गुरु गोबिंद सिंह जयंती: मात्र 9 वर्ष की आयु में बने अंतिम सिख गुरु, ऐसे हुई खालसा पंथ की स्थापना
आज यानि 22 दिसंबर को सिखों के 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जा रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष माह की सप्तमी तिथि पर गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जाती है. गुरु गोबिंद सिंह एक महान योद्धा और धार्मिक व्यक्ति थे. गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पर प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन गुरुद्वारों में विशेष अरदास और लंगर का आयोजन किया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, 22 दिसंबर, 1666 में गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था.
मुगल शासक औरंगजेब ने इनके पिता गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म कबूल करने मजूबर किया था, लेकिन इन्होंने मुगलों के आगे नहीं झुके और इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार दिया, तब औरंगजेब ने नवंबर, 1675 में इनका सिर कलम कर दिया था. उस समय गुरु गोबिंद सिंह को की आयु मात्र 9 वर्ष थी और वे सिख धर्म के दसवें एवं अंतिम गुरु पर आसीन हुए.
दसवें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही. शिक्षा के अंतर्गत उन्होनें लिखना-पढ़ना, घुड़सवारी तथा सैन्य कौशल सीखे. वर्ष 1684 में उन्होंने ‘चण्डी दी वार’ की रचना की. वर्ष 1685 तक वह यमुना नदी के किनारे पाओंटा नामक स्थान पर रहे.
गुरु गोबिंद सिंह ने ही मुगलों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने और धर्म की रक्षा के लिए वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना थी, जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. इन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना उत्तराधिकारी और सिखों का निर्देशक घोषित किया था. गुरु गोबिंद सिंह ने पंच प्यारे और 5 ककार शुरु किए थे.
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर पटना (जो आज बिहार की राजधानी हैं) में 22 दिसंबर, 1666 को हुआ था. जब वह पैदा हुए थे, उस समय उनके पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी असम में धर्म उपदेश को गये थे.
गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियां थीं. महज 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने 21 जून, 1677 को आनंदपुर से 10 किलोमीटर उत्तर में बसंतगढ़ में माता जीतो से शादी की. दोनों के 3 बेटे जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह थे. 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ. उनके बेटे का नाम अजित सिंह था. 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया. इनसे उनकी कोई संतान नहीं हुई पर सिख पंथ के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा.
7 अक्टूबर, 1708 को गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु हो गई थी. उन्हें पठानों ने चाकू मार दिया था. वे अंतिम सिख गुरु थे.
फतेहगढ़ साहिब में से शहीदी जोड़ मेला शुरू होने जा रहा है. 26 दिसंबर, 1704 में आज के ही दिन गुरुगोबिंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था, माता गुजरी को किले की दीवार से गिराकर शहीद कर दिया गया था.
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