पुरानी चारदीवारी से घिरी हुई है. उसमें चार मंडप और उसके खंडहर ज्ञानकूप के साथ भगवान विश्वेश्वर का प्राचीन मंदिर है. कहा गया है कि उस स्थान पर पौराणिक काल से पहले भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग मौजूद था. उन्हें भगवान विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है. मंदिर का निर्माण लगभग 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने किया था. उसमें भगवान विश्वेश्वर की मूर्ति की विधिवत प्रतिष्ठा की थी. धार्मिक विद्वेष के कारण देश में मुस्लिम शासन के दौरान इसे कई बार गिराया गया. भगवान विश्वेश्वर के मूल मंदिर के अलावा, मंदिर के चारों ओर चार मंडप हैं. इन्हें मुक्ति मंडप, ज्ञान मंडप, ऐश्वर्या मंडप और श्रृंगार मंडप के नाम से जाना जाता है.