पूर्व उपराष्‍ट्रपति ने गुजरात दंगों में पुलिस-प्रशासन की विफलता पर उठाए सवाल

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पूर्व उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी ने 2002 गुजरात दंगों में सिविल व पुलिस प्रशासन की विफलता पर शनिवार (13 अक्‍टूबर) को सवाल उठाए। उन्‍होंने ऐसे हालात में संसदीय व्‍यवस्‍था की भूमिका पर भी प्रश्‍न-चिन्‍ह लगाया। लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह (रिटा.) की पुस्‍तक, ‘द संस्‍कारी मुसलमान’ का विमोचन करते हुए अंसानी ने कहा, ”पुस्‍तक राजनैतिक नेतृत्‍व की भूमिका पर खामोश है।

विफलता का जवाब देने में सिविल और पुलिस प्रशासन नाकाम

अगर कानून-व्‍यवस्‍था की इतनी बड़ी विफलता का जवाब देने में सिविल और पुलिस प्रशासन नाकाम है तो लोकतांत्रिक व संसदीय व्‍यवस्‍था में जिम्‍मेदारी किसकी है? क्‍यों नहीं संविधान के अनुच्‍छेट 355 का प्रयोग नहीं किया, जिसके तहत आंतरिक अशांति की दशा में राज्‍य की रक्षा की जिम्‍मेदारी केंद्र को सौंपी गई है, वह भी तब, जब केंद्र के पास रक्षा मंत्री के मौके पर से मूल्‍यांकन की सुविधा थी?”

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उस समय दंगा नियंत्रण के लिए अहमदाबाद भेजे गए शाह ने अपनी किताब में लिखा है कि 1 मार्च, 2002 को पहुंचे 3,000 सैनिकों के लिए सपोर्ट अगले दिन पहुंचा। शाह का दावा है कि हिंसा नियंत्रण के लिए जवानों को मुस्‍तैद करने से पहले सेना ने ”महत्‍वपूर्ण घंटे’ खो दिए। उन्‍होंने लिखा है कि प्रशासन का रवैया ‘सुस्‍त’ था और पुलिस संकुचित ढंग से व्‍यवहार कर रही थी।

पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आत्मकथा में लिखा…

शाह ने हाल ही में मीडिया से बातचीत में कहा था, ”सेना करीब 34 घंटों तक एयरपोर्ट पर असहाय बैठी रही। हम गोलियों की आवाज सुन पा रहे थे, पर कुछ कर नहीं सकते थे।” उन्‍होंने कहा, ”एक मार्च, 2002 की सुबह 7 बजे तक सेना के तीन हजार जवान पहुंचे चुके थे, मगर वाहन नहीं मुहैया कराए गए। हमने कीमती समय खो दिया। 2 मार्च को हमारे पास सिविल ट्रक, पुलिस गाइड, मजिस्‍ट्रेट व नक्‍शे पहुंचाए गए।”

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पिछले साल, पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा ‘द कोअलिशन ईयर्स 1996-2012’ के तीसरे संस्करण में लिखा था कि गुजरात दंगों के कारण ही 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था।

मुखर्जी ने अध्याय ‘फर्स्ट फुल टर्म नॉन कांग्रेस गवर्नमेंट’ में लिखा, “गोधरा में दंगे शुरू हुए, जिसमें साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में लगी आग में 58 लोग जलकर खाक हो गए। सभी पीड़ित अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवक थे। इससे गुजरात के कई शहरों में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे थे। संभवत: यह वाजपेयी सरकार पर लगा सबसे बड़ा धब्बा था, जिसके कारण शायद भाजपा को आगामी चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा।” साभार

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