अच्छा, तो बस स्टॉप पर हुआ था शीला दीक्षित को प्यार

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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपनी जिंदगी के अंतरंग लम्हों को अपनी किताब में शब्दों के जरिए बयां किया है। “सिटीजन दिल्ली: माय टाइम्स, माय लाइफ” नाम की किताब में उन्होंने अपनी लव स्टोरी का जिक्र करते हुए लिखा है कि उन्हें अपने प्रेमी से शादी करने के लिए दो साल तक इंतजार करना पड़ा था। शीला ने अपनी लव स्टोरी के बारे में लिखा है कि प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन करने के दौरान ही उनकी विनोद से मुलाकात हुई, जो उनकी जिंदगी के पहले और आखिरी प्यार बने।

अभी हाल ही में शीला दीक्षित की यह किताब लॉन्च हुई है

उन्होंने लिखा है कि विनोद उनकी क्लास के 20 स्टूडेन्ट्स में सबसे अलग थे। शीला ने लिखा है कि ऐसा नहीं है कि पहली नजर में ही प्यार हो गया था। वह काफी अलग सा था। मेरी पहली धारणा भी उसके प्रति अलग सी थी। बतौर शीला, पांच फीट साढ़े ग्यारह इंच लंबे विनोद सुंदर, सुडौल साथियों के बीच बेहद लोकप्रिय और अच्छे क्रिकेटर थे। संयोग से दोस्तों के प्रेम विवाद को सुलझाने के लिए इन दोनों ने मध्यस्थता की थी लेकिन उस पंचायत के चक्कर में विनोद और शीला एक-दूसरे के काफी करीब आ गए। बता दें कि अभी हाल ही में शीला दीक्षित की यह किताब लॉन्च हुई है।

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शीला ने लिखा है कि कई बार चाहकर भी वह विनोद से बात नहीं कर पाती थीं क्योंकि वो इन्ट्रोवर्ट थीं जबकि विनोद खुले विचार वाले, हंसमुख और एक्स्ट्रोवर्ट। शीला ने एक दिन दिल की बात शेयर करने के लिए घंटे भर तक विनोद के साथ डीटीसी बस की सवारी की थी, फिर फिरोजशाह रोड स्थित अपनी आंटी के घर पर विनोद के साथ लंबा वक्त गुजारा था। शीला ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि विनोद ने उनसे शादी करने की बात भी बस में ही की थी। जब वो फाइनल ईयर का एग्जाम देने वाले थे तब एक दिन पहले 10 नंबर की बस में चांदनी चौक के पास विनोद ने शीला को बताया था कि वो अपनी मां को बताने जा रहे हैं कि उन्होंने लड़की चुन ली है, जिससे वो शादी करेंगे।

यूपी के  उन्नाव के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार से आते है

शीला ने तब विनोद से कहा था कि क्या तुमने उस लड़की से दिल की बात पूछी है? तब विनोद ने कहा था कि नहीं, लेकिन वो लड़कीबस में मेरी सीट के आगे बैठी है।शीला ने लिखा है कि इस घटना के कुछ दिन बाद उन्होंने अपने माता-पिता को विनोद के बारे में बताया था लेकिन वे लोग शादी को लेकर आशंकित थे कि विनोद अभी भी स्टूडेन्ट हैं तो इनकी गृहस्थी कैसे चलेगी। इसके बाद मामला थोड़ा ठंडा पड़ गया। शीला ने मोतीबाग में एक दोस्त की मां के नर्सरी स्कूल में 100 रुपये की सैलरी पर नौकरी कर ली और विनोद आईएएस एग्जाम की तैयारी में लग गए। इन दिनों दोनों के बीच मुलाकात नहीं के बराबर होती थी। एक साल बाद 1959 में विनोद का सेलेक्शन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के लिए हो गया। उन्होंने यूपी कैडर चुना था।शीला ने लिखा है कि विनोद यूपी के उन्नाव के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार से आते थे।

काफी सवाल पूछे थे और आखिर में खुशी जताई थी

उनके पिता उमाशंकर दीक्षित (जिन्हें लोग दादाजी कहते थे) स्वतंत्रता सेनानी, हिन्दीभाषी और उच्च संस्कारों वाले थे। उनसे जब विनोद ने जब जनपथ के एक होटल में मुलाकात कराई थी तब वो काफी नर्वस थीं। हालांकि, दादाजी ने तब काफी सवाल पूछे थे और आखिर में खुशी जताई थी। बतौर शीला, दादाजी ने कहा था कि उन्हें शादी के लिए दो हफ्ते, दो महीने या दो साल तक इंतजार करना पड़ सकता है क्यों कि विनोद की मां को अंतर जातीय विवाह के लिए मनाना था। और इस बीच दो साल बीत गए। आखिरकार 11 जुलाई, 1962 को दोनों की शादी हुई।

जनसत्ता

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