जन्म दिन पर देते हैं घोसले की सौगात

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कुदरत ने धरती को एक से एक बेहतरीन तोहफों से नवाजा है.  हर एक तोहफे की अपनी खुबसूरती और अपनी खासियत.  पेड, पौधे, जंगल, झरने से लेकर तरह तरह के पशु पक्षी और सबसे बढ़कर इंसान. पर आज यही इंसान कुदरत के दूसरे तोहफों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. लगातार बढ़ रहे कंक्रीट के जंगल और धूल- धुंआ कुदरत के तमाम करिश्मोंक की रंगत धूमिल करने लगा है. कुदरत के तमाम बेहतरीन नेमतों में गौरया भी है. आंगना की चिड़िया कही जाने वाली यह नन्हीं़ सी जान आज अस्तित्व  के संकट से जूझ रही है. गौरया की इस दुर्दशा ने बनारस के कुछ नौजवानों का व्य ग्र किया और उन्हों ने इसके संरक्षण की मुहिम शुरू कर दी. घर आंगन से गायब हुई गौरया के चहचहाहट और हरियाली को वापस लाने का कठिन संकल्प लिया उसे पूरा करने के लिए व्यं ग फाउंडेशन नींव रखी. इसी फाउंडेशन के बैनर तले ये नौजवान गौरया संरक्षण का जतन कर रहे हैं.

मूलरूप से देवरिया के रहने वाले नवनीत पाण्डेय अतुल बनारस में रहकर व्यवसाय करते हैं. फुर्सत के पलों में जब दोस्तों के साथ बैठते थे तो शहर के हालात की चर्चा भी होती थी. सबके मन में टीस थी कि कभी प्राकृतिक रूप से बेहद समृद्ध यह शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है. हरियाली के साथ ही पशु-पक्षी भी यहां से लुप्त् हो रहे हैं. खासतौर पर गौरेया तो अब मुश्किल से नजर आती है. सभी इनके लिए कुछ करना चाहते थे. मगर काम की व्यस्तता और योजना के अभाव में कुछ हो नहीं पा रहा था. अतुल के मन में रह-रहकर छह साल पहले की एक घटना ऊभर आती थी. वो ककरमत्ता के एक मल्टीस्टोरी फ्लैट में शिफ्ट हुए थे. उनके पहले जो फैमिली वहां रहती थी उसने अनुरोध किया कि वो हर दिन चिड़यों के लिए दाना-पानी छत पर रखते थे. दाना-पानी की तलाश में हर रोज ढेरों चीड़िया वहां आती हैं इसलिए यह सिलसिला ना टूटे. अतुल ने भी वैसे ही करना जारी रखा. उनके मन में आया कि इसी तरह से शहर के हर घर में चीड़ियों के लिए दाना-पानी का इंतजाम किया जाए तो उन्हें लुप्त होने से बचाया जा सकता है.

फिर तो बन गयी पूरी टीम

अतुल ने अपने दोस्तों आशुतोष तिवारी, प्रदीप सिंह, बृजेश पटेल, नरेश शर्मा, प्रभात जायसवाल, अमित श्रीवास्तव, पप्पू यादव आदि के सामने अपना यह विचार रखा तो सभी ने उसका स्वागत किया और शहर में गौरेया संरक्षण की मुहीम में साथ हो गए. 9 जून 2018 में सबने मिलकर एक संस्था बनायी जिसका नाम रखा व्यग्र फाउंडेशन. इस नाम के जरिए वो अपनी पर्यावरण संरक्षण की चिंता को भी सबके सामने लाना चाहते थे. संस्था के सदस्यों ने तय किया कि अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिचितों के साथ अन्य लोगों को भी अपने मुहीम में जोड़ेंगे. उनका उद्देश्य हर घर में गौरेया के दाना-पानी का इंतजाम करना था. उन्होंने सबसे पहले गौरेया के संरक्षण की बात इसलिए सोची क्योंकि कभी हर घर के आंगन में चहकने वाली यह चीड़िया तेजी से विलुप्त हो रही है.

तोहफे में देते हैं घोसला

संस्था के सदस्यों ने गौरेया संरक्षण में सबको साथ जोड़ने का नायाब तरीका निकाला. अब वो किसी की भी शादी, बर्थ डे, रिसेप्शन या अन्य कार्यक्रमों में जाते तो ऊपहार स्वरूप प्लाई का बना खूबसूरत घोसला, गौरेया के दो पात्र और ककुनी, बाजरा देते. यह लोगों को खूब पसंद भी आता. अतुल बताते हैं कि पिछले दो सालों में इस तरह उन्होंने लगभग 1000 लोगों यह तोहफा दिया है. इसके साथ ही वो कुछ पौधे भी देते हैं ताकि लोग उन्हें अपने घरों के गमले या जहां भी जगह हो वहां लगा सकें और शहर में हरियाली वापस लाने में अपना योगदान कर सकें. इसके अलावा पूरी टीम बकायदा समय-समय पर सामूहिक कार्यक्रमों के जरिए लोगों को गौरेया संरक्षण के प्रति जागरुक कर रही है. नवरात्रि में कन्या पूजन के दौरान संस्था के सदस्य अपने परिचितों के घर जाते हैं और बच्चों को घोसला गिफ्ट करके उनसे गौरेया संरक्षण का संकल्प दिलाते हैं. उनका यह प्रयास शहर की दहलीज को पार करते हुए दूसरे शहरों तक भी पहुंच रहा है. प्रयागराज में अपने अधिवक्ता साथी विक्रम सिंह के सहयोग से वहां भी गौरेया संरक्षण का संदेश दे रहे हैं.

आसानी नहीं इनका काम

व्यग्र संस्था की ओर से गौरैया संरक्षण के लिए किया जाने वाला काम आसान नहीं है. इसके लिए वो बकायदा मजबूत प्लाई से घोसलों का निर्माण कराते हैं. उन्हें कलर कराते हैं और गंगापुर में फाइन आर्ट्स की स्टूडेंट संजना मिश्रा उन्हें सजाने के साथ उस पर संस्था का नाम लिखती हैं. एक घोसले का सेट तैयार करने में लगभग 800 रुपये खर्च होते हैं. संस्था के सदस्य यह सारा खर्च खुद से वहन करते हैं. मेहनतभरा काम करने के बदले संजना भी कोई रुपये नहीं लेती हैं. सोशल मीडिया की ताकत को महसूस करते हुए व्यग्र संस्था गौरेया संरक्षण के लिए किए जा रहे अपने काम को टिवटर, फेसबुक और अन्य माध्यमों से लोगों के सामने ला रही है. इसका फायदा भी मिला है और दुनियाभर के लोग उनसे जुड़ रहे हैं. तमाम लोगों ने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए अपने सहयोग का प्रस्ताव भी दिया है. उनका सहयोग कैसे सार्थक तरीके से लिया जाए यह इस पर संस्था विचार कर रही है.

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